जीन्स। पहनी जाती है। विरासत में भी मिलती है। मैं इस दूसरी वाली जीन्स की बात करूंगा। वो जीन्स जो वरूण को अपने पिता संजय से मिली। वो जीन्स जिसमें एक दिन में आसमान छूने का दिल करता है। वो जीन्स जिसमें एक पल में ही दुनिया बदल देने का मन करता है। वो जीन्स जिसमें सब कुछ मटियामेट करने का जी करता है। वो जीन्स जो बुरा ठानता है तो बुरा ही करता है। वो जीन्स जो अच्छे और बुरे में फर्क नहीं करता। वो जीन्स जिसमें पेशन्स नहीं है। वो जीन्स जिसके छोटेपन की कोई इन्तेहा नही। वो जीन्स जिसे दुनिया को जूती की नोक पर रखने की कामुकता है। वो जीन्स जिसे छोटे बड़े का लिहाज नहीं। वो जीन्स जिसमें कुतर्क ही सबसे बड़ा तर्क है।
वही जीन्स जिसने वरूण को वरूण बनाया। वही जीन्स जिसके बीज की पौध 28 साल होते होते कुतर्क करने लगी। वो कह रहा हाथ काट डालेगा। ये कैसी संडासी भाषा है तुम्हारी। बू आती है। तुम्हारी दादी कह के मरी की उसकी बूंद का एक एक कतरा देश की तरक्की के लिये बहेगा। तुम्हारे परदादा ने सेक्यूलरिज्म के मंदिर बनवाये। तुम हाथ काटोगे। अरे किसके हाथ काटोगे। तरक्की के। अमन के। चैन के। शराफत के। रिश्तों के हाथ काटोगे जिनमें सदियों से एक ही खून बहता रहा है। जिसका रंग सुर्ख लाल है। क्या सहिषुणता के हाथ काटोगे। जिसने इस देश को आदि काल से वाइब्रेंट रखा। उस देश के हाथ काटोगे जिसके लोगों ने तुम्हारे पिता की अकास्मिक मौत के बाद तुम्हे जीने की हिम्मत दी। जिस देश नें तुम्हारी मां और तुम्हे अपनो से अलग होने के बाद भी जीने का मकसद दिया। तुम किसके हाथ काटोगे।
लेकिन तुम्हारा क्या दोष। जीन्स तो तुम्हे अपने पिता के ही मिले हैं। वो भी अपने को सबसे बड़े फन्ने खां समझते थे। किसी की कब सुनी उन्होने। तुम्हारी उम्र में तो तुम्हारे पिता की इमेज बैड मैन की थी। ऐंग्री बैड मैन। खुशवंत सिंह टाइप इक्का दुक्का डाइनेस्टी भक्तो को छोड़ दे तो तुम्हारे पिता के कारनामों से समाज में बड़ी दहशत फैली। दिल्ली का तुर्कमान गेट हो या यूपी और बिहार के वो गांव कस्बे जहां तुम्हारे पिता की कुराफाती टोली नसबन्दी के हथियार लेकर गली मौहल्लो में नंगा नाच कर रही थी। समाज को डरा कर उसे अपने वश में करने की कोशिश की उन्होने। तुम्हे उन्ही से तो अपने जीन्स मिले हैं।
और तुम उस जीन्स की मर्यादा भी तो रख रहे। बापू सोच रहे होंगे बड़ी गल्ती की की तुम्हारे दादा को अपना नाम देकर। पता रहता की संजय और फिर उसके बाद उसका बेटा मेरे नाम पर बदनुमा दाग लगायेगा तो फिरोज को कभी ये नाम नहीं देता। लेकिन फिरोज तो ऐसा नहीं था। फिर उसके वंश में ये कैसे चिराग पैदा हुये। जिस करीमउल्ला, मजहरउल्ला का सर काटने की बात कर रहे उन्ही जैसे सैकड़ो करीमउल्ला और मजहरउल्ला की सुरक्षा के लिये बापू नोआखाली में भूख हड़ताल पर बैठे। ताकि तुम्हारे जैसे उन्मादी हिंदु उस इलाके में न फटके। ये उस समय जब देश बंट चुका था। और लोग रिश्तों को भी बांट रहे थे। मजहबी उन्माद चरम पर था। हिंदुस्तान में फिरंगियों का बहाया खून नहीं अपने अपने का खून बहा रहे थे। बापू डटे रहे। उस उन्मादी माहौल से जो कलकत्ता और पूर्वी बंगाल में आग लगी हुयी थी वो उसमे एक "घड़ा पानी डालने" नोआखाली में थे। लंदन से डिग्री ले ली लेकिन तुमने ये नहीं पढ़ा की नोआखाली में में फिर दंगे नहीं हुये। क्योंकि उस गांधी ने कहा जान चली जाये पर मैं यहां से नहीं हिलूंगा। नेहरू और पटेल ने बुलाया भी कि दिल्ली आइये और आजादी के जश्न में हमें आशीर्वाद दीजिये। गांधी ने कहा जब बंगाल और पंजाब जल रहे हों तो आजादी का जश्न मैं नहीं मना सकता। ऐसे थे मोहनदास करमचंद गांधी जिन्होने दुम्हारे दादा को अपना बेटा मान कर अपना नाम दिया ताकि तुम्हारे परदादा उनकी शादी तुम्हारी दादी से करवाने के लिये राजी हो जायें।
तुम कहते हो तुम्हे हिन्दु होने पर गर्व है। महात्मा गांधी भी हिन्दु थे। लेकिन उन्हे गीता का ग्यान भी था और कुरान शरीफ भी रटा था। याद कराना चाहूंगा तुम्हे नोआखली का वो वाक्या जब एक मुस्लिम गांधी पर टूट पड़ा। गांधी जब गिरे तो उन्होने कुरान शरीफ की एक आयत पढ़ कर सुनायी। इस पर वो उन्मादी मुसलमान शांत हो गया और बापू के पैरों पर गिर कर माफी मांगी। कहा आप जो कहेंगे करूंगा। ऐसे जीता बापू ने मुसलमानों का दिल क्योंकि उनके मन में हिन्दु और मुसलमान अलग नहीं थे। सब उसी खुदा के बनाये बन्दे थे।
लेकिन तुम कहते हो करीमउल्ला और मजहरउल्ला का तुम सर कलम कर दोगे। क्योंकि तुम्हे अपने "हिन्दु होने पर गर्व है"। तुम कहते हो तुम उन हिन्दुओं की वकालत कर रहे थे जिन्हे उत्तर प्रदेश में सताया जा रहा। लेकिन तुम्हारी जबां में तो किसी एक समुदाय के लिये नफरत और हिकारत भरी थी।
मोहनदास कर्मचंद गांधी वोट मांगने के लिये सेक्यूलर नहीं बने। वो सेक्यूलर थे इसलिये वो कलकत्ता और नोआखली गये। तुम समाज को कम्यूनल चश्मे से देखते हो इसलिये तुमने वो कहा जो तुमने कहा। तस्वीरें झूठ नहीं बोलती। तुम गांधी नहीं। आज से तुम अपना नाम बदल लो। तुम अपना नाम वरूण संजय रख लो। ताकि जब भी तुम्हारी बात हो लोगों को पता लग जाये तुम्हारी संडासी सोच में किसके जीन्स तैर रहे हैं।
प्रभात शुंगलू
IBN7
24 comments:
Hindyugma sahi nahin kam kar raha is liye roman mein hi likh raha hoon...ki mein Prabhat ji ko yaad dilana chahoonga ki her koi 'Hindu hai kyunki her manav ka maatha ghoomne ka karan yehi hai - jo iska prithvi ke charon ore ghoomna bhi darshata hai (ma ka bete/ beti se jod ke saman)...Jai mata ki!
'Genes' shabd 'satan' paschim ki dane hai...adhoore gyan ke karan, kyunki sampoorna gyan wahan sambhav hi nahin hai, jab tak wo poorva se sqambandhit na ho jayein...aur poorva ke pracheen gyaniyon ke anusar bhagwan ki majboori hai ki wo shunya kaal se jurda hai...jis karan shrishti ki utpati aur vinash, dono, shunya se jurde hain...aur jo hamin dikhayi pard raha hai wo kewal 'maya' hai, 'mithya jagat' hai...ek bazaar jahan kewal asatya hi bikta hai!
