इन दिनों पत्रकार साहित्यकारों से कम मिलते हैं। ऐसे ही एक बेशकीमती वक्त में आज सुबह बीरेंद्र कुमार बरनवाल जी से मुलाकात हो गई। कृष्णमोहन झा हमारे घर आए थे जाते वक्त हमें भी साथ ले गए। बहुत बातें हो गईं। पंडित रामनरेश त्रिपाठी का संकलन ग्रामगीत मेज़ पर रखा था। बरनवाल जी ने कहा कि हिंदी कविता के आदि पुरुष हैं पंडित रामनरेश त्रिपाठी। गांधीजी से भी उनका संवाद हुआ करता था। हिंदी के साहित्यकारों की एक उदारता बेमिसाल है। उनकी किताब भले ही प्रकाशक लाइब्रेरी की कालकोठरी में डाल दें और दुनिया के बाज़ार से गायब कर दें लेकिन हिंदी का साहित्यकार अपनी किताब मुफ्त में भेंट कर देता है। बिना मुझसे पूछे,बरनवाल जी ने जिन्ना एक पुनर्दृष्ठि भेंट कर दी और इसी के साथ अश्वेत साहित्यकार और नोबेल पुरस्कार विजेता नाइजीरिया के कवि वोले शोयिंका की किताब भी दी। कहा अश्वेत साहित्य के बारे में बहुत कुछ पता चलेगा। अंग्रेजी के कुछ साहित्यकारों व लेखकों से मिलना हो जाता है। वो कभी अपनी किताब मुफ्त में भेंट नहीं करते। अक्सर दुकान का पता बताते हैं। कहते हैं ज़रूर खरीदों। इससे एक लेखक की ज़िंदगी जुड़ी है। बहरहाल मुफ्त की किताब मेरे लिए बेशकीमती हो गई है।
जिन्ना एक पुनर्दृष्टि काफी चर्चित रचना है। हंस से लेकर किताब में ढलने के बाद भी इसकी अहमियत है। किताब की भूमिका के कुछ अंश दे रहा हूं।
जिन्ना सच्चे तत्वों से बनें हैं। सांप्रदायिक पूर्वाग्रह से मुक्त वह हिंदू-मुस्लिम एकता के सर्वश्रेष्ठ राजदूत हैं। गोपाल कृष्ण गोखले।
जिन्ना मुझे उस शख्स की याद दिलाते हैं, जो अपने मां-बाप दोनों को कत्ल कर अदालत से इस बिना पर माफी चाहता है, कि वह यतीम है। जवाहर लाल नेहरू
इतिहास सामान्यत ग्लेशियर की अदृश्य मन्थर गति से रेंगता हुआ चलता है, पर कभी-कभी उसमें प्रपात का आवेश-भरा वेग भी आ जाता है। कुछ ऐसा ही अप्रतिम वेग भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की धारा में सन १९३७ से लेकर १९४७ के दौरान आया, जिसने विश्व के लगभग पांचवें हिस्से की नियति को बड़ी गहराई से प्रभावित किया।
इसी भूमिका में बरनवाल जी अपनी मां की कथरी पर लिखी दो पंक्तियों की एक कविता का भी ज़िक्र करते हैं।
हम ग़रीबों के गले का हार वन्दे मातरम
छीन सकती है नहीं सरकार वन्दे मातरम।
बरनवाल जी से मुलाकात अच्छी रही। कृष्णमोहन झा ने कविता संग्रह भेंट की। मैथिली में आई है यह कविता संग्रह। एक टा हेरायल दुनिया। अंतिका प्रकाशन का कारनामा है।
14 comments:
रविश भाई आजकल आप कमाल की रिपोर्टिंग कर रहे हैं, कल आपका कोसी वाला एपिसोड देखा , जितनी तारीफ करूँ कम है, मुझे अपना फेन मानिये शुभकामनायें आपको
raveeshji
bahut achcha likha hai aapney.aise prasang kutch nai dirishti dete hain. kabhi fursat ho to mare blog per bhi aaiye.
