नोट पर अंबेडकर

दिल्ली विश्वविद्यालय का एक कालेज है हिंदू कालेज। वहां इतिहास के एक लेक्चरर हैं रतन लाल। मेरे मित्र भी। रतन दलित आत्मविश्वास और सवर्ण समझ के बीच पुल बनाने का काम कर रहे हैं।

रतन का एक प्रस्ताव पर मैं चौंक गया। उनका कहना है कि भारतीय नोट पर महात्मा गांधी के अलावा अंबेडकर की भी तस्वीर होनी चाहिए। उनकी दलील है कि जब अंबेडकर की तस्वीर होगी तो हम सब उनका सम्मान करेंगे। मूर्तियां तो तोड़ी जा सकेंगी मगर नोट कोई नहीं फाड़ेगा। अंबेडकर हर किसी की जेब और पर्स में रहेंगे। लोग संभाल कर अपने ऊपर की जेब में रखेंगे। अंबेडकर को करीब और महत्व से रखने की यह आदत हर तबके में होगी। उनकी प्रतिमा का अनावरण बंद होना चाहिए और नोट पर तस्वीर छाप कर उनकी मौजूदगी घर घर और हर जेब में बढ़ानी चाहिए। ऐसा हो सकता है क्योंकि एक रुपये से लेकर एक हज़ार तक के नोट में आधे या वैकल्पिक तौर पर अंबेडकर की तस्वीर छप सकती है।

रतन लाल का कहना है कि शादी या धार्मिक कर्मकांड में जब पंडित दक्षिणा या चढ़ावे के लिए नोट मांगेगा तो जजमान गर्व से पंडित के हाथ में अंबेडकर की तस्वीर वाले नोट को थमा देगा। उसकी हिचक खत्म हो जाएगी। अंबेडकर की स्वीकार्यता कर्मकांडों से लेकर बचत योजनाओं तक में होगी। लोग अपने आप अंबेडकर का सम्मान करना सीख जाएंगे। या फिर अंबेडकर से सामान्य हो जाएंगे।

एक सवाल स्वाभाविक है कि क्या गांधी की तस्वीर होने से उनकी स्वीकार्यता बढ़ी है? उनका सम्मान बढ़ा है? तो जवाब में यही कहा जा सकता है कि गांधी और अंबेडकर में फर्क है। गांधी की स्वीकार्यता को लेकर कोई विवाद नहीं। यह भी ठीक है कि लोग गांधी के आदर्श को भूल चुके हैं। लेकिन अंबेडकर की स्वीकार्यता खासकर सामाजिक नहीं बनी है। किसी सवर्ण के घर में अंबेडकर की तस्वीर देखी है? अब तो कोई किसी की तस्वीर नहीं रखता मगर जब रखते थे क्या तब रखते थे? अंबेडकर राजनीतिक रूप से अपरिहार्य हैं। उनकी राजनीतिक सोच आंदोलन है। फार्मूला भी। तो क्या ब्राह्मण दलित गठबंधन की तरह अंबेडकर को भी स्वीकार्य नहीं बनाना चाहिए? क्या यह कदम सांकेतिक तौर पर मदद नहीं करेगा?

क्या उनका सोचना ठीक है? गुरुवार को दिल्ली में रतन एक प्रेस कांफ्रेस कर इसकी जानकारी देने वाले हैं। कई सांसदों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। आप ब्लाग पाठकों का क्या कहना है? रतन उन दलित चिंतकों में से हैं जो यह मानते हैं कि मायावती भ्रष्टाचार के ज़रिये दलित उत्कर्ष का प्रतीक नहीं बन सकती। मायावती का योगदान सराहनीय है मगर दलित आंदोलन कभी इतना खोखला नहीं रहा कि वो भ्रष्टाचार से कमाए पैसे से धनवान बनी एक नेता का सम्मान करे। रतन दलित आंदोलन को नए नज़रिये से समझने की कोशिश कर रहे हैं।

उनका एक प्रस्ताव यह भी है कि जिस तरह से टैक्स छूट में महिलाओं को रियायत दी गई है उसी तरह से दलितों को भी विशेष छूट मिलनी चाहिए। उनका कहना है कि इसका लाभ सवर्ण समाज को होगा। सरकारी नौकरी कम होने से दलितों के पास नौकरी के अवसर कम हैं। लिहाज़ा उनके परिवारों में पूंजी निर्माण नहीं हो रहा। टैक्स छूट मामूली रूप से पूंजी निर्माण में मदद करेगा। दलित का आर्थिक आत्मविश्वास बढ़ेगा और बड़े समाज के साथ आर्थिक संवाद भी।

क्या आपको लगता है कि रतन ठीक सोच रहे हैं? क्या नोट पर अंबेडकर की तस्वीर होनी चाहिए? कई बार सांकेतिक बदलाव भी महत्वपूर्ण होते हैं? तो क्या इससे सांकेतिक तौर पर ही सही कोई फर्क पड़ेगा? क्या टैक्स छूट से दलितों को विशेष आर्थिक लाभ होगा?

31 comments:

Atul Arora said...

