इंडियन एक्सप्रेस का पन्ना चार। एक ख़बर चीख रही थी। उन तमाम दलीलों के बीच जो सांप्रदायिकता को राष्ट्रवादी नज़र से देखते हैं और जो धर्मनिरपेक्षता को इंसानों की नज़र से। आरिफ हुसैन खाती। जम्मू कश्मीर में आतंकवाद से लड़ने के लिए तैनात बीएसएफ के एक जवान की कहानी।
महाराष्ट्र के धुले में दंगा। ५ अक्तूबर को आरिफ के घर पर हमला। ईद की छुट्टी मनाने घर गया था। हिंसा पर उतारू भीड़ ने आरिफ की वर्दी जला दी। बहादुरी के सर्टिफिकेट जला दिये। जिनसे कभी वो साबित कर पाता कि मुसलमान हो कर भी उसने इस भारत भूमि की सेवा की। पूरी ईमानदारी के साथ। इंडियन एक्सप्रेस की इस ख़बर में आरिफ के बयान बोलने लगते हैं।
मेरे ही पड़ोसी मेरा घर जला रहे थे। हज़ारों की संख्या में आए थे। मेरे भाई सिकंदर को जलती आग में फेंकेने की कोशिश कर रहे थे। मेरी पत्नी बेहोश हो गई। मैं गिड़गिड़ाने लगा। बोलने लगा कि मैं तो सिपाही हूं। मैं देश के लिए लड़ रहा हूं। उन्होंने कुछ नहीं सुना। ज़िंदगी में पहली बार ऐसा लगा कि मैं अकेला हूं। मुझे कहा गया कि मैं मुसलमान हूं और कुछ नहीं।
आरिफ का बोलना अभी खत्म नहीं हुआ है। उसने पुलिस से भी कहा। जिस पुलिस के सहारे हम आतंकवाद से लड़ रहे हैं। भगवान जाने आतंकवाद से लड़ रहे हैं या सांप्रदायिकता को मलहम लगा रहे हैं। ख़ैर।
आरिफ कहता है- हमें लग रहा था कि तनाव बढ़ रहा है। हमला हो सकता है। लेकिन एक भी पुलिसवाला हमें बचाने नहीं आया। हम पूरी रात थाने के बाहर बैठे रहे। हमारी शिकायत तक दर्ज नहीं हुई। पुलिस ने हमें यही कहा कि घर छोड़कर जल्दी भाग जाओ।
खाती को यह नौकरी अनुकंपा के आधार पर मिली थी। २००२ में उसके पिता रियाज़ खाती की ड्यूटी पर मौत हुई थी। खाती कहता है उसने आतंकावदियों के खिलाफ कई मोर्चे में जान की बाज़ी लगाई है। कभी डर नहीं लगा। लेकिन उस दिन मैं डर गया था। लगा कि मार दिया जाऊंगा।
16 comments:
ये बहुत दुखद है। जब देश के लिए प्राण न्यौछावर करने को तत्पर रहने वाले सैनिकों के साथ ऐसा हो सकता है तो एक आम आदमी का क्या हाल होगा कोई सोच भी नहीं सकता. महाराष्ट्र के धुले से लेकर बुरहानपुर तक में फैली सांप्रदायिक हिंसा ने साबित कर दिया है कि दोनों संप्रदायों के बीच तनाव कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। एक जगह तो विधायक के खिलाफ दंगों को बढ़ाने के लिए मामला भी दर्ज हो चुका है। साफ है कि धर्म के राजनीतिकरण की वजह से ही आज ऐसी परिस्थितियां पैदा हुई हैं। बुरहानपुर में हुई एक घटना में खेतों से काम कर के लौट रहे दीपक पर उग्र भीड़ ने हमला कर दिया। जब पूरा इलाका दंगों की आग में जल रहा था उस वक्त दीपक इस हिंसा से दूर अपने खेतों में काम कर रहा था लेकिन धर्मांध भीड़ ने उसे अपनी कटुता की बली चढ़ा दिया।
यानि जिन्हें हिंसा करनी है वो करेंगे ही, वो न तो सिपाही को देखेंगे न किसान को। दुख की बात है कि लोगों ने सिपाही तक को नहीं बख्शा। अक्सर मुस्लिमों पर पथ भ्रष्ट होकर चरमपंथ अपनाने का आरोप लगाया जाता है लेकिन कोई इस ओर ध्यान नहीं देता कि असली पथभ्रष्ट और धर्मभ्रष्ट तो वो लोग हैं जो हिंदू होने के कारण देश पर अपना एकाधिकार समझते हैं। ऐसे ही लोग दूसरों पर राष्ट्रविरोधी होने का आरोप लगाते हैं जो खुद राष्ट्र की जड़ों को खोखला कर रहे हैं। यहां तक की देश में फैली अशांति के लिए भी वही लोग जिम्मेदार हैं जिन्हें बजाय भारतीय होने के अपने 'हिंदू' होने पर ज्यादा गर्व है
इससे दुखद खबर नहीं हो सकती.. ये तो हद है..