Hindus Jago re! (theism shabd ki utpato 'the' yani tea yani chaya se hui hai - kewal chaya peene se neend nahin khulegi kyuni aaj ka manv visha ke prabhav se mansik santulan khota dikhai deta hai - 'maya' ke karan!
'Hindu' ko jab tak 'aam aadmi' 'Indu' yani chandrama se nahin jord payega - pracheen gyani yogiyon ke shabdon mein - 'mati-bhrast' hi rahega:(
Yeh unko kewal Satyuga mein hi sambhav hai:( Kintu Kaliyuga ki yeh khasiyat bhi mani gayi ki uske ant mein Satyuga laut aata hai, jaise bachche ke hath mein yo-yo:)
धार्मिक होना और कट्टरपंथी होना दो अलग अलग चीजें होती हैं. गांधी धार्मिक थे उनकी अपने धर्म में अथाह आस्था थी. यही कारण था कि वो अच्छे हिन्दू बने रहे.
गांधी को या भारतीयता को समझ पाना वरुणो के बस की बात नहीं है उनके जींस की बात तो जो थी वो थी ही अब वो ऐसे स्कूल में जा चुके हैं हैं जहां की भाषा ही यही है
अजीब बात है की हमारे शहर में हर दूसरे चौराहे पर दो साइकिल भी भिडे तो लोग पहले ये जानने की कोशिश करते है की चलाने वाले का मजहब क्या था .....आप ओर दूसरे मीडिया खामखाँ एक कम अक्ल नौजवान को मुफ्त में मशहूरी दे रहे है..जैसे मुतालिक को मिल गयी....राज ठकरे को .हमारे यहाँ हाजी अख़लाक़ को...दो दिन सब्र करते कोई चैनल अखबार खबर न छापे .अपना पीटा मुंह लेकर ये बैठ जायेंगे ....ओर हाँ गांधी धार्मिक नहीं थे वे राजनीतिग थे .
Har sikke ke teen chehre hote hain. Kintu aamaadmi ko do hi dikhai dete hain - sir ya dum! Beech ka 'nirgun' ya khali chehre ko sab andekha kar dete hain, waise hi jaise shayad hum Nirakar ko bhule baithe hain...jo ki karan hai in do vipreet chehron ke astitva ke liye!
यह लेख पढकर बडा आश्चर्य हुआ कि शालीनता की हदें पार करते हुए वरुण को बाप की गाली दी जा रही है। यह लेख पूरी तरह नस्लवादी लगता है और ऐसा लगता है कि कुछ पत्रकारों और टीवी चैनल ने सेक्युलरिज्म को पेटेंट करा रखा है जिन्हें अपने से विरोधी विचारधारा को गाली देने की खुली छूट है। यह भी एक प्रकार की कट्टरता और संक़ीर्णता का परिचायक है।
varun ka ye var sirf lokriyata paane ke lie hai. wah tv par chaye hue hai. paper me headline hai. ab ham blog par unka nam lekar sar dhun rahe hai.
jai ho
आपत पूत परापत घोड़ा, पूरा नहीं तो थोड़ा-थोड़ा
वरुण में संजय के अतिरक्त और भी तो जीन्स होंगे?
इन नेताओं को इतनी तवज्जो क्यों दी जाती है
रवीश मैं भी जींस को कोसने की सोचरहा था मगर फिर खयाल आया कि ऐसा होता तो नेहरू की बेटी होने के बावजूद इंदिरा का इतना पतन न हुआ होता और फिर संजय का बेडागर्क न हुआ होता। माहौल का फर्क तो तय़ है और जाहिर है कि संजय का आदर्श और मेनका का लाड़ तो यही बनाता। पर सबसे बड़ी चीज तो हमें खुद ही आत्मसंघर्ष करते हुए आगे बढ़ना पड़ता है। वर्ना तो हर प्रगतिशील का बेटा प्रगतिशील होता और घटिया लोगों के घरों सेबेहतर लोगन निकले होते। आपका गुस्सा जायज है। बेचैनी की बात यह है कि लोगों में सांप्रदायिकता की स्वीकार्यता तेजी से बढ़ी है।
बिलकुल सही शुंगलू बंधु भाई .ये जींस भी बड़े आनुवांशिक होते हैं ,सीधे भी बहते हैं और वंशानुगत शाखा पकड़कर अगल बगल भी. वैसे तो इस दुनिया में हर छाप के इंसानों की प्रजाति आज भी होमो सेपीयन्स(homo sapiens) ही है पर इसे ऊपर वाले और वैज्ञानिकों को छोड़कर शायद ही कोई मानता हो !बहुत पहले जब हम जंगली जानवर थे तब , कमजोरों पर वर्चस्व वाले ताकतवरों के अत्याचार ,मनमानी और शोषण का अराज़क शासन था ,.कमजोर ताकतवर अत्याचारिओं से बचने के लिए एकजुट हुए और इसप्रकार समाज का निर्माण हुआ .इस सामाजिक ढाँचे को अक्षुण बनाये रखने के लिए समाज के लिए नैतिकता के मानक तैयार किये गए और हर व्यक्ति को नियम और अनुशाशन में बाँधने का प्रयास किया गया और इसी प्रकार हम दोपाया जानवर सामाजिक कहलाने लगे.ये प्रक्रिया धरती के किसी एक ही भाग में नहीं सक्रिय थी बल्कि कई अलग अलग जगह जारी थी .हर जगह अलग अलग सभ्यताओं द्वारा परमशाक्तिमान की अलग अलग व्याख्या अलग-अलग भाषाओं में हुई जो कमोबेश एक जैसी थी ,नैतिकता , पाप-पुण्य,सत्कर्म-दुष्कर्म को अपने-अपने तरीके से परिभाषित किया गया और इसी तरह से धार्मिक ग्रन्थ अस्तित्व में आये. ये सभ्यताएं जब परस्पर संपर्क में आई तो धार्मिक श्रेष्टता की लडाई और नस्ली -सांस्कृतिक आक्रमण-अतिक्रमण की लडाईओं में उलझ गयीं. और तभी से धर्म राजनीति द्वारा अपहृत हो गया .
धर्म का जन्म हुआ तो था मनुष्य को नैतिकता सिखाने के लिए पर धर्म को कौन अपने आचरण में उतारता है ?सबको बस सिर्फ धार्मिक दिखना ही जरूरी लगता है . वर्षों पहले के मनुष्यों द्वारा लिखे गए धर्मग्रन्थ में से आज का आधुनिक बुद्धिमान मनुष्य आम खाकर गुठली फेकना क्यों नहीं सीखता?आदमी कत्ल करने के लिए तलवार फेंककर अपने हाथ में कलाश्निकोव राइफल की अत्याधुनिकता भले ही स्वीकार कर ले पर जीवन के लिए पुरातन धार्मिक रुढियों को यथास्थितिवादी और परिवर्तन विरोधी होकर छाती से चिपकाए रहता है.आज राजनीति धार्मिक और जातीयता के छुरी से मानवता को काट काट के खा रही हैं और सभी जनता जनार्दन मूर्ख भेड़-बकरियों की तरह आपस में कट पिट के नेताओं का भोज पात सजा रहे हैं .धर्म को तो सब मानते हैं पर धर्म की कौन मानता है ,मौलवी ,पादरी से लेकर पंडा तक यदि धर्म और इश्वर के सही अर्थ को समझते तो हिन्दू-मुस्लिम छाप जीवों के अन्दर इंसान नहीं दिखता उन्हें?.क्या हम अस्पतालों में खून चढाने से पहले bloodgroup और rh factor के अलावा पूछते हैं की खून किस मज़हब का है?क्या दो मजहबों के जोडों के बीच होने वाली शादियाँ यदि नाजायज़ होतीं तो जोडों से नाराज़ होकर ऊपर वाला उन्हें अनुर्वर होने का शाप नहीं दे देता ? जब ऊपर वाले ने हमे बनाते वक्त अंतर नहीं किया तो ये धर्म के ठेकेदार और नेता कौन होते हैं इंसानियत में फाड़ लगाने वाले?