This is a novel approach and I think there is no harm in considering it. Again tax rebates to lower income OBC and SC/ST entrepreneurs will also help them sustain in competitive market.

अनामदास said...

वाक़ई अच्छा आइडिया है. अभय तिवारी मुझसे सहमत होंगे शायद.

azdak said...

अंबेदकर महाराज की इतिहास संबंधी खोजों को कोई बड़े या छोटे किसी पैमाने पर अपने देश में अभी तक मान्‍यता नहीं मिली है.. ऐसा हुआ और होता रहा है तो वह सिर्फं अज्ञान व सवर्ण अहंकार में ही नहीं हुआ होगा.. उसके पीछे की सोच सामाजिक अंडरग्राउंड में बड़े गहरे धंसी होगी.. नोट पर अंबेदकर को चढ़ाना, या इस तरह की मांग बहुत आसानी से बहुत बड़े बवाल में बदल जाएगी.. ऐसे बवाल के लिए आप इस वक़्त तैयार हैं? थोड़ा सोचनेवाली बात है.

अनूप शुक्ल said...

बवाल को न्योता वाली बात है। अभी देखिये अम्बेदकर पार्क के नाम पर स्पोर्ट्स हास्टल टूटने की बात हुयी। अम्बेदकर और लोहिया में कुस्ती कराने लगे लोग। कल को गांधीजी और अम्बेदकर को सामने कर देंगे।

ravishndtv said...

बवाल से क्या डरना? मायावती के अंबेडकर स्टेडियम और नोट पर अंबेडकर में फर्क है। रतन लाल की सोच है कि कहीं खेत और मैदान में मूर्ति लगा देने भर से अंबेडकर सबकी सोच में नहीं समा जाएंगे। रतन का कहना है कि मूर्तियां बहुत लग चुकीं। अंबेडकर को और करीब लाने की ज़रूरत हैं।

अनूप जी, रतना का वही तो कहना है कि बवाल करने वाले क्या नोट का इस्तमाल बंद कर देंगे? या फिर अंबेडकर के बारे में नए सिरे से सोचेंगे? रही बात लखनऊ प्रकरण की तो वो इस प्रस्ताव से पहले ही मौजूद है। उसे लेकर मारा मारी हो रही है। प्रस्तावक का इरादा गांधी बनाम अंबेडकर करना नहीं है। जबकि इतिहास में ऐसा ही रहा है। मगर इस वक्त गांधी के साथ साथ अंबेडकर को भी स्पेस देने की ज़रूरत है। वो नोट से गांधी की तस्वीर हटाने की बात नहीं कर रहे हैं। कुछ नोट पर गांधी तो कुछ पर अंबेडकर की तस्वीर लगाने की बात कर रहे

रविकान्त said...

इस आशय का एक आवेदन यहाँ भी मौजूद है, आप सहमत हैं, तो अभियान को अपना स्वर दे सकते हैं:
http://www.petitiononline.com/dufsjer/http://www.petitiononline.com/dufsjer/

शुक्रिया
रविकान्त

Dr. sarita soni said...

ravish ji apki baat sahi hai per aap ye zarur manege ki log dil se kuch manne ke liye ab kuch nahi kerte jo log mante hai wo unko bina note per chhape bhi manege per jo log sirf bawal hi machana chahate hai unko ek naya topic milega train rokne ka buses ko jalane ka aam janta ko pareshan kerne ka ap kyu ambedker ji ki aatma per aur buri khabro ka bhojh itne salo baad dalna chahate hai. ab jo aandolan hote hai wo sirf nukshan kerte hai aur news me aane ke liye hote hai unka sahi galat sach jhoot ya maan sammman se koi lena dena nahi hota. ye gandhi ji ya ambedker ji ha waqt nahi hai jaha log soch ker rai de ye aap jarur manege baki jo hoga wo hum sab dekhege hi.

अभय तिवारी said...

कुछ तो बदलाव आएगा व्यवहार में.. लेकिन मानवीय वृत्ति है अनचाही चीज़ों के प्रति संवेदन शून्य हो जाने की भी..नोट पर गाँधी को देखकर कौन सा गाँधीवादी मूल्य अपने जीवन में उतर आता है.. भगवान का नाम ले ले कर क्या क्या करते है लोग.. सत्व और आवरण एक दूसरे से स्वतंत्र हो कर अलग अलग यात्राओं पर जा सकते हैं.. जाते हैं..
और सीधे सीधे आप के प्रश्न का उत्तर है कि जब गाँधी हो सकते हैं तो अम्बेदकर काहे नहीं..? अगर गाँधी को राष्ट्रपिता की पदवी प्राप्त है तो.. देश का एक बड़ा वर्ग अम्बेदकर को देवतुल्य मानता है..

Madhukar Panday said...

