गठबंधन की राजनीति में सियासत के ये परमाणु परीक्षण कई बार हो चुके हैं। अक्सर ये परीक्षण अचानक होते हैं। कई बार पहले से भी पता होता है कि फलां मुल्क नुमा दल समर्थन वापसी का परीक्षण करने वाला है। उसने अपनी नई मिसाइल टेक्नॉलजी तैयार कर ली है। फार्मूला बन गया है। बस जिसकी सरकार होती है उसके कुछ नेता तुरंत इंटरनेशनल एटोमिक एनर्जी एजेंसी के एजेंट की तरह सक्रिय हो जाते हैं। पता करने लगते हैं कि बाकी दल क्या कर रहे हैं? बाकी दलों से समर्थन वापसी का परीक्षण करने वाले दल पर दबाव डलवाते हैं। जो दल वापसी पर आमादा है उसे अलग थलग करने की कोशिश करने लगते हैं।
भारत अमरीका परमाणु करार पर वामदलों का मामला कुछ ऐसा ही लगता है।उनकी नाराज़गी को सत्तारुढ़ दल के एजेंट(आईएईए) बेवजह बताने लगते हैं। मगर नाराज दल अपनी बात पर अड़ा रहता है। गठबंधन की घुटन से तंग आकर वह कुछ जायज़ मांगें उठाता है।कहता है कि उसके बूते सरकार है मगर उसकी मांगे कोई मानता नहीं। हिंदुस्तान की राजनीति में यही हो रहा है। पहले भी हो चुका है। संयुक्त मोर्चा सरकार के समय में हर वक्त समर्थन वापसी का परीक्षण होता रहता था।बाद में मान जाते थे। सरकार चल जाती थी।लेकिन एक दिन धमाका हो गया और संयुक्त मोर्चा की सरकार चली गई।
कांग्रेस के नेता भी इसी मौज में हैं।उन्हें लगता है कि प्रतिबंध यानी चुनावी राजनीति में खराब प्रदर्शन के भय से वामदल सरकार नहीं गिरायेंगे।और अगर ऐसा करेंगे तो कांग्रेस फायदे में रहेगी क्योंकि उसे प्रतिबंध यानी घेरने का मौका मिलेगा। वह कह सकेगी कि पार्टी विश्व शांति के लिए काम करेगी।वामदल इराक अफगानिस्तान की तरह खाक होकर किसी और दल का सहारा मांगते फिरेंगे।कांग्रेस का इरादा अमरीका जैसा लग रहा है।इसीलिए एसएमएस पोल के जरिये सौ लोग बता रहे हैं कि मनमोहन सिंह ठीक हैं। वामदल नहीं हैं। अमरीका के कुछ भी करने के लिए तैयार होने की तर्ज पर कांग्रेस भी खुद को तैयार बता रही है।
बहरहाल भारत की राजनीति में पोकरण तृतीय का माहौल बन रहा है। इसका देसी संस्करण सती होना भी है। सीपीआई के एबी बर्धन ने एनडीटीवी से कहा कि सरकार इस मुद्दे पर सती होना चाहती है तो हम क्या करें। यानी वामदल अपने अस्तित्व को बचाने के लिए समर्थन वापसी का परीक्षण कर सकते हैं। बर्धन साहब बिल्कुल भारत की तरह बोल रहे हैं। कि हम शांतिपूर्ण परीक्षण करेंगे। प्रतिबंध की बात अमरीका यानी भारत सरकार तय कर ले। वामदल यानी भारत और कांग्रेस यानी अमरीका दोनों खूब जानते हैं कि समर्थन वापसी का परमाणु परीक्षण कई बार हो चुका है। इसमें पहले प्रतिबंध लगते हैं। फिर बातचीत होती है फिर समझौता होता है। फिर परीक्षण हो जाता है। गठबंधन की राजनीति में समर्थन वापसी का परीक्षण नया नहीं है।
7 comments:
to kya MMS ki SARKAAR ko SMS nahi bacha Payega ? aap Patrakaron ko ANDAR-BAHAR sab kuchh ka Khabar rahata hai ! Off the Record , kuchh bata hi digiye :)
बिल्कुल सच कुछ ऐसा ही है..लेकिन आपको नहीं लगता..रवीश जी.. सरकार के होने या ना होने को लेकर अब किसी तरह की बैचैनी नहीं रही...ये सरकार भले परमाणु मुद्दे पर गिरे..लेकिन अगला चुनाव तो आम लोगों को हिन्दू मुसलमान और जातियों में बांट कर लड़ा जाएगा..
अजीब सिचुएशन है,
पहले हनीमून खत्म हुआ, अब सती की बात कर रहे है। इन बयानो के कारण पहले तो वामपंथियों को अन्दर करो, पहले बैडरुम की बाते बाहर ला रहे थे और अब सतीप्रथा को बढावा देने की बात कर रहे है।
रही बात सरकार की, उसके पास पहली पारी की बढत है, इसलिए फालो-आन का खतरा नही, अलबत्ता बारिश के कारण मैच ही रद्द हो जाए तो बात अलग है, फिर भी अगले मैच मे मनौवैज्ञानिक रुप से बढत तो रहेगी ही।
लेकिन मै सोचता हूँ कि ये ड्रामा जल्दी ही खतम हो जाएगा,कैसे? अरे वैसे ही ’फेस सेविंग’ के रुप मे एक उच्चतम स्तरीय कमेटी बन जाएगी जो दो साल(शायद रिपोर्ट कभी ना आए) तक अपनी रिपोर्ट देती रहेगी...।इस कदम से वामपंथी अपनी जीत की खुशी मनाएंगे और अपनी पीठ थपथपाएंगे कि उन्होने बीजेपी शक्तियों को सरकार बनाने का मौका नही दिया। उधर सरकार अपने तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार परमाणु संधि पर आगे बढेगी।
सरकार भी खुश, वामपंथी भी खुश, दु:खी तो सिर्फ़ लोग, जो (इस घटनाक्रम के चलत) शेयरमार्केट की मंदी मे लुट चुके होंगे, लेकिन इन लोगो का दर्द, नेताओं की बयानबाजी मे दबकर रह जाएगा।
सर
मुझे एेसा लगता है कि वामपंथी अपनी विचारधारा के उद्गम से हट रहे हैं। चीन जैसा देश भी परमाणु संधि कर चुका है। एेसे में हम (उभरती हुइ अाइटी ताकत अाैर अर्थव्यवस्था) भला पीछे क्याें रहें।
ravishji badhai ho qasba ke naye kalevar aur apke teekhe tevar ko..
नए कलेवर में तेवर बरकरार रखने के लिए बधाई
कल वाले ले आउट से ज्यादा अच्छा है उसमें पढने में भी परेशानी आ रही थी।
ravishji Qasba ko mohalla mein seemit kar diya apne..
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