हर घर का एक खानदानी मिथक होता है। कोई किसी दिन यात्रा नहीं करता तो कोई खास त्योहार नहीं मनाता। भले न अमल करता हो मगर इस तरह के मिथकों और आशंकाओं के वजूद से वाकिफ होता है। हमारे परिवार में भी ऐसे तमाम मिथकों के अलावा एक और किस्सा सुनने को मिला। बल्कि सुनाई दे गया। हमारी बुआ शोक में जमा हुए परिवार को बंशबेली बता रही थीं। कह रही थीं कि पांच पीढ़ी पहले के दादा जी (आप परदादा और उससे आगे भी कुछ जोड़ सकते हैं) पांच भाई थे। लेकिन एक भाई सांप था। जिनका नाम नर्मदेश्वर बाबा था। बड़ी बुआ बताती जा रही थीं। कहने लगीं कि तब की दादी के गर्भ में चार पांच सांप के बच्चे निकले। सब इधर उधर भाग गए लेकिन एक सांप घर में अनाज रखने की बेढ़ी के पीछे छुप गए। इनका नाम नर्मदेश्वर रखा गया। नर्मदेश्वर बाबा मज़दूरों के साथ खेतों पर जाते थे। फिर दोपहर में घर आकर उनके लिए हरवाही ले जाते थे। हल जोतने वाले मजदूरों के लिए दोपहर का खाना पानी हरवाही कहलाता है। दोपहर के वक्त घर की देहरी पर उन्हें देखते ही औरतें समझ जाती थीं कि नर्मदेश्वर बाबा हरवाही के लिए आए हैं। फिर कोई अपने सिर पर हरवाही लिये चला जाता था और बाबा पीछे पीछे जाते थे। नर्मदेश्वर बाबा घर में आराम से आते जाते थे। घर में ही रहते थे। बाकी चार भाइयों के साथ एक ही पांत में खाना खाते थे। जब बंटवारे का वक्त आया तो संपत्ति के पांच हिस्से किए गए। बाबा की मर्जी पूछी गए तो उन्होंने हमारे परदादा के हिस्से पर अपना फन रख दिया। यानी मान लिया गया कि उन्होंने अपना हिस्सा हमारे परदादा को दे दिया है। नर्मदेश्व बाबा किसी को नहीं काटते थे। लेकिन एक दिन अकेले खेत की तरफ जा रहे थे तो किसी गांव के लोगों ने लाठी से मार कर उनकी हत्या कर दी और एक पेड़ पर टांग दिया। आज भी बड़ी मां उस पेड़ पर नागपंचमी के दिन जल चढाती हैं। बड़ी फूआ की इस कहानी पर हैरान हुआ जा रहा था। घर के पुरुषों को इस कहानी का अता पता नहीं था। महिलाओं के पास जाने कब से सुरक्षित पड़ी थी। समाजविज्ञान में इसकी सत्यता और प्रक्रिया के बारे में गहन अध्ययन हो चुका है। सांप की यह कहानी तमाम भारतीय परिवारों में अलग अलग रूप में मौजूद है। कैंब्रीज विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले सत्येद्र श्रीवास्तव की अंग्रेजी में लिखी यह कविता ऐसे ही मिथकीय रास्ते पर चलते हुए सांप और बच्चे की भावना को व्यक्त करती है। अगर इस पारिवारिक मिथक और उनकी कविता को मिलाकर पढ़ा जाए तो शायद दिलचस्प हो सकता है। हम सब के घरों में ऐसी कहानियां दफन हैं। बस किसी बुआ किसी मौसी के साथ वक्त गुज़ारने की फुर्सत मिल जाए।
Ancestral Cobra
For the Children of Nagpuri
The cobra did not have
Any ancestral value
Yet the womenfolk left
A bowl of sweet milk every night
Near the women's bathing place
And the Children's curiosity
Took them at the crack of every dawn
To find out it the snakes has come
And drunk the milk
In the night
And after finding the milk still
Unconsumed they laughed
And taunted their mothers
Why do you waste milk like this, Ma?