रवीश जी, लगता हॆ कि देश में कुछ लोग शांति से रहना ही नही जानते हॆं. मेरा यह एक निश्चित विचार हॆ कि थोपने से कुछ भी नहीं होगा. जहां तक नोट में अम्बेदकर जी का चित्र छापने की बात हॆ कि उससे उनकी स्वीकार्यता बढ जायेगी ऒर वे एक सर्व समाज के स्वीकार्य नेता होंगे,यह एक दिवास्वप्न के अतिरिक्त कुछ नहीं.आपने स्वयं ही कहा हॆ कि यदि ऎसा ही होता तो इतनी मूर्तियों के लगने के बाद यह प्रश्न खडा ही न होता.रहीं मायावती की बात, तो आज वे दलितों के कुछ अन्य नेताओं में भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गईं हॆं. आज दूसरों को लगता हॆ कि हम दलितों के मसीहा क्यों नहीं बन सकते.यदि दलितों की मसीहा बन कर मायावती करोडों कमा सकती हॆ तो हम क्यों नहीं. "भला उसकी कमीज़ मेरी कमीज़ से सफ़ेद कॆसे." सभी अपने अपने साबुनों का प्रचार कर रहे हॆं कि इसमें यह ज़्यादा हॆ वह ज़्यादा हॆ. यह मॆल को जड से निकाल देता हॆ, वह ज़िद्दी दाग को खींच कर निकाल देता हॆ. कोई कह रहा हॆ कि दाग अच्छे हॆं. यदि ईमानदारी से देखें तो कोई भी नहीं मिलेगा. सब अंबेदकर जी के नाम पर अपनी अपनी राजनॆतिक दूकाने चला रहे हॆं, यह नॊट का प्रस्ताव,मूर्तियों का अनावरण ऒर अनादर,आरक्षण को आगे बढाने का मामला यह सब उसी राजनॆतिक दूकानों को चलाने के लिये एक मार्केटिंग के हथकण्डे हॆं. क्या सवर्ण नेता ऒर उनसे संबन्धित पार्टियां ऒर क्या हरिजन नेता ऒर उनसे संबन्धित पार्टियां, सभी इस राजनीति के बाज़ार का एक अंग हॆं जिन्हें येन केन प्रकारेण अपनी दूकान के लिये ग्राह्क(वोट)चाहिये, असलियत में ये सभी दलित उत्थान से विमुख एवं स्वयं के उत्थान के प्रति चिंतित हॆं.यहां विचार करने की बात हॆ कि क्या इस पूरी जमात में कोई सच में दलितों का शुभचिंतक हॆ.यह एक ऎसा विषय हॆ जिसमें बहुत ही सूराख हॆं. दरअसल दलितों का भला स्वयं दलितों के अलावा कोई ऒर नही कर सकता हॆ, उन्हें सभी पार्टियों के नेताऒं की गन्दी ऒर व्यवसायिक सोच से अलग स्वयं अपने उत्थान की बात सोचनी होगी. आरक्षण की वॆसाखी से दलित को कोई विशेष लाभ नहीं मिला, उनके तथाकथित मसीहाऒं ने अपने लिये तो विदेशी वाहन जुटा लिये, हवाई जहाजों में सफ़र करने लगे, महल बना लिये, हीरे जवाहरात जुटा लिये पर गांव का दलित आज भी पॆद्ल चल रहा हॆ, रहने को घर के नाम पर झोंपडा हॆ, तन ढकने के लिये एक फ़टा कपडा हॆ.वह कल भी गरीब था आज भी गरीब हॆ ऒर उनके राजनॆतिक शुभचिंतकों की दया से आने वाले कल में भी गरीब ही रहेगा. क्यों कि यदि दलित सम्पन्न हो गया तो, आज की तुलना में मानसिक रूप से भी सम्पन्न हो जायेगा ऒर वह राजनीति के इस व्यापार के विग्यापनों की असलियत को समझने लगेगा ऒर उसे इतनी तो समझ आ ही जायेगी कि "पहले इस्तेमाल करें फ़िर विश्वास करें". आज कोई भी पार्टी जो अंबेदकर जी की दुहाई देते रह्ते हॆ, यह नहीं कहती कि उन्होने स्वयं आरक्षण को केवल दस साल के लिये ही लागू करने की बात कही थी, परन्तु हुआ क्या आज भी वह लागू हॆ. ६० सालों में दलित का उत्थान नहीं हुआ,ज़िम्मेदार कॊन? कोई नहीं, ये तो वॆसा हुई कि किसी उत्पाद की सफ़लता देख कर उसकी अंतिम तिथि बढा दी गई हॆ जो कि अनन्त हॆ.जब तक व्यवहारिक रूप में दलितों के प्रति सच्ची प्रेम भावना का जन्म नही होगा तब तक नोट पर छापो या मूर्तियां लगाऒ, कुछ हासिल नहीं होगा सिवाय वॆमनस्य के. मॆ इलाहाबाद के एक ऎसे आश्रम से जुडा हूं जो असहायों की मदद करता हॆ, वहां एक हरिजन रसोइया हॆ जो सबके लिये भोजन बनाता हॆ, सभी जाति, धर्म के लोग प्रेम पूर्वक उसके बनाये भोजन का आनन्द उठाते हॆं. ऎसा इस लिये हॆ कि वहां कोई राजनीतिक दूकान या मह्त्वाकांक्षा नहीं हॆ विशुद्ध मानव सेवा हॆ.हम उसका नाम यहां इस लिये नही ले रहे हॆ क्यों कि प्रचार का वहां पूर्णतया निषेध हॆ. अंत में चलते चलते नोट तो ऎसी चीज़ हॆ कि अगर वह विष्ठा में भी गिर जाये तो भी सभी लोग उसे वहां से उठा कर साफ़ कर फ़िर से अपने ज़ेब में रख लेते हॆं भले ही उस पर अपनी ही फ़ोटो क्यूं न छ्पी हो.स्वीकार्यता उस नॊट की हॆ नकि उसमें छ्पी फ़ॊटॊ की. बडा सवाल यह हॆ कि दलितों की स्वीकार्यता एक मानव के रूप में होनी चाहिये न कि राजनॆतिक व्यापार के एक उत्पाद के रूप में. उसकी स्वीकार्यता वह स्वयं ही बढा सकता हॆ कोई ऒर नही.......