खैर मै भी चैनलों पर रोज-रोज घिसट रहे अधकटिया फुटेज देखकर परेशान हूँ जिसमे वो कह रहा है कि वो हिन्दुओं के खिलाफ ऊँगली उठाने वाले का हाथ काट देगा !ये सुनकर इंसानियत के दुश्मन नंबर १, कई शादियाँ करने वाला ऐयाश ओसामा बिन लादेन शैतान, कि याद आ गयी जो बोलता है दुनिया भर के मुसलमानों का ठेकेदार बन के .
साथ ही गुजरात और चाचा प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी के १९८४ के जीन्स की याद आ गयी जब इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद तत्कालीन कांग्रेस के शासन में हुए निर्दोष सिक्खों के कथित प्रायोजित कत्लेआम में कुछ लोग वोटर लिस्ट देख खोज-खोजकर निर्दोष सिक्खों का कत्ल करवा रहे थे और उनका घर जलाकर तबाह कर रहे थे .आरोप ये भी लगता है कि प्रशासन दंगाइओं को नंगा नाचने के लिए खुली छूट दे रहा था . अपने बेसहारा सिक्ख भाइयों के परिवार को उन्मादी भीड़ से बचाने के लिए हिन्दू और मुसलमान कहे जाने वाले इंसान भाई उन्हें अपने-अपने घरों में छुपा-छुपाकर शरण दे रहे थे. तब राजिव गाँधी ने सिक्खों की मौत पर बचकाना बयान दिया था ““Some riots took place in the country following the murder of Indiraji. We know the people were very angry and for a few days it seemed that India had been shaken. But, when a mighty tree falls, it is only natural that the earth around it does shake a little.”.इन दंगो की लीपापोती करने के लिए ११ बार जांच आयोग या कमिटी बनी पर सब कुछ कब्र में गायब कर दिया गया.आज भले ही कोई नेता माफ़ी मांगे पर किसी को सजा और निष्पक्ष जांच ना होने से दंगा पीड़ित आज भी असंतुष्ट हैं .
Manolokji ka nibandh bardhiya hai. Kintu shayad Mirakar parmeshwar aur unke dwara rachit manav adi (shrishti) ko hamare Yogiyon ne behtar samjha. Shrishti ki rachna evm uska dhwans bhi, dono, shunya se jurde hone ke karan shunya kal mein hi arambh aur samapta ho gaye the - brahmanad ke saath, lagbhag ek diwali ke patakhe ki tarah maun se arambh ker dhamake ke baad phir se maun!
Prashna yeh uthta hai to phir 'Mayavi sansar' ki kya avashyakta? Jiska uttar shayad manav, 'ek nimitta matra', kabhi na jaan payega, bhale hi atkalein lagata phire - kabhi genes ko gali de, kabhi 'forbidden fruit' ko, adi adi...
Multi million dollar prashna yeh hai ki Parameshwar kya khoj raha hai bar bar usi picture ki reel ko parde (teesri ankh) mein dekh, phir se rewind ker dekhne mein - us kriya aur pratikriya ko jo shunya kal mein hui aur uska 'action replay' dekha ja raha hai - barambar:) Kya yeh uski khud ko jan-ne ki ichchha ka pratibimb hai? Ya man bahla raha hai? Ya kuch aur?...Jaise apni maan!?
Hamare 'pracheen gyani' thak kar use Nirakar ko anant kah ker uske nikat-tam bhautik pratibimb shiv-parvati (Prithvi-Chandrama) tak hi pahunch paye - aisa hamari kahaniyan darshati hain...Meethe pani ki nadiyan thak kar khare pani mein girne ke liye majboor hain! Indra yadi meethe pani se sambandhhit hain to 'Varun' khare jal ki dyotak:)
Jinko kathinayi ho samajhne mein, we kripaya 'Indra' ke sthan per 'Indira' athva 'Indu', yani prothvi per anadi kal se vyapt jal ka srot (visheshkar 'Ganga Maiyya' ke), 'chandrama' pardhein...aur shayad yeh batane ki avashyakta na ho ki Shiv ke mathe mein, sanketik bhasa mein, Yogiyon dwara 'chaand' ka dikhayi jana her manav ke mathe (sahasrara chakra) mein chandrma ke satva ki ore ingit karta hai...
Filmi gane, "Oh! Mr Banjo ishara to samjho!" hamari kahaniyon mein shayad sanketic bhasha ka prayog darshata hai! ...Internet bhi 'alphanumeric' ya graphic symbols (tasveer adi) dwara hamko jordne mein samarth ho paya hai (Kaliyuga ke arambh mein - kintu Satyuga mein 'telepathy' dwara :)
'Hindu' ke liye satya wo hai jo kaal ke prabhav se pare hai - jaise surya ka poorva mein uday hona aur paschim mein doobna:)
जीन्स से जीन्स तक का सफर बेहद रोमांचक है। बहुत खूब....तारीफ़ के लिए शब्द कम है।
अक्षय सिंह
ज़ी बिज़नेस
वरुण गांधी भड़काऊ भाषण प्रकरण में जीन्स का तो कहीं कोई रोल ही नहीं है। आदमी के अंदर हर तरह के जीन्स होते हैं जो उसे उसके पूर्वजों से विरासत में मिलते हैं। व्यक्ति की प्रकृति और उसके गुणों को वही जीन्स निर्धारित करते हैं जो खुद को एक्सप्रेस करते हैं। ऐसी अवस्था में अगर वरुण में संजय वाले जीन्स एक्सप्रेस हुए होते तो उसके लक्षण बहुत पहले ही दिख जाने चाहिए थे। जिस परिवेश में वरुण पला बढ़ा है उसमें हिन्दू और मुस्लिम का तो कोई मुद्दा ही नहीं है। वरुण गांधी वाली क्लास के लिए तो धर्म कुछ है ही नहीं। हिन्दू-मुस्लिम के फेर में तो आम आदमी फंसा है जो रोज़ी रोटी के चक्कर में उलझा है। साफ है वरुण का ये भाषण महज चुनावी हथकंडा है। न तो ये कोई जीन्स इफैक्ट है और न ही मिर्गी टाइप अटैक। ये न तो मानसिक दीवालियापन है और नही प्राकृतिक व्यवहार, इसे पॉलिटिकल ड्रामा कहते हैं।
और "संडासी भाषा" जैसे शब्दों का इस्तेमाल ही भाषा को अभद्र बनाता है। कृपया ध्यान दें।
जो भाषा और एक्सप्रेशन हैं ,वो बताते हैं कि लेखक में चँग़ेज़ खाँ के ज़ीन्स अब भी डॉमिनेंट हैं । विचार शून्य तरीके से कही गई बात का कोई मतलब नहीं होता । आप जैसे चँद वामपंथी पाखंडियों के महज़ अपने फ़ायदे के लिए ज़ोर- ज़ोर से हुआं- हुआं चिल्लाने से झूठ सच में नहीं बदला जा सकता । डरपोक हिन्दूओं की देन हैं आप जैसे लेखक ।
इस गांधी से हमें प्यार हो गया
18 March, 2009 बालासाहेब ठाकरे
यदि संजय गांधी जीवित होते तो क्या कांग्रेस पार्टी धर्मान्ध मुस्लिमों के मामले में इतनी बदचलन होती? वरूण गांधी की टिप्पणी से यह प्रमाणित होता है कि प्रश्न का जवाब निश्चित तौर पर नकारात्मक रहता। आजकल चुनावी आचार संहिता नामक एक बंधन हम सब पर लाद दिया गया है। सो संभलकर बोलो, संभलकर करो और संभलकर लिखो। ये सारे नियम-कानून केवल हिन्दुओं के लिए। जबकि धर्मान्ध मुसलमान हो जो चाहें सो करें। चुनावी आचार संहित को लेकर जिए तरह की जिद पाली जाती है, काश! जनसंख्या के मामले में भी किसी प्रकार की आचार संहिता होती तो इस देश का कल्याण हो जाता।