There aren't any cobras now
They are all dead
History Kaput
My mother with wet tears
And rolling eyes thereupon would only say
My dearest you don't understand
You are not a mother
A mother knows the pain of carrying
A child in her womb for nine months
In this old village one mother
Carried a cobra baby as I carried you
That mother was bathing right there
A cobra passed by
She panicked
Folded her palms and prayed
O Cobra, please don't hurt me
The cobra stood erect for a moment
And looked at her as if spellbound by her beauty
Spat out a white liquid that fell
Almost between her legs
Nine months later she gave birth to a cobra baby
In this family by providing milk
We say to the world that babies are babies
Human or Cobra
( Between thoughts- Satyendra Srivastava, Samvaad Prakashan, meerut, mumbai India)
17 comments:
अभी तक हमारे घर में तो नहीं पर बगल के ही गाँव में एक ऐसा ही परिवार है जिसमें उसी तरह एक साँपो बाबा ने अवतरण लिया था. ये बात जान लेने पर अभी भी लोग उस घर में लड़कियां लेने या देने में हिचकते हैं.
सर आप से एक गुजारिस है...हमारे ब्लोग parisamvad.blogspot.com की लिंक आप कस्बा पर रखे तो ख़ुशी होगी...
प्रबीन बारोट
तो सांप के वशंज हैं आप
:)
राजीव जी
बहुत खूब। हा हा।
'Hindu' manyta ke anusar
Her manav mein saanp ka ansha hai
Sarpa ka hi nahin
84 lakh praniyon ka bhi...
Cobra se hi Yogi jane gaye
'Kundalini shakti' jagane wale...
Bharat mahan tabhi kahlaya
Yogeshwar Shiva ke karan!
वाह रवीश जी...बड़ा दिलचस्प जिक्र छेड़ दिया है...ननिहाल याद आ गया...साथ में बिच्छू और सांप की वो तमाम कहानियां याद आ गई...जो नानी मौसी की गोद में दुबक कर सुनी थीं...
रवीश जी क्या कहेगें...उम्र का ऐसा क्या ताल्लुक है ऐंसे मिथकों के साथ...कि ये किस्से अक्सर हम अपनी दादी या नानी से सुनते हैं...
रवीश भाई। हम किस्से कहानियों के देश के लोग हैं। इन सब चीजों से अछूते कैसे रह सकते हैं। बाकी जागरूकता फैलाने का ठेका कुछ टेलीवीजन चैनलों ने ले ही लिया है। जिनपर दिन भर ऐसी खबरें चलती रहती हैं।
Channel walon ke hath mein mike
Teesre netra se
Athva Arjun ke saman
Divya-chakshu se
Hindu ko Shivling dikhai dega
Anya ko ice-cream cone!
शायद हम सापों की ये कहानियां आदम और हव्वा के जमाने से सुनते आ रहे हों...पीढी दर पीढी...कि कैसे सांप ने ही उस खास फल को खाने के लिये प्रेरित किया और सब कुछ बदल गया.
मजा आ गया. हमारे गाव मी सांप और विछु के किस्से मशहूर थे. हमारे यह आज भी एक नाग बाबा की पीरी है. जहा नागपंचमी के दिन पूजा होती है.
हमारे परिवार में भी ऐसी ही एक कहानी प्रचलित हैं किंतु उसमे साँप का स्थान चील ने लिया है।वैसे चील ने हमारे वंश में जन्म तो नही लिया लेकिन मैंने ऐसा सुना हैं की हमारे वंश का अस्तित्व उसकी ही देन है। रवीश जी का आपका धन्यवाद आपके इस ब्लॉग को पढ़कर मेरी इस कहानी को जानने की उत्सुकता बढ़ गई है
चलिए आस पास की ऐसी कहानियों के संसार से मिथक को ढूंढते हैं। मज़ा
Parvati putra Ganesha
Gaj-mukh aur lamboder
Modak priya phir bhi shakti-shali
Shiva ki kripa se ban paye
Janani-kripa se matri-bhakta bhi!
Ek aur ma ne bhi
Shayad isi katha se prabhavit ho
Swapna mein garbha mein gaj dekha
Aur Gautam Buddha ko janma diya!
Baki to itihas hai…
रवीश.
मैने भी अपना ब्लॉग शुरू कर दिया है. नाम है merikahi.blogspot.com मौका मिले तो ज़रूर देखना.
अखिलेश शर्मा
रवीशजी, संभव हो तो मेरे ब्लॉग anshurstg.blogspot.com को भी कस्बा पर लें।
जब का ये ब्लॉग लिक्खा है उसी साल 2008 में ही दीपा मेह्ता की फिल्म आयी थी इसी मिथक पर आधारित हेवेन ऑन अर्थ.बहुत पसंद आयी थी तब मुझे.ये पढ़कर याद आया.मैं तब एम.ए. first year में थी जे.एन.यू. में.एक बार फिर से वो फिल्म देखूंगी.अब और ज़्यादा समझ पाऊँगी.
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