Rajesh Roshan said...

मधुकर जी ने बहुत सही कहा है इस समाज में हर वयक्ति एक वोट बनकर रह गया है । और दलित.... उनके लिए काम करना चाहिऐ ना कि मूर्ति और नोट में तस्वीर । माफ़ कीजियेगा लेकिन रतन लाल जी से कह दीजिए उनके लिए काम करे। दलितो पर अध्धयन करना ठीक है लेकिन उस अध्धयन को विचार के रुप में ना रखा जाये उनपर काम किया जाये ।

Srijan Shilpi said...

रवीश जी,

मुझे नहीं लगता कि बाबा साहब का चित्र नोटों पर छापा जाना दलित चेतना में गुणात्मक उत्थानकी दिशा में किसी भी तरह से सहायक होगा, या यह अम्बेडकर के प्रति सम्मान जताने का एक उपयुक्त तरीका होगा। फिर भी, यदि ऐसा किया जाए तो उसमें हर्ज की कोई बात नहीं। मुझे यह भी नहीं लगता कि इस बात पर देश में कोई स्वाभाविक उग्र प्रतिक्रिया होगी। कम से कम राजनीतिक रूप से अब कोई भी संगठन या पार्टी देश में नहीं है जो अम्बेडकर के प्रति खुलकर विरोध करता हो। अम्बेडकर की मूर्तियों को तोड़े जाने या उनके विरूपण की जो भी वारदातें हुई हैं, वे रात के अंधेरे में अनजान लोगों द्वारा की गई हैं। यह हो सकता है कि कुछ उपद्रवी तत्व इसी बहाने मीडिया की लाइमलाइट में आने का रास्ता तलाश लें।

मेरी राय तो यह है कि नोटों पर से महात्मा गांधी का चित्र भी हटा दिया जाना चाहिए। तमाम काले कामों/कारनामों और काली कमाई में जिन नोटों का इस्तेमाल होता है, उन पर महात्मा गांधी के चित्र का इस्तेमाल होना अशोभनीय ही है। इसके अलावा, इससे हमारे राष्ट्रनायकों के प्रति एक प्रकार का राजकीय तुलनात्मक पदानुक्रम का भाव ही पैदा होता है। यदि नोटों पर राष्ट्रनायकों के चित्र ही छापने हैं तो अलग-अलग नोटों पर छापने लायक कई महान राष्ट्रनायक हमारे यहां हुए हैं। महात्मा गांधी और अम्बेडकर के अलावा नेताजी, भगत सिंह, लक्ष्मीबाई आदि के भी चित्र क्यों नहीं छापे जाने चाहिए?

pawan lalchand said...

ravishji,gandhi ko noton pr chhap kr to hum mano un pr upkar kr unse kanni kat chukein hai. ratan ji chahte hai ki ambedkar ka bhi yahi hal dekhna chahte..?
gandhi ki samajik prathmikta ne hi unhein aaj bhi hamare bheech bachaya huva hai.. mujhe nahi lgta ki not pr gandhi ki tasveer aane se anki upyagita me ratti bhar bhi izafa huva ho..
jahan tak tex chhoot ka savaal hai to ye to btaiye ki ye kaise tay hoga ki koun iska adhikari hai.?
ya fir quota ki tarz pr bannt do malai... dalito mein ..pichhde bhi der saver mang kar hi degen.. or vaise bhi yahan tax dete kitne log hai..

Kundan said...

The idea seems good. However, I have only one doubt. A pundit accepting a dakshina does not give much importance to who is on the currency note. For him ( and I am not gender biased, for India still has to travel a long way before we can use her for pundit), the value of note is of more importance.

ravishndtv said...

दिलचस्प प्रतिक्रिया आ रही है। पाठक मान रहे हैं कि अंबेडकर की तस्वीर से सांकेतिक लाभ भी नहीं होगा। पर मैं एक बात जानना चाहता हूं। राजनीति पहले आती है या जाति। क्या वाकई जाति को लेकर भेदभाव खत्म हो चला है? कई जगहों पर तो हुआ है पर क्या कह सकते हैं कि बहुत जगहों पर हो गया है। अहमदाबाद में दो जातियां एक साथ नहीं रह सकतीं। हममें से कई लोग बदल गए हैं। पर क्या सभी बदल गए हैं? क्या जाति को लेकर भेदभाव सिर्फ राजनीति के कारण है?