आज हमें होनहार, चिरंजीत वरूण गांधी ने संजय गांधी की याद दिला दी। ऐसा लगा कि वरूण गांधी के मुख से संजय गांधी का पुनर्जन्म हुआ है। उत्तर प्रदेश की पीलीभीत लोकसभा सीट से वरूण गांधी चुनाव लड़ रहा है। इसके पहले मेनका गांधी इस सीट से चुनाव लड़ा करती थीं। वरूण के लिए मेनका गांधी ने यह सीट छोड़ दी। मेनका अपनी सारी उम्र बहेतू कुत्तों, बििल्लयों और सर्कस के प्राणियों की सेवा के लिए समर्पित कर दी। पर चिरायु वरूण में अपने स्वर्गीय पिता संजय गांधी के गुणों का प्राकट्य हुआ है। संजय गांधी वैसे तो विवादास्पद व्यक्तित्व वाले रहे। परंतु यह उनकी विशिष्टता थी कि उन्होंने कभी लाचार कांग्रेसियों की तरह मुस्लिम मतों के तुष्टीकरण की खातिर उनकी दाढ़ी नहीं सहलाई। गांधी-नेहरू वंश का वह `कुलदीपक´ 25 वर्ष पूर्व हिदू हित की भाषा बोल रहा था। मुस्लिम छोकरों के बढ़ते ढोंग पर प्रहार करने से वह कभी नहीं हिचका। संजय गांधी ने मुसलमानों पर अनिवार्य नसबंदी का साहसी प्रयोग किया। इससे चिढ़कर मुसलमान कांग्रेस विरोधी हो गए और कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा। दिल्ली का तुर्कमान गेट देश की राजधानी में भयंकर इस्लामाबाद बन गया था। संजय गांधी ने उस तुर्कमान गेट पर दिल्ली महानगरपालिका के बुलडोजर घुमकार उसे साफ कर दिया। इसलिए संजय गांधी की प्रतिमा प्रखर राष्ट्रवादी युवा नेता और हिन्दुओं के तारणहार वाली बन गई। तभी तो संजय गांधी के विमान दुर्घटना में कई बार कुछ दाल में काला नजर आता है। युवा राष्ट्रवादी संजय गांधी का रक्त वरूण गांधी की धमनियों में सनसना रहा है।
मीडियावाले टिप्पणी कर रहे हैं कि वरूण गांधी ने जहर उगला। मैं कहता हूं कि वरूण ने हिन्दू जनमानस में दहक रही आग को उगला है। वरूण गांधी ने मुसलामानों पर टिप्पणी की और हिन्दू समाज को देा कड़े शब्द सुनाए। इससे खलबली मच गई है। वरूण ने `जय श्री राम´ का जोरदार हुंकार भरा। गोहत्या प्रतिबंध का जबरदस्त समर्थन किया। मुस्लिमों की धर्मान्धता पर प्रहार किया। सभा में मौजूद सारे लोगों ने वरूण की जय-जयकार की घोषणा की- `गोहत्या रूकवाना है, वरूण गांधी को जिताना है´ और `वरूण नहीं ये आंधी है, दूसरा संजय गांधी है´। 29 वर्ष का यह तरूण सभा में मौजूद सारे लोगों की हिन्दू भावनाओं को सचेत कर हर किसी की भावनाओं को अपनी मुट्ठी में रख पूरी सभा को प्रज्वलित कर बाहर निकलता है। यह गजब का रसायन है कि लोगों के मुंह से बरबस फूट पड़ता है कि संजय गांधी फिर से आ गया। जिस पुत्र ने कभी अपने पिता को देखा नहीं, उनके सहवास का अनुभव नहीं प्राप्त किया, वह अपने पिता की विरासत को इतना आत्मसात करता है। यह वंश परंपरा का अद्भुत उदाहरण है। वरूण हिन्दू सम्मेलनों में जरूर उपस्थित होता है। छह मार्च को डालचंद इलाके में आयोजित एक सभा में उसने शब्दों की तलवार चलाई- `अगर किसी गलत तत्व ने किसी हिन्दू पर हाथ उठाया, अगर कोई हिन्दू समाज को मजबूर या कमजोर समझता है कि उनके पीछे कोई नहीं... हिन्दुओं के ऊपर हाथ उठाया तो मैं गीता की सौगंध खाकर कहता हूं कि मैं उस हाथ को काट दूंगा।´ 29 वर्षीय यह गांधी जिस तड़प के साथ यह सब बोल रहा है उस पर विश्वास नहीं होता।
कांग्रेस पार्टी वरूण के भाषणों से सकते हैं। उस पर आचार संहिता भंग करने का आरोप लगाया गया है। वरूण ने धर्मान्ध मुसलमानों के बारे में भड़काऊ वक्तव्य दिया है, इस तरह की शिकायत निर्वाचन आयोग में की गई है। कांग्रेस के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी के भी कुछ नेता वरूण के बयान से चिंतित हैं। वास्तव में वरूण ने जिस निर्भीकता से अपना पक्षा रखा है उसको भाजपा ने समर्थन देना चाहिए। वरूण के बोलने से यदि मुसलमानों के नाराज होने की चिंता किसी भाजपाई को सता रही हो तो वह गलत है। कट्टर और वरिष्ठ हिन्दुत्ववादी आजकल प्रखर हिन्दुत्व पर बात करने से कतराते हैं। ऐसे में वरूण राजा का यह साहस अभिनंदनीय है। क्योंकि इससे मृतप्राय हिन्दू चेतना जागृत तो होगी। जब तक मानसिक संचेतना नहीं जागृत होती तब तक भुजाएं नहीं फड़का करतीं। एक बाल हिन्दू नेता ने स्पष्ट किया है कि इस्लामाबाद के कसाबों से हिन्दुओं की आत्मरक्षा संभव नहीं। इस पर इतना चिल्ल-पों मचाने की क्या जरूरत? मुख्तार अब्बास नकवी थोड़े नाराज हो गए और उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं से संयम बरतने का आह्वान किया। उनका कहना है कि दाढ़ी बढ़ा लेने से हर मुसलमान ओसामा बिन लादेन नहीं बन जाता। हम भी यह मानते हैं, पर दाढ़ी बढ़ाकर आप खुद को मुसलमान साबित करने का उद्यम किस खातिर करते हैं? राष्ट्रीय वृत्तिवाले मुसलमानों को रूढ़ियों और परंपराओं से ग्रस्त बाहर निकलना चाहिए। हिन्दुस्तान की संस्कृति से समरस होकर भी तुम मुसलमान बने रहोगे?
हम तुिर्कस्तान का उदाहरण इसी के चलते देते हैं। कमालपाशा ने वहां के मुसलमानों को आधुनिक व प्रगतिशील विचारों वाला बनाया और अपने देश को यूरोपीय देशों के मुकाबले खड़ा कर दिया। वहां न महिलाएं बुर्का पहनती हैं, न मुसलमान दाढ़ी और टोपी के चलते पहचाने जाते हैं और न ही वे धर्म का फालतू आडंबर ओढ़ते हैं। वहां का मुसलमान जेहाद की बांग भी नहीं देता। मुस्लिम बहुत राष्ट्र होने के बावजूद तुिर्कस्तान में चूंकि मुल्ले-मौलवियों के फतवे नहीं चलते इसलिए वह देश इतना उन्नत है। जो तुिर्कस्तान के मुसलमानों को मंजूर हो सकता है वह हिन्दुस्तानी मुसलमानों को क्यों नहीं? हिन्दुस्तानी मुसलमान तुिर्कस्तान को आदर्श माने, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के तालिबान को नहीं। तालिबान का आदर्श मानने के कारण उनका अधोपतन होता है और हिन्दुस्तान का जीवन भी नरक बन जाता है। खुद भी सुख से नहीं जीते और हिन्दुओं को भी सुख से नहीं जीने देते। हम भी यही कहते हैं कि कोई दाढ़ी रखने से सच्चा मुसलमान नहीं होता। कसाब नाम का जो मुसलमान पाकिस्तान से मुंबई हमला करने आया था वह तो एकदम चिकने-चुपड़े चेहरे से मुंबई को श्मशान करने घुसा था। कहीं ऐसा तो नहीं कि मुसलमानों ने कांग्रेसियों और उनके छद्म सेकुलर साथियों की सुविधा के लिए अपनी दाढ़ियां बढ़ा ली हैं ताकि वे मौके-बेमौके उसे सहलाने का सुख लूट सकें? सवाल मुसलमानों पर टीका-टिप्पणी करने का नहीं है। सवाल है सच बोला जाए या नहीं? आचार संहिता की बेड़ियां क्या सत्य को बंदी बना लेंगी? वरूण भावातिरेक में कुछ बोला होगा लेकिन उसमें ऐसा क्या है जिस पर इतना कोहराम मचाया जाए? इस देश की बर्बादी किसके कारण हो रही है? खून की नदियां कौन बहा रहा है? बमकांड कर हिन्दुओं के चीथड़े कौन उड़ा रहा है? वरूण गांधी इस देश का नौजवान है। उसके मन में लंबे अरसे से दबी कसक बाहर आई है। इसलिए क्या से अभियुक्त के पिंजरे में खड़ा कर फांसी पर लटकाया जाना चाहिए?
