अधूरी उदास नज़्में- सस्ती शायरी

कुछ रंग मेरे लिए बचाकर रखना होली में
सादा कुर्ता सिलने में दर्ज़ी ने देर कर दी है

सियासत का मौसम है बदल न जाना होली में
तुम्हारे रंग का जोड़ा ढूंढने में देर हो रही है

रास्ता देखते रहना तुम मेरा भी होली में
बच के बचा कर आने में देर हो रही है

5 comments:

रंजन (Ranjan) said...

होली के जाते हुऐ होली की ये नज्म प्या्री हो लग रही ्है..

होली की शुभकामनाऐं..

अभिषेक मिश्र said...

रास्ता देखते रहना तुम मेरा भी होली में
बच के बचा कर आने में देर हो रही है
होली के कुछ अनकहे भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति.

नीरज गोस्वामी said...

देर न होजाये कहीं देर ना होजाये...देर से ही सही...बहुत अच्छा लिखा है होली के बाद.
नीरज

akanksha said...

बहुत खूबसूरत लाइनें हैं। आप हमेशा ही अच्छा ही लिखते हैं। आपसे थोड़ा सा नाराज हैं। आपने हिंदुस्तान में ब्लॉग वार्ता में हमारा नुक्कड़ की पोस्ट के बारे में लिखा और हमारा नाम लिखना भूल गए। पोस्ट फिर पढ़िए और देखिए गीता जी के उस ब्लॉग में होली की यादें पोस्ट किसने डाली है। खैर... अच्छा लगा आपको हमारी पोस्ट पसंद आई।

मुंहफट said...

कुछ रंग मेरे लिए बचाकर रखना होली में
सादा कुर्ता सिलने में दर्ज़ी ने देर कर दी है
रवि जी जितनी सहजता से खबरें पढ़ते हैं उतनी ही सहज ये पंक्तियां. शब्द-शब्द भोगे हुए-से लगते हैं. आकार में कंजूसी के बावजूद यह समसामयिक रचना पूर्ण कविता जितना सुख देती है.