आपकी राय में वे लोग भी शामिल हैं जो जातिगत भेद करते हैं। क्या उन लोगों पर भी अंबेडकर की तस्वीर वाले नोट का असर नहीं पड़ेगा? अगर इनमें से कोई अंबेडकर की मूर्ति तोड़ता है या किसी दलित के साथ भेदभाव का व्यावहार करता है तो क्या उसे यह कह कर लज्जित नहीं किया जा सकेगा कि भई अंबेडकर वाले नोट से तो कोई परहेज़ नहीं मगर उनके समाज के लोगों से इतना परहेज क्यों?

आप सब की बहस अच्छी दिशा में जा रही है। काफी कुछ समझने को मिल रहा है। पर पाठक में से भले कोई भेदभाव में यकीन न करता हों। एक बड़ा तबका भी ऐसा हो चला है। लेकिन क्या सब बदल गए

Third Eye said...
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eSwami said...

तस्वीरें व्यव्हार बदल सकतीं तो क्या बात थी!

लोग दीवार के कोनों पर भगवान की तस्वीरों वाली टाईल्स लगा देते हैं की कोई उन पर पान की पीक ना थूकेगा. अहिंदू थूक कर तस्वीरों को पीकों के पूरे नीचे कर देते हैं कुछ दिन में हिंदू भी पीक पर पीक थूकते चले जाते हैं. आंखों देखी बात है.

जिसप्रकार गांधीजी की तस्वीर वाले नोट रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार को कम नही कर सकते उसी प्रकार अंबेडकर की तस्वीर वाले नोट ऊंच-नीच को कम नही कर सकते.

हां अम्बेडकर का कार्य-व-कद है नोट पर छपने लायक!

Unknown said...

Ratanji ke vichar mujhe maulik va prasangik pratit hote hain.unke vicharon mein ek aisa pratikatamaka,bhavanatamaka aur aarthik paksa hai jo meri nazar mein desh ki ekjutata aur samajik samarasta mein aham bhumika nibha sakate hain.
yeh ek katu satya hai ki SAMVIDHAN NIRMATA ki pehchan aaj mahaj DALIT NETA ke rupa mein reh gayi hai.shayad hummein se kayi log,desh nirman mein ambedkarji ke yogdan se anbhigya hain.
pathkon ki pratikriyain padhne ke baad mujhe aashcharya va khed dono hai.aashcharya isliye ki desh ka sikshit samaj aaj bhi ambedkar ka naam,chitra ya murti dekh asahaj ho jata hai.yadi noton per BHARAT RATNA ke chitra chap jane se baval macha jata hai to yeh is baat ka parichayak hai ki hamare samaj mein jati aadharit unch-nich ka bhav bahut gehre tak baithi hui hai.khed isliye ki vishay ki gambhirta aur mahatva ko nimn stariya latifon ke dwara side line karane ka prayas kuch pathakon ne kiya hai.
samvidhan aur rashtra gan ki tarah desh ki mudra RASHTRIYA PRATIK hai,jo pure desh bhar mein ek hai tatha desh ko ek sutra mein bandhati hai.aise mein hamara desh noton per ambedkarji jaise mahapurushon ke chitra uker kar unhein sacche arthon mein shradhanjali de sakta hai.gandhiji ke aadarsh noton per unke chitra dekh kar humein bhale na yaad aate hon lekin noton ke aadan-pradan ke madhyam se kam se kam samaj ka her tabka unhein pehchanta to hain.

itihaas gawah hai ki kisi prachin sabhayata ko jaanne wa samajhne mein prachalit mudraon ka kitna mahatva raha hai.atah:mera manana hai ki ve mahapurush jinke khun-pasine se bharatiya itihaas likhi gayi hai unhe amar karane ka yeh nayab tarika hoga.
dusri taraf tax-benefit,mahila va vridha ki tarah,dalit aur kamajor tabake ke aarthik shashaktikaran mein prabhavi siddha hongein.

Unknown said...

chaliye baba saheb ambedakar ka naam aate kam se kam elite class/whitecolor logon ko corruption,desh ki problems aadi ki yaad to aayi.yehi class hai jo jativaad, corruption aadi ka vahak bhi hai aur poshak bhi.kuch comments ke sandarbh me yeh ukti sahi hai;jaki rahi bhawana jaisi prabhu murat dekhi tin taisi.samvad sahi disha mein ja raha hai.

Madhukar Panday said...