खुद भारतीय जनता पार्टी एक कठिन कालखंड से गुजर रही है। दिल्ली में उसकी अंदरूनी कलह पर रोज खबरें छप रही हैं। हम उस पर क्या टिप्पणी करें। हम इतना ही कह सकते हैं कि `यह उनकी पार्टी का अंदरूनी मामला है। हमारे देश में इसी को लोकतंत्र कहते हैं।´ वरूण राजा भी उसी लोकतंत्र का डंका बजाते हुए बरसे हैं। उनके बरसने पर इतने बांधी न बनाएं। बिहार भाजपा के एक नेता शाहनवाज हुसैन ने मांग की है कि वरूण गांधी माफी मांगे। उनका यह बयान एक भाजपा नेता का है या मुस्लिम नेता का? शाहनवाज एक तरूण नेता हैं हम भी उन्हें पहचानते हैं। वाजपेयी मंत्रिमंडल में वह नागरिक उड्डयन मंत्री थे। उस समय उनका `मातोश्री´ पर आना जाना था। शाहनवाज मियां वरूण के वक्तव्य को ठीक से समझ लें। वरूण किससे माफी मांगे, भारतीय जनता पार्टी से या मुसलमानों से? हमें तो उसकी जरूरत नहीं लगती। वरूण ने एक भाषण में कहा- `मैं भाजपा का कार्यकर्ता हूं पर उसकी अपेक्षा एक हिन्दू हूं, यह कैसे भूलूं?´ इसमें आक्षेपाएं क्या? इस देश में हर धर्म का नेता राजनीति में अपने धर्म के साथ खड़ा है। कोई मुसलमान, कोई ईसाई, कोई बौद्ध पर हमारी तरह अगर कोई हिन्दू होकर खड़ा हो जाए तो सारे उसके विरोध में क्यों चिल्लाने लगते हैं? वरूण के बारे में वही हो रहा है। कम से कम भारतीय जनता पार्टी वरूण को हवा के हवाले न करे। उसकी उम्र कच्ची है। उसके मन में हिन्दुत्व की चिंगारी प्रज्वलित हुई है, उसे न बुझाओ। यह गांधी सचमुच अलग है। एक गांधी ने कहा `हिन्दुओं, तुम्हारे गाल पर कोई एक थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर दो।´ इस अहिंसा ने इस देश और हिन्दुओं का घात किया। लेकिन नए युग का गांधी कह रहा है `हिन्दुओं पर उठनेवाले हाथ कलम कर दिए जाएंगे, हिन्दुओं मार मत खाओ।´ हम इस गांधी के प्रेम में पड़ गए। आचार संहिता होने के बावजूद हमें प्रेम हो गया। हम वरूण को शुभाशीर्वाद देते हैं।
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इस गांधी से हमें प्यार हो गया
18 March, 2009 बालासाहेब ठाकरे
यदि संजय गांधी जीवित होते तो क्या कांग्रेस पार्टी धर्मान्ध मुस्लिमों के मामले में इतनी बदचलन होती? वरूण गांधी की टिप्पणी से यह प्रमाणित होता है कि प्रश्न का जवाब निश्चित तौर पर नकारात्मक रहता। आजकल चुनावी आचार संहिता नामक एक बंधन हम सब पर लाद दिया गया है। सो संभलकर बोलो, संभलकर करो और संभलकर लिखो। ये सारे नियम-कानून केवल हिन्दुओं के लिए। जबकि धर्मान्ध मुसलमान हो जो चाहें सो करें। चुनावी आचार संहित को लेकर जिए तरह की जिद पाली जाती है, काश! जनसंख्या के मामले में भी किसी प्रकार की आचार संहिता होती तो इस देश का कल्याण हो जाता।
आज हमें होनहार, चिरंजीत वरूण गांधी ने संजय गांधी की याद दिला दी। ऐसा लगा कि वरूण गांधी के मुख से संजय गांधी का पुनर्जन्म हुआ है। उत्तर प्रदेश की पीलीभीत लोकसभा सीट से वरूण गांधी चुनाव लड़ रहा है। इसके पहले मेनका गांधी इस सीट से चुनाव लड़ा करती थीं। वरूण के लिए मेनका गांधी ने यह सीट छोड़ दी। मेनका अपनी सारी उम्र बहेतू कुत्तों, बििल्लयों और सर्कस के प्राणियों की सेवा के लिए समर्पित कर दी। पर चिरायु वरूण में अपने स्वर्गीय पिता संजय गांधी के गुणों का प्राकट्य हुआ है। संजय गांधी वैसे तो विवादास्पद व्यक्तित्व वाले रहे। परंतु यह उनकी विशिष्टता थी कि उन्होंने कभी लाचार कांग्रेसियों की तरह मुस्लिम मतों के तुष्टीकरण की खातिर उनकी दाढ़ी नहीं सहलाई। गांधी-नेहरू वंश का वह `कुलदीपक´ 25 वर्ष पूर्व हिदू हित की भाषा बोल रहा था। मुस्लिम छोकरों के बढ़ते ढोंग पर प्रहार करने से वह कभी नहीं हिचका। संजय गांधी ने मुसलमानों पर अनिवार्य नसबंदी का साहसी प्रयोग किया। इससे चिढ़कर मुसलमान कांग्रेस विरोधी हो गए और कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा। दिल्ली का तुर्कमान गेट देश की राजधानी में भयंकर इस्लामाबाद बन गया था। संजय गांधी ने उस तुर्कमान गेट पर दिल्ली महानगरपालिका के बुलडोजर घुमकार उसे साफ कर दिया। इसलिए संजय गांधी की प्रतिमा प्रखर राष्ट्रवादी युवा नेता और हिन्दुओं के तारणहार वाली बन गई। तभी तो संजय गांधी के विमान दुर्घटना में कई बार कुछ दाल में काला नजर आता है। युवा राष्ट्रवादी संजय गांधी का रक्त वरूण गांधी की धमनियों में सनसना रहा है।
मीडियावाले टिप्पणी कर रहे हैं कि वरूण गांधी ने जहर उगला। मैं कहता हूं कि वरूण ने हिन्दू जनमानस में दहक रही आग को उगला है। वरूण गांधी ने मुसलामानों पर टिप्पणी की और हिन्दू समाज को देा कड़े शब्द सुनाए। इससे खलबली मच गई है। वरूण ने `जय श्री राम´ का जोरदार हुंकार भरा। गोहत्या प्रतिबंध का जबरदस्त समर्थन किया। मुस्लिमों की धर्मान्धता पर प्रहार किया। सभा में मौजूद सारे लोगों ने वरूण की जय-जयकार की घोषणा की- `गोहत्या रूकवाना है, वरूण गांधी को जिताना है´ और `वरूण नहीं ये आंधी है, दूसरा संजय गांधी है´। 29 वर्ष का यह तरूण सभा में मौजूद सारे लोगों की हिन्दू भावनाओं को सचेत कर हर किसी की भावनाओं को अपनी मुट्ठी में रख पूरी सभा को प्रज्वलित कर बाहर निकलता है। यह गजब का रसायन है कि लोगों के मुंह से बरबस फूट पड़ता है कि संजय गांधी फिर से आ गया। जिस पुत्र ने कभी अपने पिता को देखा नहीं, उनके सहवास का अनुभव नहीं प्राप्त किया, वह अपने पिता की विरासत को इतना आत्मसात करता है। यह वंश परंपरा का अद्भुत उदाहरण है। वरूण हिन्दू सम्मेलनों में जरूर उपस्थित होता है। छह मार्च को डालचंद इलाके में आयोजित एक सभा में उसने शब्दों की तलवार चलाई- `अगर किसी गलत तत्व ने किसी हिन्दू पर हाथ उठाया, अगर कोई हिन्दू समाज को मजबूर या कमजोर समझता है कि उनके पीछे कोई नहीं... हिन्दुओं के ऊपर हाथ उठाया तो मैं गीता की सौगंध खाकर कहता हूं कि मैं उस हाथ को काट दूंगा।´ 29 वर्षीय यह गांधी जिस तड़प के साथ यह सब बोल रहा है उस पर विश्वास नहीं होता।
