तुम बहुत मोटे हो गए हो..व्हाट इज़ रांग विद यू

इक दिन जब मैं पतला हो जाऊंगा, हवायें ले उड़ेंगी मुझे

बादलों पे मेरा घर होगा, भूख से बिलखते इंसानों की तरह

अंदर धंसा हुआ पेट होगा, गड्ढे हो जायेंगे दोनों गालों में

ग़रीबी रेखा से नीचे के रहने वालों जैसा मेरा स्तर होगा

खाये पीये अघाये लोगों के बीच मैं किसी हीरो की तरह

बड़े आदर के साथ, मचलती नज़रों के बीच बुलाया जाऊंगा

इक जिन जब मैं पतला हो जाऊंगा, हवायें ले उड़ेंगी मुझे

7 comments:

Unknown said...

क्या शाहरूख ख़ान का असर तो नहीं हो रहा है आप पर। वैसा सिक्स पैक एब्स तो नहीं बनेगा लेकिन थोडा वजन तो ज़रूर कम किया जा सकता है। कोशिश करके देखिये। कुछ भी नामुमकिन नहीं है।

Sanjay Karere said...

सटीक, एकदम सही जगह हाथ रखा भाई..

Kaushal Kishore , Kharbhaia , Patna : कौशल किशोर ; खरभैया , तोप , पटना said...

रविशजी क्या आपने कभी गौर किया है की क्या वजह है की भारतीय सौन्दर्य बोध में स्थूल और लोचदार का स्थान दुबले पतले से ज्यादा ऊँचा है .आप दीदारगंज यक्ष नी की पटना संग्रहालय में राखी प्रस्तर प्रतिमा में निहित स्त्री सौन्दय को याद करें .
जहाँ भोजन की कमी हो वहां स्थूल सौन्दर्य और आभिजात्य का प्रतीक है तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए . लेकिन जहाँ पर समृधि है और मन और चित्त को लुभाने वाली तरह तरह
की चीजें वहां जिह्वा पर नियंत्रण कबीले तारीफ़ तो हो सकता है पर सामूहिक सौन्दर्य बोध जिस तेजी से बदल रहा है वो कहीं पश्चिमी मानकों की वेवजह नक़ल तो नहीं.
खैर विश्लेषण जो भी हो स्वास्थ्य के द्रीश्तिकोंन से दुबला पतला होना ही ठीक है.
कौशल किशोर

PD said...

सर जरा सा बस मेरे इस पोस्ट पर नजर डाल लें.. कुछ आपके इस पोस्ट सा ही लिखा है.. :)

PD said...

http://prashant7aug.blogspot.com/2008/10/blog-post_03.html

रज़िया "राज़" said...

और जब आसमान से नीचे का नज़ारा देख़ुंगा तो....मेरी माँ अपनी फ़टी साडी में किसी अमीर के बर्तन साफ़ कर रही होगी। छोटा भाई माँ के दूध के लिये रो रहा होगा। मेरा बाप अपना बिमार बदन लेकर कराह रहा होगा। मेरी बहन उसे मज़बूर निगाहों से देख रही होगी।
ना जाने क्या अंत होगा हमारा!

Pawan Nishant said...

एक दिन जब मैं पतला हो जाऊंगा
खंभे पर लटका मिलूंगा या
तारों पर चल रहा होऊंगा,
प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के जैसी
सड़क की तरह बिछा मिलूंगा अपने गांव में
पर नहीं जाऊंगा दूसरे शहर
सबसे पहले अपने अंदर के आदमी से लड़ूंगा
और दोनों को लड़ते देख सकूंगा साक्षी भाव से
एक दिन जब मैं पतला हो जाऊंगा
पतले आदमी का पसीना
इत्र की तरह खुश्बू बिखराता जाएगा
गांव,मोहल्ला,गली,दिल्ली और कोलकाता तक
और अगले चुनाव में समर्थन देने से पहले
प्रकाश करात को सौ जगह दस्तखत करने पड़ेंगे
पतले आदमी के जिस्म पर
pawan nishant
http://yameradarrlautega.blogspot.com