रवीश जी फ़िर से एक बार अपनी टिप्पणी के साथ यह कहना चाहता हूं कि वास्तव में यह एक गंभीरता से विचारणीय विषय हॆ. देश का संविधान अंबेदकर जी की देन हॆ यह सत्य हॆ इससे किस को इंकार हॆ पर यह भी स्वीकारना होगा कि इसी संविधान में अपनी अपनी सुविधा ऒर राजनॆतिक हितों की पूर्ति के लिये लगभग सभी दलों ने संशोधन किये हॆ, यह भी सभी को स्वीकारना होगा. गरीबी ऒर उपेक्षा की पीडा सभी में एक सी ही होती हॆ, पीडा किसी की जाति या धर्म देख कर कम या ज़्यादा नहीं होती. मेरा केवल इतना कहना हॆ कि किसी भी जाति या समुदाय के उत्थान के लिये किसी भी कानून या प्रतीक से महत्वपूर्ण हॆ, उन सभी के प्रति एक मानवीय प्रेम की भावना. जब तक दोनों ही पक्षों में आपसी सद्भावना का स्वत:स्फ़ूर्त विकास नहीं होगा तब तक किसी भी कानून या प्रतीकों से समाज का सुधार नहीं होगा, यह निश्चत हॆ. भगवान की तस्वीर भी एक प्रतीक हॆ परन्तु आप सुनते होंगे कि बिना विश्वास एवं प्रेम के भगवान भी प्रसन्न नहीं होते ऒर सुफ़ल नही देते हॆ. मूल में उस प्रतीक या कानून के प्रति वॆसे ही प्रेम व सम्मान की आवश्यकता ही हॆ जो लोगों में एक विश्वास जगाती हॆ. वॆसी ही आवश्यकता आज समाज के सभी वर्गों में आपस में अपेक्षित हॆ जो स्वयं के अंतर्मन को झकझोरने से ही आयेगी, वरना कानून या ऒर भी कुछ उपाय निश्चत ही पूर्ण कारगर नही होगा. जिस किसी को मेरी इस बात पर आपत्ति हॊ में उनसे विनम्रता पूर्वक कहूंगा कि वे आज से १०० साल से भी ज़्यादा पहले इस विषय पर श्वामी विवेकानन्द जी के विचार पढ लें जिन्होने किसी भी राजनीतिक व्यक्ति से पहले बिना किसी राजनॆतिक मह्त्वाकांक्षा या अभिलाषा के यह बात कही थी. उनसे भी पहले रामक्रष्ण परमहॆस जी ने भी यही कहा था...... हां एक बात ऒर जब तक हम अपने में एक बडे लक्ष्य का निर्माण नहीं करेंगे तब तक समाज में अपनी जगह नहीं बना पायेंगे. अपने जीवन के प्रति एक बडा लक्ष्य बनाना किसी भी जाति के प्रतिबन्धित नही हॆ यदि ऎसा होता तो आज हम यहां अम्बेदकर जी की बात नहीं कर रहे होते. वर्तमान में भी स्वामी राम देव जी का उदाहरण सबके सामने हॆ, वो किसी ब्राह्मण जाति से नही आये हॆं परन्तु उन्होने जो पांडित्य प्राप्त किया हॆ वह किसी से भी छिपा नहीं हॆ आज बडे से बडे ब्राह्मण एवं अन्य उच्च जाति व विभिन्न धर्मों के लोग भी उनके अनुयायी हॆं. दलित वर्गों को स्वयं ही इन उदाहरणॊं से उत्साहित होना होगा, स्वयं ही अपना उच्च लक्ष्य निर्धारित करना होगा, सरकारी वॆसाखियों का सहारा कम करना होगा, दलित समाज में पूर्व घटित कुस्म्रितियों अनदेखा कर भविष्य की ओर देख्नना होगा, क्यों कि बुरी यादें केवल पीडा ही देती हॆ ऒर कुछ् नहीं. ऒर साथ ही सरल मन उच्च वर्गीय युवाओं को इन्हें बिना किसी पूर्वाग्रह प्रेरित करना होगा. वरना ये सारे राजनीतिक द्ल ऒर तथाकथित दलितों के प्रति सहानुभूति दिखाने वाले समाजसेवक व चिंतक उनका दोहन ही करते रहेंगे. आज ज़रूरत अंबेदकर जी की मूर्ति लगाने या कहीं पर भी उनका चित्र छापने की नहीं हॆ, स्वयं अंबेद्कर या उनसे भी श्रेष्ट बनने की हॆ, जिन्होने किसी भी सरकारी दया या भीख की आवश्यकता नही समझी ऒर न ही ली.

Third Eye said...

मैंने अपनी टिप्पणी में केवल लिंग-सूचक शब्द का प्रयोग किया था. उसका प्रयोग पूरे किस्से में अत्यावश्यक था, अन्यथा बात कहने का कोई अर्थ ही नहीं बचता.

बहरहाल, अगर उस पर आपत्ति थी तो आप उसकी जगह स्टार्स या एस्ट्रिक्स लगाकर टिप्पणी को बने रहने दे सकते थे. लेकिन आपने पूरी टिप्पणी ही हटा दी.

अब इतना किया है तो हिंदी को एक चोटी, एक धोती, एक जनेऊ, एक कमंडल और एक जोड़ी खड़ाऊँ और दे दीजिए.

आखिर शुद्धता पर ही आपका पूरा ज़ोर है तो गंगा घाट भेजिए हिंदी को. पंडे पुजारी ही पढ़ें और वो ही गुनें -- अच्छा है.

Manoj said...