कांग्रेस पार्टी वरूण के भाषणों से सकते हैं। उस पर आचार संहिता भंग करने का आरोप लगाया गया है। वरूण ने धर्मान्ध मुसलमानों के बारे में भड़काऊ वक्तव्य दिया है, इस तरह की शिकायत निर्वाचन आयोग में की गई है। कांग्रेस के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी के भी कुछ नेता वरूण के बयान से चिंतित हैं। वास्तव में वरूण ने जिस निर्भीकता से अपना पक्षा रखा है उसको भाजपा ने समर्थन देना चाहिए। वरूण के बोलने से यदि मुसलमानों के नाराज होने की चिंता किसी भाजपाई को सता रही हो तो वह गलत है। कट्टर और वरिष्ठ हिन्दुत्ववादी आजकल प्रखर हिन्दुत्व पर बात करने से कतराते हैं। ऐसे में वरूण राजा का यह साहस अभिनंदनीय है। क्योंकि इससे मृतप्राय हिन्दू चेतना जागृत तो होगी। जब तक मानसिक संचेतना नहीं जागृत होती तब तक भुजाएं नहीं फड़का करतीं। एक बाल हिन्दू नेता ने स्पष्ट किया है कि इस्लामाबाद के कसाबों से हिन्दुओं की आत्मरक्षा संभव नहीं। इस पर इतना चिल्ल-पों मचाने की क्या जरूरत? मुख्तार अब्बास नकवी थोड़े नाराज हो गए और उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं से संयम बरतने का आह्वान किया। उनका कहना है कि दाढ़ी बढ़ा लेने से हर मुसलमान ओसामा बिन लादेन नहीं बन जाता। हम भी यह मानते हैं, पर दाढ़ी बढ़ाकर आप खुद को मुसलमान साबित करने का उद्यम किस खातिर करते हैं? राष्ट्रीय वृत्तिवाले मुसलमानों को रूढ़ियों और परंपराओं से ग्रस्त बाहर निकलना चाहिए। हिन्दुस्तान की संस्कृति से समरस होकर भी तुम मुसलमान बने रहोगे?
हम तुिर्कस्तान का उदाहरण इसी के चलते देते हैं। कमालपाशा ने वहां के मुसलमानों को आधुनिक व प्रगतिशील विचारों वाला बनाया और अपने देश को यूरोपीय देशों के मुकाबले खड़ा कर दिया। वहां न महिलाएं बुर्का पहनती हैं, न मुसलमान दाढ़ी और टोपी के चलते पहचाने जाते हैं और न ही वे धर्म का फालतू आडंबर ओढ़ते हैं। वहां का मुसलमान जेहाद की बांग भी नहीं देता। मुस्लिम बहुत राष्ट्र होने के बावजूद तुिर्कस्तान में चूंकि मुल्ले-मौलवियों के फतवे नहीं चलते इसलिए वह देश इतना उन्नत है। जो तुिर्कस्तान के मुसलमानों को मंजूर हो सकता है वह हिन्दुस्तानी मुसलमानों को क्यों नहीं? हिन्दुस्तानी मुसलमान तुिर्कस्तान को आदर्श माने, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के तालिबान को नहीं। तालिबान का आदर्श मानने के कारण उनका अधोपतन होता है और हिन्दुस्तान का जीवन भी नरक बन जाता है। खुद भी सुख से नहीं जीते और हिन्दुओं को भी सुख से नहीं जीने देते। हम भी यही कहते हैं कि कोई दाढ़ी रखने से सच्चा मुसलमान नहीं होता। कसाब नाम का जो मुसलमान पाकिस्तान से मुंबई हमला करने आया था वह तो एकदम चिकने-चुपड़े चेहरे से मुंबई को श्मशान करने घुसा था। कहीं ऐसा तो नहीं कि मुसलमानों ने कांग्रेसियों और उनके छद्म सेकुलर साथियों की सुविधा के लिए अपनी दाढ़ियां बढ़ा ली हैं ताकि वे मौके-बेमौके उसे सहलाने का सुख लूट सकें? सवाल मुसलमानों पर टीका-टिप्पणी करने का नहीं है। सवाल है सच बोला जाए या नहीं? आचार संहिता की बेड़ियां क्या सत्य को बंदी बना लेंगी? वरूण भावातिरेक में कुछ बोला होगा लेकिन उसमें ऐसा क्या है जिस पर इतना कोहराम मचाया जाए? इस देश की बर्बादी किसके कारण हो रही है? खून की नदियां कौन बहा रहा है? बमकांड कर हिन्दुओं के चीथड़े कौन उड़ा रहा है? वरूण गांधी इस देश का नौजवान है। उसके मन में लंबे अरसे से दबी कसक बाहर आई है। इसलिए क्या से अभियुक्त के पिंजरे में खड़ा कर फांसी पर लटकाया जाना चाहिए?
खुद भारतीय जनता पार्टी एक कठिन कालखंड से गुजर रही है। दिल्ली में उसकी अंदरूनी कलह पर रोज खबरें छप रही हैं। हम उस पर क्या टिप्पणी करें। हम इतना ही कह सकते हैं कि `यह उनकी पार्टी का अंदरूनी मामला है। हमारे देश में इसी को लोकतंत्र कहते हैं।´ वरूण राजा भी उसी लोकतंत्र का डंका बजाते हुए बरसे हैं। उनके बरसने पर इतने बांधी न बनाएं। बिहार भाजपा के एक नेता शाहनवाज हुसैन ने मांग की है कि वरूण गांधी माफी मांगे। उनका यह बयान एक भाजपा नेता का है या मुस्लिम नेता का? शाहनवाज एक तरूण नेता हैं हम भी उन्हें पहचानते हैं। वाजपेयी मंत्रिमंडल में वह नागरिक उड्डयन मंत्री थे। उस समय उनका `मातोश्री´ पर आना जाना था। शाहनवाज मियां वरूण के वक्तव्य को ठीक से समझ लें। वरूण किससे माफी मांगे, भारतीय जनता पार्टी से या मुसलमानों से? हमें तो उसकी जरूरत नहीं लगती। वरूण ने एक भाषण में कहा- `मैं भाजपा का कार्यकर्ता हूं पर उसकी अपेक्षा एक हिन्दू हूं, यह कैसे भूलूं?´ इसमें आक्षेपाएं क्या? इस देश में हर धर्म का नेता राजनीति में अपने धर्म के साथ खड़ा है। कोई मुसलमान, कोई ईसाई, कोई बौद्ध पर हमारी तरह अगर कोई हिन्दू होकर खड़ा हो जाए तो सारे उसके विरोध में क्यों चिल्लाने लगते हैं? वरूण के बारे में वही हो रहा है। कम से कम भारतीय जनता पार्टी वरूण को हवा के हवाले न करे। उसकी उम्र कच्ची है। उसके मन में हिन्दुत्व की चिंगारी प्रज्वलित हुई है, उसे न बुझाओ। यह गांधी सचमुच अलग है। एक गांधी ने कहा `हिन्दुओं, तुम्हारे गाल पर कोई एक थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर दो।´ इस अहिंसा ने इस देश और हिन्दुओं का घात किया। लेकिन नए युग का गांधी कह रहा है `हिन्दुओं पर उठनेवाले हाथ कलम कर दिए जाएंगे, हिन्दुओं मार मत खाओ।´ हम इस गांधी के प्रेम में पड़ गए। आचार संहिता होने के बावजूद हमें प्रेम हो गया। हम वरूण को शुभाशीर्वाद देते हैं।
ise bhi padhana cahiye
ravishjee
yeh jeens ke problem nhi hai.mamla kursee ka hai.yeh besbel ab fayltee ja ra hee hai.kthet budjeeve bee eske sekar hai. yah kasmir se kanyakumari tak failee hai. teelak, taraju aur talvar kes jeen se sanchaleet ho raha hai. kasmir mai kya chal raha hai. babaree dunsh kai pechay kya hai, marathi manuh ke nam per kya ho rha hai.sub jeens ka prakop nai.varun se hmai aishe umeed nhi thi. yeh mandir vahi banyagee ke parditee hai.kabeer ro rahai hai.
jab arambh mein 'samudra manthan' hua tha to kahte hain pehle 'halahal' bahar aya tha jisne devta aur rakshashon dono ko prabhavit kiya tha...Aur, kaal Satyuga se jab Kaliyuga ki ore bardhega to ant mein 'Vish' hi dikhai dega, aur tatha kathit 'vish-bel bhi...Gehun ke saath saath ghun bhi pista dikhai pardega - maya ke karan :)
आओ बच्चों तुम्हे दिखायें झांकी हिंदुस्तान की ,
इस मिटटी से तिलक करो तुम ये धरती है बलिदान की .