कई बार किताबें मन को ललचाती हुई घर तक आ जाती हैं लेकिन पढ़ी नहीं जा पाती। जिन्ना एक पुनर्दष्टि किताब मेरे पास भी है,पर पढ़ नहीं पाई। अब पढ़ूंगी।
रवीश भाई । बरनवाल जी का दफ्तर मुंबई में कई साल हमारे दफ्तर के ठीक बगल में हुआ करता था, कई बार उनके सान्निध्य ( और उनके साथ लंच ) का सौभाग्य मिला । बातें, बहसें, फटकार सब हुई । मुंबई में उनकी दिव्य उपस्थिति से हम हमेशा ही धन्य रहा करते थे ।
विविध भारती के लिए उनका एक लंबा साक्षात्कार किया तो और भी मज़ा आ गया ।
उनके जीवन के कुछ और पहलुओं का पता चला । आज आपने उनकी याद दिलाकर हमें थोड़ा सा दुखी कर दिया है ।
क्योंकि एक अच्छे शख्स की कमी खटकती है इस शहर में ।
हम ग़रीबों के गले का हार वन्दे मातरम
छीन सकती है नहीं सरकार वन्दे मातरम।
रविश जी। बरनालजी कि कविता की दो पंक्तियाँ बहुत कुछ सिख़ दे जाती हैं।
मैं इनमें कुछ अपने शब्द जोडकर कहुंगी कि..
"इसको जो बाँटे उसे में देशद्रोही ही कहुं,
ये तो है इस देश का उपहार वन्दे मातरम।"
हिन्दी के साहित्य और हिन्दी के साहित्यकारों का कोई जवाब नहीं होता है. उनकी तुलना मुझे लगता है कि किसी और से नहीं की जा सकती है.
''जिन्ना सच्चे तत्वों से बनें हैं। सांप्रदायिक पूर्वाग्रह से मुक्त वह हिंदू-मुस्लिम एकता के सर्वश्रेष्ठ राजदूत हैं। गोपाल कृष्ण गोखले।'' इन पंक्तियों से थोडी नाराजगी है मुझे क्योकि जो भारत कि अखंडता को नुकसान पहुचने वाला हो वो कभी भी सच्चा तत्व नहीं हो सकता है.
"हम ग़रीबों के गले का हार वन्दे मातरम
छीन सकती है नहीं सरकार वन्दे मातरम।"
बरनवाल जी कि ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.
ravishjee, 17 tarikh ko nav bharat times me jo bihar aur kosee ko lekar aapke lekh me kai trutiyan hai, aisee galtee aapke lekh kee visvassneeyta sandidgh kartee hai. maslan isme prachand kp pahle pradhanmantree aur bad men aapne rashtrpati kee sapath lena likha hai.
jahan tak meree jankaree hai is bar jaganath mishra ke ganv ka jo jikr aapne kiya hai, vahan badh nahee aayee hai.
इस पोस्ट को देखकर एक किताब की याद आ गई. मुद्राराक्षस की संपादित की गई 21वीं सदी कुछ सर्वश्रेष्ठ दलित कहानियां.... पढ़कर मन मस्तिष्क में आग लग जाएगी. सब की सब केवल कहानियां मात्र नहीं हैं, इनमें से ज्यादा सच्ची घटनाएं हैं. राजकमल प्रकाशन की है अगर मैं गलत नहीं हूं तो....
इसे पढ़ना अच्छा लगा!
Nice blog dude...
ravish ji. maithili ki dasha dekhkar man prafullit hua. koi to hai jo jinda rakhe hue hai hamari virasat ko. warna aaj kal to bhasha ki dhazzi udi hui hai.
ravish ji danik Hindustaan men aapakaa kalam blogvarta padh kar mujjhe bhi blog banaane ki sujhi. Jinna par kitab bhi padane ka man ban gayaa aap ki post dekh kar. Shukriyaa
रवीश जी,
वीरेंद्र कुमार वर्नवाल की किताब जिन्ना एक पुनर्दृष्टि पहले कथादेश में धारावाहिक रूप से छपी थी - हंस में नहीं.
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