भई मुसलमान होने की सज़ा तो भुगतनी ही पड़ेगी न...मुसलामानों के साथ किस तरह का बर्ताव किया जाता है आरिफ़ का दर्द उसकी तस्दीक करता है... लेकिन कुछ तथाकथित और स्वंघोषित राष्ट्रवादी ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों को ही कोसना शुरू कर देते हैं... इस तरह की वारदातों से उर्दू अख़बारों के पन्ने भरे पड़ें हैं...
देश में फैली अशांति के लिए भी वही लोग जिम्मेदार हैं जिन्हें बजाय भारतीय होने के अपने हिंदू या मुसलनान होने पर ज्यादा गर्व है
इस वक़्त जब देश के भीतर दोनों सम्प्रदाय के बीच पहले ही संदेह के बादल छाए हुए है ओर आपसी विशवास की नींव हिली हुई है तो बजाय इसके की हम ऐसी ताकतों को मजबूत करे जो हमारे देश के रहने वालो में आपसी विशवास कायम करे आप उसे ओर कम करने वाली खबरों पर तवज्जो दे रहे है ?क्यों ?क्या आप नही चाहते देश में आपसी सोहार्द का वातावरण पैदा हो?
झुठी खबर है। सच्ची खबर में बताता हू वहा एक हिन्दु के धार्मिक कार्यकम होने बाला था जिसका मुस्लिम वेबजह विरोध कर रहे थे जैसा कि हमेशा मुस्लिम कि आबादी बढने के बाद करते हैं और विरोध बढ जाने के बाद हिन्दुओं के दुकान और मकान को निशाना बना कर आग लगाना और आम जनता को मारना सुरु किया।
ये है सच्ची खबर में भी यही का रहने बाला हू तुम झुठा प्रचार कर रहे हो क्या तुम यहा आकर देखे हो यहा का क्या स्थिती है कभी आकर देखो समझ में आ जायेगा । लिखना आसान है और झूठी बातो तो और आसान
ये ख़बर एक सबूत है कि जो दंगे करते हैं वो किसी भी धर्म के हों देश के तो कतई नही हैं.
नटखट साहब ख़बर का बहार आना इसलिए जरूरी है कि हम जाने कि हम कहाँ जा रहे हैं और कितना गिर रहे हैं इन घटनाओं पर परदा डालने से ये और बढेंगी.
और झा साहब मसला दंगा ही नही है हो सकता है आप सही हों हो सकता है ग़लत हों पर उस घटना का पक्ष तो आप भी नही ले सकते जिसका जिक्र यहाँ हुआ है
हे नटखट
आपका तर्क अपनी जगह सही है, लेकिन अब वक्त आ गया है कि हमें इन विषयों पर खुल कर चर्चा करनी होगी। राष्ट्र हित और अन्य बातों का हवाला देकर हम सच से मुंह नहीं मोड़ सकते। वक्त है कि सांप्रदायिकता के मूल कारणों को खोजा जाए और उनका निदान करना किया जाए। गलत आदमी हर तरफ होते हैं लेकिन इसका मतलब नहीं कि उनसे प्रभावित होकर हम भी वैसे हो जाएं। कट्टर लोगों से तर्क करोगे, उनके साथ रहोगे तो आप भी कट्टर हो जाएंगे।
भूत को भुलाकर नई शुरुआत करने का वक्त है आज
मनोज जी,
हिंसा का जवाब हिंसा कतई नहीं हो सकता,
दोनों समुदायों के विचारकों को आगे आने की ज़रूरत है, ताकि लोगों की इस मानसिकता को बदला जाए। लेकिन दुख की बात है आज ऐसी परिस्थितियां हैं कि कोई आगे बढ़ने को तैयार नहीं, बस किनारे खड़ा होकर कोसने के लिए तैयार हैं सब
Bachpan mein ek mazedar kahani pardhi thi, jismein chuhe billi se pareshan ho ker uski gair haziri mein upayon per charcha kar ek chuhe se sehmat to hue ki billi ke gale mein ghanti bandh di jaye to uske ane ka pata pehle se chal jayega - per million dollar prahsna yeh utha ki ghanti bandhega kaun!
Ek samay yeh kahavat prasiddha hui thi, "Majboori ka nam Mahatma Gandhi."
Majboori aj bhi hai jab hamein 100 channel hote hue bhi koi dhang ka programme kabhi-kabhi hi dikhai pardta hai - channel badal-badakl ker (is karan kabhi poora bhi nahin dekhne ko milta), aur prastutkarta ko bhi pata hota hai kyunki 'break' per jane se pehle wo bhi kehta hai "Kahin mat jaiyega!"...
Gita mein Krishna bhi pite hue 'sanyasi' ko yeh kahte hue paye jate hein ki sab kuch un per chhord unki sharn mein ja (buddhu!)...
Aur Buddha bhi "sangham sharanam gachchhami, adi, adi" sikha gaye...
Aadmi aaj bhool-bhulaiyya mein jaise ghir gaya lagta hai...million dollar prashna (bazaar mein mandi ho ya na ho) yeh hai ki kya Krishna ke ane ka time ho gaya hai?