बन्दे...बन्दे....
कैसे बोलूं बन्दे मातरम् ?कैसे बोलूं मै ?सुना है बंदेमातरम शब्द धर्मनिरपेक्ष नहीं है ,कुछ लोग कहते हैं !;-(
खैर आईये हम लाये हैं कुछ झांकी ......इसे जो पढ़े वो कोम्मुनल और ना पढ़े वो सांप्रदायिक "........
1)http://economictimes.indiatimes.com/Opinion/Columnists/P_R_Ramesh/On_a_Madani_pleasing_trip/rssarticleshow/2264063.cms
"On a Madani pleasing trip"
8 Aug 2007, 0454 hrs IST, P R Ramesh, TNN
Islamist leader Abdul Nasser Madani is the latest cause celebre of the Left, the Congress and the civil liberty alarmists. A hardline leader, who still faces around 20 cases in Kerala that include spreading communal hatred, was recently exonerated by a special court of the charges of his involvement in the Coimbatore blasts case. The Tamil Nadu government, which appoints the prosecutor, was under pressure from the Kerala government to ensure his release. In a rare show of bipartisan unity, the Congress and the Left had got together to pass a unanimous resolution in the Kerala Assembly demanding parole for Madani. They got soothing news from Coimbatore last week when the special court acquitted the fiery Islamist for lack of evidence regarding his involvement in the bombings that killed 58 people.
The power elite and the liberals promptly organised a massive civic reception for Madani in Thiruvananthapuram. While liberals launched into an exercise at guilt-tripping for the “excesses committed by the State”, politicians promised limitless healthcare support and police protection for the Islamist. The political leadership hectored the audience on the need for unity and harmony in the company of Madani. He told the meeting that his politics flowed out of his religion and that his politics would be radically different from the “mainstream” IUML.
Incidentally, it was a government headed by the Communists, who organised the celebrations in Thiruvananthapuram, that handed over Madani to the Tamil Nadu police after the Coimbatore blasts. The LDF had claimed that he was the biggest threat to communal harmony in Kerala. The Congress-led government headed by A K Antony that came to power subsequently endorsed the previous government’s stand that Madani and his men have blood-stained resume. The then chief minister had said that letting him out on parole could lead to communal disturbances in the state.
The latest self-serving display of hypocrisy is understandable as Kerala’s political class doesn’t mind somersaults if they help swell their electoral kitty. Association with thugs does not really worry them. Instances are many. CM Achuthanadan himself has recently admitted that list of endorsers of his party leadership reads like a who’s who of hoodlums.
But the trend is worrying as it comes at a time when the state is having to brace itself for the arrival of arson-setting and bomb-strapped men. Intelligence agencies have been warning the state that Kerala’s coastline has become important destination for pushing equipment and resources for terror groups operating in Kerala and neighbouring Tamil Nadu.
A wink here and a nod there by the state’s politicians have ensured that there is no hindrance to the mobilisation based on trans-national grievances. The biggest audience for the manufactured outrage over the Danish cartoon on the Prophet, protests against India’s engagement with the US and solidarity for Saddam Hussain were provided by the northern districts of Kerala.
Kerala was in news recently for its spotty record on fighting terror-financing when the high court directed the state government to take immediate measures to track the source of Rs 4 million hawala funds that landed in Kondotty village of Kerala. State home minister Kodiyeri Balakrishnan was forced to admit in the Assembly that illegal transfer of money to the state by agents abroad is a Rs 100-million-a-year business. The minister also told the Assembly that investigations into some of the cases showed that people involved in this illegal trade had links with anti-national forces. The state intelligence set up is also suspecting a portion of these funds sustaining the radical Islamic outfit NDF.
Predictably, the fatwa-issuing NDF — its recent “protest” movements were against school uniforms and singing of the national anthem — has been denying charges against the outfit. The all-round backing for Madani saw the NDF coming out to seek the same lenient treatment for its activists lodged in different jails for their involvement in the Marad carnage. There was no uproar. No outrage.
Kerala’s bizarre politically-correct leadership, however, seems unconcerned over the threat that this coddling poses to its people. With the two sides of the political aisle vying with each other for a larger share of the minority vote — the Muslim vote alone accounts for 20% — the competition to appease hotheads is certain to intensify in the coming months.
But this cynical game has not been attracting any adverse attention in the mainstream media or the intelligentsia of the state. Perfectly understandable. This compassionate crowd has a pathological distaste for accepting the reality. And they barbecue anyone who questions their make-believe world or identifies the enemy.
In these troubled times, policies of the government should not be framed to please this crowd. It’s time to admit that the state’s secular fabric is under severe stress. Attempts to be on the right side of hardline opinion will only imperil the security of the citizen.
2)
http://economictimes.indiatimes.com/News/PoliticsNation/Dont-be-surprised-if-you-spot-Osama-posters-at-CPM-rally/articleshow/4231434.cms
"Don’t be surprised if you spot Osama posters at CPM rally"
6 Mar 2009, 0355 hrs IST, ET Bureau
NEW DELHI: CPM, which has been travelling along with radical Islam, is piling pressure on allies to back its plans to field a nominee of Islamist leader Abdul Nasser Madani for the Ponnani seat in Kerala.
The decision to award ticket to a Madani follower has not gone down well with CPI as the party had traditionally contested the seat. Outfits like Jamiat-e-Islami and leaders of the Sunni sect have been lobbying with the CPM leadership for awarding the Lok Sabha nomination to a leader who shares their world view.
Although the alliance between CPM and Islamists may look bizarre to outsiders, the Left in Kerala has been a beneficiary of their affection. With the waning influence of IUML, radical elements in the community have been moving away from the Congress-led front. Just like Left movements elsewhere have worked their way up by exploiting extra-territorial grievances of the Muslim community, the Kerala CPM have been engaged in sustained anti-US and pro-Palestine campaigns in the state.
The biggest audience for the manufactured outrage over Danish cartoons on the Prophet, protests against India’s engagement with the US and solidarity for Saddam Hussein were provided by the northern districts of Kerala.
With the two sides of the political aisle vying with each other for a larger share of the minority vote — the Muslim vote alone accounts for 20% — the competition to appease leaders like Madani is certain to intensify in the coming months.
CPM seems unconcerned by the fact that Madani, exonerated for lack of evidence in the Coimbatore blasts case, still faces around 20 cases in Kerala, which includes spreading communal hatred. The Left elite and liberals had organised a massive ‘civic reception’ for Madani in Thiruvananthapuram when he was released from the Coimbatore jail.
Kerala was in the news recently for its spotty record on fighting terror-financing when the high court directed the state government to take immediate measures to track the source of Rs 4 million hawala funds that landed in Kondotty village of Kerala. State home minister Kodiyeri Balakrishnan was forced to admit in the assembly that illegal transfer of money to the state by agents abroad is a Rs 100-million-a-year business. The minister also told the assembly that investigations into some of the cases showed that people involved in this illegal trade had links with anti-national forces. The state intelligence set up is also suspecting a portion of these funds sustaining the radical Islamic outfit NDF.