मुझे नही पता कि ये भावना हमारे मन मे कैसे और क्यों आती है कि किसी एक व्यक्ति के सम्मान से एक पुरे समुदाय का सम्मान हो जाएगा। ये सोच कि मायावती के मुख्यमंत्री बनने से दलितों को उनकी खोई हुई इज़्ज़त मिल जायेगी या लालू यादव, यादवों कि आर्थिक स्थिति मे कोई अंतर ला पायेंगे। यदि ऐसा होता तो ये समस्या शायद बहूत पहले ही खत्म हो चुकी होती, जैसा कि सबको पता है रामायण और महाभारत दोनो ही ग्रंथ ब्राह्मण द्वारा नही लिखे गए हैं जबकि वेद व्यास और वाल्मीकि कि इज़्ज़त तत्कालीन समाज मे भी काफी थी और वर्तमान समाज मे भी।
इसी तरह यदि हम किसी भी individual को देखें जो कि दलित/पिछडे समुदाय से belong करता है और काफी सफलता हासिल की है, लोग उसकी इज़्ज़त करेंगे ही। पर इससे उस समुदाय के लोगों की सामजिक हैसियत मे कोई खास फ़र्क नही पड़ने वाला। यदि हम चाहतें हैं की पुरे समुदाय को बराबरी या अच्छी निगाह से देखा जाये तो उस समुदाय के कम से कम 30- 50 % लोगों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति बदलनी होगी।
अम्बेडकर, जिनकी हम इतनी बातें कर रहे हैं, जिस समुदाय के लोगों के लिए उन्होने तमाम उम्र संघर्ष किया, आज भी शायद उस समुदाय के 80% लोगों ने उनका नाम भी ना सुना होगा। मुझे नही पता की उनकी जिंदगी मे क्या अंतर आ जाएगा ? जिस पंडित जी की आप बात कर रहें हैं, उन्हें भी उनके बारे मे पता हो, ये निश्चित नही है। फिर काहे की बहस। नोटों पर अम्बेडकर बाबा की तस्वीर छापने से बढिया है की SKS microfinance वालों से बात करके जिन लोगों का हम भला चाह रहें हैं उन्हें गाँधी/नेहरू आम/अमरूद किसी की भी फोटो वाली नोट और उसे कैसे बढाई जाये की तरकीब सिखाई जाये ।
वैसे मैं भी हिंदु कालेज का ही pass out student हूँ :) ।

मनोज

kumar said...

JANSEVAKJI,ravishji ne kisi ek suchak shabda ki wajah se aapki tippani ko nahi hataya hoga balki maryada ko dhyan me rakh kar hataya hoga.
TO ME YOUR NAME JANSEVAK APPEARS TO BE A MISNOMER.aapka naam JANSEVAK nahi ASHLIL LEKHAK hona chahiye.
ravishji desh ke ek pratishthit patrakar hain.unka blog,aapki maata behno ke alawa desh-videsh ke anek log padhte hain.AND YES HIS BLOG IS NO NON-SENSE BLOG.aap apne talent ko yehaan ke gambhir vishayaon per tippani karane,ya hindi aur uske pathakon ko kahan jana chahiye yeh batane, par vyarth kharch na karein.
aap mein asim sambhavnaein hain.aap ASHLIL SAHITYA ka srijan karein.NAAM aut DAAM dono kamayenge!

सुबोध said...

एक बार फिर से प्रतीकों को स्थापित करने की बात हो रही है पर इस बार विचार वाकई नया है। लेकिन सवाल फिर भी वहीं खड़ा हैं। गांधी की विचारधारा से असहमत लोग भी जेबों में गांधी के चित्रों वाला नोट रखते हैं जरा उनसे पूछ कर देखिये की उस नोट का कितना असर उनकी सोच पर हुआ है ।

Vikas Sarthi said...

रवीश जी, शनिदेव पर आपकी विशेष रिपोर्ट बहुत ही बेहतरीन थी। शनिदेव इन दिनों काफी चर्चा में हैं जब सारी दुनिया उनको सिर आंखों पर बैठा रही हो तो कुछ हक उनका इस ब्लाग पर भी बनता है। फिलहाल ये जरुर लिखिए कहीं रिपोर्ट बनाते-बनाते आप भी तो भक्त नहीं हो गए ?

Unknown said...

shani ko lekar bhi caste war chal raha hai.shani ji bhi dalit haih,isiliye apne astitva ke liye unhe aur unke bhakton ko lagatar struggle karna pada hai aur ab jakar 21st century mein unhe pehchan mili.shayad is sadi ka dalit andolan nahi hota to ye bhi nahi hote.beherhal shaniji ki popularity se brahman devta ka naraj hona lajimi hai.SHANIJI ne pujari ki jagah PRO ko lakar puja path ka modernisation bhi shuru kar diya hai,aachi baat hai,. ek baat aur,transparent daan-patra ko dekh kar lahata hai wakai shani denta imandar hain,isiliye dalit rajniti ka chunav chinh hona chahiye..........TRANSPARENT DONATION BOX.......hai ki nahi. ANYWAYS EXELLENT STORY.