रवीशजी मैं आपकी एक बात से बडी दुख़ी हुं कि आप ऐसे कमेन्ट देनेवालों की कमेन्ट क्यों मोडरेट करते हैं जिनका सिर्फ नाम ही होता है ना उनका कोइ पता होता है ना ब्लोग।
अपने आपको डोकटर कहनेवाले देशभक़्त, अपने आपको छूपाते क्यों फ़िरते है? गलती आप की भी है आप बीना जाने हर किसी एरे-ग़ेरे की कमेन्ट को मोडरेत ही क्यों करते है?
माफ़ करना। ग़ुस्सा आ गया।
Razia ji sikke ke teen pehlu hote hain, ek 'head' yani sir aur ek 'tail' yani poonch aur inhein jordne ke liye avashyak hai ek teesra khali athva nirgun hissa nahin to sikka ban hi nahin sakta.
Yehi prashna hamne Ravishji se kiya tha ki kyun chhote se chhote vishaya per bhi janata teen bhag mein but jati hai? Kuch prastav ke viruddha deekhte hein, kuch paksha mein to kuch Trishanku jaise na idhar na udher - adhar mein latke...
Jab azadi mili thi tab tava aram tha, logon meinjosh tha, Mahatma Gandhi jaise leader the...ab tava thanda perd gaya lagta hai...leaderon ka akal perd gaya hai. Bherd chal chal rahe nazar ate hain aj sabhi - andheri khai mein koodane ko taiyyar...Kyun?
Mere vichar pardhne hon to, jaisa maine pehle bhi kaha tha kabhi,
http://indiatemple.blogspot.com
blog dekhiye...
JC Joshi
समझ से परे है रवीश जी कि भारतीय विकसित हो रहे हैं या फिर ऐतिहासिक कट्टरवाद की तरफ उल्टी राह पकड़ लिए हैं.हमेशा ऐसी खबर पढ़ लेता हूं. पढ़ने के बाद यही प्रस्न बार-बार मन में संशय पादा करता है कि आख़ीर चुनावी मौसम में ही ऐसी गतिविधियों की बौछार क्यों हो जाती है??क्यों घर जलने लगते हैं? क्यों भारतीय कहीं हिंदू- मुसलमान हो जाता है तो कहीं बाभन-चामार. आजादी के 6 दशक बीत गये हैं लेकिन हालात पहले से भी बद्तर कयों है? पहले तो नक्सलबाड़ी देखने को मिलता था,जयप्रकाश का छात्र आंदोलन देखने को मिलता था लेकिन आज......ये सब क्यों?? आशा करता हूं कि यदि आप की दृष्टी इस पर पड़े तो सवालों के जबाब ज़रूर भेजिएगा.
इन सब घटनाओ से बचने के लिए ज़रूरी है कि ३० - ४० वर्ष अपने यहाँ इतिहास न पढाया जाए | जब तक हम मुग़ल इतिहास की शिक्षा प्रदान करेंगें ऐसा होता रहेगा |
मुस्लिम समुदाय के अन्दर से राष्ट्रवादी आवाज़ को और अधिक बुलंद करने की ज़रुरत है। मुझे लग रहा है कि बहुत से मुसलमान हैं, जो ये समझ गये हैं कि उन्हे इस्तेमाल किया जा रहा है। फिरक़ापरस्तों द्वारा। ये मुल्क उतना ही मुस्लिमों का भी है, जितना हिन्दू, सिख और इसाईयों का है।इसे खुबसुरत बनाने का दारोमदार हम सबके कंधे पर है। इसलिये सभी से अपील है कि देश के खिलाफ होने वाले किसी भी हमले को नाकाम करने में मिलकर काम करें।
एक उम्र गुजर जाती हैं घर बनाने में और लोग तरस नहीं खाते बस्तिया जलाने में ...
सिपाही का काम देश पर जान देना हैं लेकिन उसकी जान ले ली गई मतलब देश के लिए वक्फ़ एक जान दंगाइयों ने ले ली इस मरने वाले पर किसी को गुस्सा आ रहा हैं तो कोई इसे झूटी खबर बता रहा हैं कोई मुसलमान होने की सजा बता रहा हैं में कहता हूँ अब बोहोत हुआ दंगो पर रोक केसे लगे ये कहने या इस पर बहस करने के बजाये इसे रोकने पर काम करना होगा अब भी न जागे तो सोते रह जाओगे और देश जलता रहेगा और यह चिंगारी हर किसी के घर को जला देगी
उनको भाई कह रहे जो देता माँ को गाली.
भ्रम का ताला पङ गय,खोई कब से ताली.
खोई अपनी ताली, समाधान भीतर है.
सत्य नहीं कह सकते सत्ता का जो डर है.
कह साधक कवि नहीं बचेंगे ठाकुर साँईं.
देश तोङ डाला,बोलो अब कैसा भाई ?
बोलो देखा है कहीं चाँद और सूरज साथ ?
चित्र बनाते काल्पनिक,करते झूठी बात.
करते झूठी बात,राजने्ता् भारत के.
कुलांगार हैं,काले धब्बे हैं भारत के.
कह साधक कविराय सत्य सीमा रेखा है.
कुरान झुठलाता मोमिन बोलो देखा है?
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