आश्रम जाम का रोमांस- मुलाक़ात रागदरबारी से

सड़क के कोरिडोर बनने के इस नए दौर में आश्रम फ्लाईओवर से उतरते हुए बेचैनी बढ़ती जा रही थी। जाम के इस साझा सामूहिक दर्द को अब क्यारियों में बांट दिया जाएगा। रूई की तरह सिर्फ बस वाले उड़ाने भरते निकल जाया करेंगे। बाकी लोग अपने अपने लेन में फंसे रहेंगे। सरकार की नज़र आश्रम की तरफ फिर गई तो क्या होगा। लौट रहा था दक्षिण दिल्ली के उस छोर से जहां अंबेडकरनगर, देवली गांव,खानपुर और मदनगीर के तमाम कारीगर,कामगार हरी रंग की एक शानदार सी बस में चले जा रहे थे। उनकी बस को एक सीधा और खुला रास्ता दे दिया गया है। हिंदुस्तान के मध्यमवर्ग की राजधानी दिल्ली के कारवाले कुढ़ने लगे हैं। उनकी कार के कंधे एक दूसरे से टकराने लगे हैं। बाइक और कारसाइकिल किनारे धकिया कर क्यारी में बंद कर दिये जा रहे हैं। सड़कों के इतिहास में पहली बार बस वालों से कार वाले जलभून रहे हैं। इसी लेन में अपनी कार में आने वाले पत्रकारों ने कलम निकाल ली। गियर बदलने से पहले वो ख़बर लिख दी। बीआरटी कोरिडोर को लेकर बवाल मचा दिया। उधर बसों में धक्का मुक्की खा रहे लोगों ने अपनी कमीज़ की क्रीज़ सीधी कर ली और महिलाओं ने बाल खोल दिए। रेडियो एफएम पर हंसोंड़ सुड आ गया। हैलो पार्टी पीपल, आज बस का सफर कैसा है। कहीं आप क्नॉट प्लेस की बजाए सैनिक फार्म तो नहीं जा रहे। हा हा...ही ही...करता हुआ सुड कहता है बेचारे कार वाले। तमाम बंदिशों का जीवन। सीट बेल्ट, सिगरेट नहीं, फोन नहीं, और चलो तो चींटी की तरह,एक दूसरे के पीछे। बस वाले ठीक है। लंबी बस में आगे पीछे घूम सकते है। बाय बाय पार्टी पीपल।

रागदरबारी की वो पहली पंक्ति याद आने लगी- शहर का किनारा। उसे छोड़ते ही भारतीय देहात का महासागर शुरू हो जाता था। लेखक श्रीलाल शुक्ल लिखते हैं चालू फैशन के हिसाब से ड्राइवर ने ट्रक का दाहिना दरवाज़ा खोलकर डैने की तरह फैला दिया था। इससे ट्रक की ख़ूबसूरती बढ़ गयी थी, साथ ही यह ख़तरा मिट गया था कि उसके वहां होते हुए कोई दूसरी सवारी भी सड़क के ऊपर से निकल सकती है। लेखक बता रहे हैं कि सड़क का खुलापन और ड्राइवर की दादागिरी में कैसा गहरा संबंध है। अब सड़क के कोरिडोर बनने के ज़माने में श्रीलाल शुक्ल क्या लिखेंगे पता नहीं। सोचता हुए अपनी कार का हैंडब्रेक ऑन कर दिया। लग रहा था कि श्रीलाल शुक्ल कह रहे हैं कि ऐ आश्रम जाम के लेखक देखो मुझे कितना मज़ा आ रहा है, देखकर इस जाम में कि ड्राइवर ट्रक को कैसे सहमा सहमा सा सरका रहा है। लगता नहीं कि वही ट्रक और ड्राइवर है जिस मैंने डैने फैलाये दौड़ते देखा था। भला हो इस ट्रैफिक जाम का जिसने स़ड़क पर सबको बराबर कर दिया है। क्या राजा क्या रंक सब फंसे है। अतिसुंदर। मगर बातें अतीत की हो चुकी हैं। भारत की रचना संसार में अब सड़क को खुलेपन के प्रतीक के रुप में नहीं बल्कि संकीर्ण सफर के रुप में देखने का वक्त आ गया है। हर लेखक को आश्रम जाम से गुज़रना ही होगा। बिना जाम में गए रचना में नई जान नहीं आ सकती।

आज हर शहर का अपना एक आश्रम है जहां कई दिशाओं से आने वाले लोगों की रफ्तार थम जाती है। गंगासागर जैसा लगता है। हर शाम को पास से गुज़रती सभी मॉडल की कारों को एक जगह देखकर यकीन हो जाता है कि उनकी कार का मॉडल भले ही अलग हो, जाम का दर्द एक ही है। भारतीय समाज में कार का आगमन सामाजिक गतिशीलता और हैसियत की हौसला आफ़ज़ाई करने के लिए हुआ है। सामाजिक रूप से हम आगे बढ़ चुके हैं यह बताने के लिए कार से बेहतर कोई और उपभोक्ता सामान नहीं। आपके पास घर हो और कार नहीं तो आप हैसियतवालों में शुमार नहीं होंगे। घर नहीं है लेकिन कार है तो क्या बात। मगर अब कार का मतलब गतिशील होना नहीं बल्कि कार सहित किसी जाम में गतिहीन होना हो गया है। इस बीच घंटो जाम में एक ही कार में बैठे बैठे उकता चुकी उस महबूबा को मैंने उसके प्रेमी से लड़ते हुए देख लिया। मोहब्बत में आगे बढ़ने की ज़िद से कार का दरवाज़ा खुलता है। इससे पहले कि प्रेमी स्टियरिंग छोड़ कर उसे बुलाता...पीछे खड़ी कारों ने हार्न बजा कर
कार सरकाने के लिए मजबूर कर दिया। लेकिन बगल की सीट से उतर चुकी महबूबा की कोई मजबूरी नहीं थी। वो मोहब्बत के इस घुटन से आज़ाद हो चुकी थी। वो फंसा रह गया था। जाम में। आश्रम में। श्रीलाल शुक्ल को अपनी कथा सुनाने के लिए

4 comments:

Ranjan said...

बहुत बढ़िया - ऐसा ही लिखते रहे !

अभय तिवारी said...

बढ़िया लिखा हमेशा की तरह.. पर ये सार्वजनिक यातायात वाला मामला संजीदा है..एक तरफ़ तो सरकार पहले हर आदमी को कार बाँटने के लिए टाटा आदि को बढ़ावा दे रही है..और दूसरी तरफ़ सार्वजनिक यातायात को बेहतर बनाने की अधकचरी योजनाओं को बना कर मुँह के बल गिर रही है.. सब कुछ एक बेतरतीब तरीक़े से चल रहा है.. ऐसे दृश्य न बने तो अचरज होगा..
इस पर सृजन शिल्पी ने भी एक विस्तृत लेख लिखा था..

acdc_deewana said...

kya bat hai ravish chagaye

Anonymous said...

PUBLIC TRANSPORT JINDABAD... CAR WALE METRO TAK TO PAHUNCH GAYE, JIS DIN BUS TAK PAHUNCH JAYENGE ... JAAM SE CHUTKARA BHI MIL JAYEGA... DTC DIPO ME BHI PARKING KI SUVIDHA HAI, BILKUL METRO KI HI TARAH... SHRI LAL SHUKL KE RAG DARBARUI KA JIKRA BAHUT ACHCHA HAI...