3)://economictimes.indiatimes.com/News/PoliticsNation/Saddam-a-comrade-in-Kerala/articleshow/4251653.cms
Saddam a comrade in Kerala
11 Mar 2009, 0126 hrs IST, Amita Shah, ET Bureau
NEW DELHI: Among whatever is left of the pan-Arab Left, ageing comrades remember Saddam Hussein as the despot who single-handedly decimated the communist movement in Iraq. However, back in Kerala, a state which lives on the remittances sent back by its million-plus emigres in the Gulf countries, local communists hail Saddam Hussein as the Arab Saladdin who held out against American imperialism.
For a decade now, the Kerala Left led by the CPM — with its core base coming mostly from lower-caste Hindus — has been trying to make inroads into the Muslim-majority district of Malappuram and neighbouring Kozhikode.
At the heart of a heated debate within the Left is the Ponnani Lok Sabha constituency where Muslims make up 25% of the population, a traditional bastion of Congress ally, the Indian Union Muslim League. Emboldened by the sweeping gains that the Left made in the two northern districts in the last assembly elections, the junior partner in the Left Front, CPI, has been nurturing hopes of wringing the seat. However, the CPM, which has been cosying up to the firebrand People’s Democratic Front (PDP) leader Abdul Nasser Madani — acquitted in the Coimbatore blast case after several years in jail — wants to field an indpendent from the seat who is agreeable to the PDP.
The CPI, which is trying desperately to hold on to the seat to ensure that its vote share does not drop further, is averse to the PDP calling the shots. Mr Madani still faces around 20 cases in Kerala, which includes spreading communal hatred. The war-of-words that ensued culminated in a slanging match between the all-powerful CPM state secretary Pinarayi Vijayan and CPI state chief Veliyam Bhargavan, as widely reported in Malayalam media.
Up north, the CPM has also decided to put up its candidate in the communally-sensitive Azamgarh seat hoping to capitalise on the electorate’s perceived disillusionment with the ruling parties at the Centre and the state. In the aftermath of the Mumbai terror attack, protestors from Azamgarh shouted slogans “Azamgarh Zindabad!” and “Ulema Council Zindabad” in the heart of the Capital.
Protesting police “harassment” of Muslims, they said “we are students, not terrorists”. The Ulema Council is also likely to field a candidate in the constituency, which is seen as a terror hub after the Batla House encounter.
In Assam, where illegal immigrants from Bangladesh have a say in several seats, the CPM was trying to tie up with the Assam United Democratic Front (AUDF), which had won ten assembly seats. The party is eyeing seats in the Lok Sabha by wooing over the Muslim voters. It’s another matter that the CPM walked out of the alliance following deadlock in seat-sharing arrangement in the state. However, the CPI is still part of the NCP-AUDF-Left front in the state.
CPM’s political organisational report finalised at the recent Coimbatore Congress said more efforts needed to be made to recruit Muslims, following a drop in Muslim membership over the past seven years. While in Kerala the LDF has managed to win over a section of the American-wary Muslims by striking the right chords, in West Bengal the steady drop in the Muslim membership have given cause for concern at Alimuddin Street.
The Left had the backing of around half-a-dozen Muslim groups in Kerala, as was evident from the assembly elections of 2006. The LDF got a taste of the Muslim backing when it stole a large share of the minority vote from the Congress which had fallen from grace in the eyes of the Islamists because of the Indo-US nuclear deal. The CPM’s central leadership explained its affiliation with the minority groups by saying there was a difference between accepting support and forming an alliance with a religion-based party.
In West Bengal, where it sensed that the Muslim votebank was slipping, the CPM tried to make amends—the Taslima Nasreen episode was a clear indication.
But it was too late. The CPM felt the pain of the Muslim backlash in the panchayat polls. The Muslims had started to distance themselves disillusioned with the Left Front in the wake of the Sachar Committee report. Chief minister Buddhadeb Bhattacharya’s utterances about clearing Madrassas did further harm. What made matters worse was the state government’s land acquisition in Singur and Nandigram, in which the community was affected severely. The Muslim population is over 50% in some districts of the state, including Murshidabad and Kishanganj
4)http://economictimes.indiatimes.com/News/PoliticsNation/CPM-cant-put-its-front-in-order/rssarticleshow/4258129.cms
CPM can’t put its front in order
13 Mar 2009, 0417 hrs IST, ET Bureau
NEW DELHI: As CPM and CPI piloted efforts to forge a third front at Tumkur in Karnataka , strains deepened within the Left alliance in neighbouring Kerala. Miffed with CPM’s refusal to concede the Ponnani Lok Sabha seat, CPI on Thursday threatened to field candidates in all 20 seats in the state.
But CPI is still hoping CPM would step back from its current position. A press conference convened by CPI in Thiruvananthapuram on Thursday was called off at the last minute. There could be another round of negotiations between the two parties either on Thursday night or Friday. CPM, which considers views of Muslim organisations more critical than that of CPI, is adamant on fielding a PDP-friendly candidate in Ponnani. The candidate was picked up after consultations with PDP’s Abdul Nasser Madani.
CPI’s tough stance is prompted by concerns of its political existence in the state. According to the seat-sharing formula followed since 1984, CPI has been contesting four Lok Sabha and 24 assembly seats. There is fear in CPI that giving up claim on the fourth Lok Sabha seat could lead to its share in the assembly seats coming down in the next assembly polls.
CPI’s posturing is unlikely to cause any major worry for CPM as it does not have much bargaining power left in Kerala. Party insiders admit that the party does not even have a fighting chance in the three seats — Thiruvananthapuram , Mavelikkara and Thrissur — allotted to it. CPM is of the view that CPI’s reluctance to accept its real strength is the cause of the current friction. “CPI should check out its history. Even when every important leader stayed with CPI after the 1964 split, CPI could get only three seats in the 1965 polls to the Kerala assembly ,” said a CPM leader.
Successive elections have showed CPI’s dependence on CPM for electoral victories. Unlike CPM, CPI has not been getting new recruits. Incidentally, its own political organisational report shows that the dropout rate almost equals its enrolment figures.
The party’s report brought out last year had conceded its waning influence in the Hindi belt and its inability to penetrate even targeted segments like minorities , Dalits and tribals. “All these sections look at us as well-wishers . But still we could not make much inroads into these sections. It is in this backdrop that we have to review why the general positiveness of the people and improvement of image of the Left is not turning into support of our party during elections,” the report had said
5)http://economictimes.indiatimes.com/News/PoliticsNation/Venkaiah-Naidu-demands-enquiry-into-Madanis-terror-links/articleshow/4288271.cms
Venkaiah Naidu demands enquiry into Madani’s terror links
19 Mar 2009, 1932 hrs IST, ET Bureau
KOCHI: Allegations of fresh “terror links” of the PDP leader Abdul Nazar Madani are becoming hot election topics in the state. BJP’s former president Venkaiah Naidu has demanded a high level enquiry into Madani’s links with terror outfits.
Inaugurating the BJP election convention here Mr Venkaiah Naidu said that it is shocking to see that that Madani’s terror links are coming out into the open. He asked the CPM central committee to come out clean on the issues like the party’s understanding with PDP and Madani. Mr Naidu also said that the NDA would reintroduce the controversial POTA if it is voted to power.
He pointed out that while the state Chief Minister V S Achuthanandan promised an inquiry into Madani’s links with terrorist groups the home minister Kodiyeri Balakrishnan has dismissed it saying that there is no need for an inquiry. He said that the leaders are “playing politics” on such an important issue.
The NDA would order a high-level enquiry into the issue if it is voted back to power, he said. “We will also reintroduce POTA within 100 days of getting back to power”, he added.
According to him, both the fronts in the state, the ruling LDF and the opposition UDF, have neglected the real issues in the state. The state has to be freed of fundamental and communal forces, he added
रविश जी माफ़ करें ये हकीकत काफी लम्बा हो गया ,पर इन मुद्दों पर भी शुंगलू एंड कंपनी व अन्य के चैनलों पर कुछ घसीटा जाना चाहिए ..
jitne bhi secularism ke pujari hain unhe pahle seularism ki paribhasa ko samjhana hoga . kykoi jo secularism congress aur dooshri secular parties ka hai ,vo katai secular nahi hai . aur aap bhi apni samaj ko badlein .vaise mere blogs pa iske uttar hain , kabhi aane ki kripa karein .
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