रात गुज़रती है तपती दुपहरी में
दिन निकला है रात चांदनी में
कुछ ठंडी आहें मुझे सुला रही हैं
कुछ जलती आहे मुझे जगा रही हैं
अधूरे ख़्वाबों का हमने महल बनाया
पूरे ख़्वाबों का उसमें पर्दा लगाया
इश्क की छोटी छोटी खिड़की से
उसकी कड़ियां खनक रही हैं
कई बार वो आकर चली गई
छत पर आहट टहल रही
इस शहर की आपाधापी में
कुछ यार भी थे कुछ दुश्मन भी
सब छूट गए जो मिलते थे
जो नहीं मिले वो याद आते हैं
रात गुजरती है तपती दुपहरी में
दिन निकला है रात चांदनी में
हो जाने दो जब ऐसा होता है
ऐसा अक्सर कब होता है
सूरज की चांदनी रौशनी में
तपती दोपहरी नहा रही है
चांद की तपती रौशनी में
ठंडी हवा अलसाती है
इश्क की इस धरती पर
दिन रात भी खूब बदलते हैं
कभी चांद को गरमी आती है
कभी सूरज भी आहे भरता है
रात गुजरती है तपती दुपहरी में.....
( आज दोपहर आनंद बख्शी मेरे सपने में आए। उन्होंने कहा कि तुम दिल्ली छोड़ मरीना बीच पर लिट्टी चोखा बेचा करो, एक दिन गीतकार बनोगे, मैंने कहा मैं हीरो बनना चाहता हूं तो आनंद बख्शी ने डांट दिया कहा सुनो, एक फार्मूला बताता हूं, बालीवुड में हीरो के बिना भी फिल्में बन जाएंगी लेकिन गाने के बिना हर्गिज़ नहीं। हम गीतकार अजर अमर हैं। जब लोग फिल्म को भुला चुके होते हैं तब भी दुनिया हमारे गाने को सुनती है)
5 comments:
एक दम सही लिखा आपने । अच्छा लगा।
Bilkul Sahi baat kahi hai kee.. Bhale hi Log film ke Hero-Heroine ko Bhula denge..Lekin acche gaane hamesha sune Jaayenge aur Yaad rakhe jaayenge.
आनंद बख्शी की बात मान कर आपने अच्छा किया. अच्छे खासे गीतकार बन गए हैं आप. लिखते रहिये.
हैँ बहुत ही ख़ूबसूरत यह विचार
चाहता है दिल पढेँ हम बार बार
इनमेँ असरी आगही की हे झलक
देखते हैँ ख़्वाब हम सब बेशुमार
ख़्वाब से है ज़िंदगी मेँ दिलकशी
है बहुत आनन्ददायक इंतेज़ार
आप बन जाएँगे शायर ऐ रवीश
वक़्त होगा एक न एक दिन साज़गार
मेरे बलाग पर ख़ूबसूरत और उत्साह वर्धक कमेन्ट के लिए धन्यवाद.- मैँने आपकी इच्छानुसार अपना कंटैक्ट नम्बर भेज दिया था
डा अहमद अली बर्क़ी आज़मी
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