Unknown said...

ravish ji,
note per ambedkar ho ya gandhi koi farak nahi padta , note asli hona chiyey phir bhal mallika shreawat ho a lalu, vasi to aaj kal apney desh me bhi ank garna U S ke $ me honey lagi hai kuch our din bad nepal ki tarah Indian note our U S ka note chlega.
jo log I tax me chut chahtey hi un ko ik salah bhi mufat me de raha hoo.... desh ka har neta our dalit samartahk jab bhi dil ka dura padey dalit Doc hi dudna .. makan dalit enge se hi banwana ... ladki ki shadi bhi dalit se hi karana.. ? nahi jab apney liye DOc ki jarurat ho to khub padalikha chiye na ki 20 bar fail dalit... jab apna makan banban ho to first class Engg our ladki ki shadi ke liye Dhan pati ya officer....?
aaj kal yogyata hi sab kuch hi mitroo... dalit to vote ka farmula hi.. jo har samye chlta hi.. yadi chala to Ambedkar key Mayawati bhi Note per chapegi.

Baba

Unknown said...

ravish bhai,kuch log merit,kabiliat ko apni bapauti samajhte hain. ham to chahte hain ki bharat sarkar kuch issues per research kara le,jaise;kidney chori karane wale doctor ya paiso ke liye bhrun hatya karane wale kis jayi ke log hain,private college mein padhane wale kis aadhar per addmission pate hain;paisa ya merit,aajadi ke baad sara school,college,companies to inhi kabil logon ke hathon mein tha,to in sansthaon ki kharab halat kisne ki.is desh ki bidambana hai ki yahan musalmano aur dalit backwad se hi deshbhakti aur merit certificate manga jata hai,kabhi inse inki kabiliat ka certificate nahi manga gaya hai. Prachin kal se lekar ab tak ke inke yogdano ki report card prastut karane ki koshis kar raha hoon;

1.continuous colonial subjugation,(desh ko inhi kabil logon ne hajaron sal tak gulam bana kar rakha hai aur jab sirajudaula aur tipu sultan angrejo se lar rahe the to inhi kabil logon ne angrejo ka sath diya,1857 ke sangram me bahut se kabil log angrejo ke sath hi the.)
2.untouchability(isi mahan desh ke kabil sidhantkaron ne is amanvia pratha ko janma diya)
devdasi pratha(isi desh ke mahan sidhantkaro aur mahan dharmic kendron ki den hain)
3.sati pratha(masoom widows ko jalane ki pratha inhi mahan logo ki den hai aur aaj bhi bahut sare mahan kendro mein inki kya sthiti hai aap dekh sakate hain,dekhen; ram teri ganga maili,gidhdh ,prem rog etc avam latest water)
4.bal-vivah avam polygamy,
5.dahej-pratha(apani hi jati ke bahu-betiyon ko paise ke liye yahi log jalate hain,satyapan ke liye jitney bhi dahej utpiran ke mamle hain kripya unhe dekh lein.
6.Endless corruption ( cvc ki official website per jakar listed namoo ko dekhen, jinke videshon mein account hai unki jati ki analysis Karen)
Jahan tak baba sahib ke photo wale note ka sawal hai,
Mera manana hai ki ambedar sahib ke acceptance ko lekar bahut samajik tanav raha hai,yadi note unki photo ho to log apne dainik jivan mein adatan unhe swikar lenge,isliye pratikon ko lekar jo samajik tanav hai ,kam hoga. jahan tak corruption aur pratikon ka sabal hai, isme koi sidha sambandh nahi hai,corruption ko aapki sonch khatma kar sakati pratik nahi.
Yaad rahe pratikon ki jaroorat har vyakti,samudai,samaj aur desh ko hoti hai,yadi yaisa nahi hota to tirange ya ashokstambh ki kya jaroorat hai?
Is lekh ko lekar jitni bhi pratikriyayen aayin hain,uske liye yehi kaha ja sakta hai;jaki rahi bhana jaisi prabhu murat dekhi tin taisi

Unknown said...

ye bahut hi accha vichar hai .agar Dr.ambedkar chahate to us samay khud bahut Note kamate the lekin unone Aisa nahi kiya Apna pura jivan dalito ke liye samrpit kiya . aur sayad isiliye pure bharat varsh me abhitak kisi MAHAPURUSH ki jayanti ya Punyatithi ka bhari sankhya me nahi kiya jata jitna ki DR.ambedkar ka hota hai .koi dusara name hai to plz bataye Har ghar me jyada tasvir unki hi hai ,yane ki log aaj bhi unka ADARSH,VICHAR mante hai, to Aise BHARATRATNA mahapurush ki photo bharat ke note par ho yah sabhi bharatiya ke liye sanmanjanak hai

Unknown said...

This is really a good idea!

Unknown said...

Thanks Ravish Bhai for a very important news.Such news could be an example for the Indian industrialist. I still keeps your comments in our first meeting at our conference on " Dalits & Media: Concerns and Lacuna !in year 2009. - Arun Khote

Unknown said...

Anootha upay............ itne saare try kiye gaye kam se kam ye ek bar karna chahiye.........