रामनाथ गोयनका पुरस्कार मिला तो कई मित्रों और शुभचिंतकों का एसएमएस आया। ज़्यादातर में लिखा था कि भूत प्रेत के दौर में मैं कुछ पत्रकारिता कर रहा हूं। मैं कुछ परेशान हूं। मैं तो सिर्फ अपना काम समझ करता रहा हूं। कभी सोचा नहीं कि मेरे काम से पत्रकारिता में कुछ योगदान हो रहा है। मेरा काम भी हर पत्रकारों की तरह ख़राब,औसत और अच्छा होता है । पुरस्कार भी मिला तो लगा कि कुछ किया होगा तो मिला है। शायद मेरी स्टोरी पसंद आई हो। यह कभी नहीं लगा कि जो स्टोरी पसंद आई है और उससे पत्रकारिता में कुछ योगदान हो गया होगा। मैं सिर्फ नौकरी के लिए काम करता हूँ। मेरा काम पत्रकारिता से जोड़ा जाता है तो अच्छी बात है। ये किसी को लगा तो उसकी राय है। मैं सहमत नहीं हूं।
एनडीटीवी का नीतिगत फैसला है कि भूत प्रेत नहीं दिखायेंगे। यह ठीक है कि ऐसी ही सोच मेरी भी है। तमाम मजबूरियों के बीच नहीं मानता कि यही एक विकल्प है कि भूत प्रेत की कहानी बिकती है। न ही किसी दलील से इसके पक्ष में खड़ा हूं। लेकिन एनडीटीवी की इस नीति का लाभ मुझे क्यों मिल रहा है? अगर एनडीटीवी तय कर ले कि भूत प्रेत दिखायेंगे तो हम क्या कर सकते हैं? विरोध या फिर नौकरी की शर्त पर समझौता। विरोध करेंगे तो जायेंगे कहां, वहीं जहां भूत प्रेत दिखाने की छूट है। ज़ाहिर है सारा इंतज़ाम एनडीटीवी ने किया है। हम सिर्फ उसका फायदा उठा रहे हैं। एनडीटीवी ने ऐसे मौके न दिये होते तो दलितों के अपार्टमेंट पर आधे घंटे का कार्यक्रम बनाने का मौका कहां मिलता। मुझे लगता है कि कंपनी को ही श्रेय मिलना चाहिए। ये इस कंपनी की उदारता और महानता है कि वो टीआरपी की दौड़ के बाद भी तमाम तरह की विचलनों के खिलाफ है।
तभी कहता हूं इसका श्रेय हमें नहीं मिलनी चाहिए। क्योंकि हमारी परीक्षा नहीं हुई है। मसलन कि भूत प्रते चलाने का आदेश हो और हम विरोध करें। अपनी रोज़ी रोटी की शर्त पर और सड़क पर। हमारे सामने ऐसे मौके आए ही नहीं हैं। हम एक अनुकूल हालात में काम कर रहे हैं। उनके बारे में पता कीजिए जो अपने चैनलों में भूत प्रेत के खिलाफ आवाज़ उठाते होंगे। ऐसा करने वाले लोग हार कर भी इम्तहान में पास हो रहे हैं। जिन चैनलों में जो लोग भूत प्रेत चला रहे हैं उनका दबाव समझा जाना चाहिए। इतना कहने की छूट तो उन्हें भी मिलनी चाहिए कि वो दिल से भूत प्रेत नहीं चलाना चाहते होंगे। या फिर वो कमज़ोर हैं जो धारा के खिलाफ या नई धारा बनाने की ताकत नहीं रखते।
हिंदी पत्रकारिता अपने भटियारेपन से गुज़र रही है। देखा जाना चाहिए कि क्या यह सब पत्रकारों की नाकामी से हो रहा है। क्या टीआरपी सिर्फ भूत प्रेत से आएगी ? जिस तरह से आजतक ने नकली दवाओं का पर्दाफाश किया उससे टीआरपी, बाज़ार और पत्रकारिता का रास्ता नहीं दिखता? करोड़ों लोगों की ज़िंदगी से समझौता करने वाली नकली दवाईयां। उसे तो दस दिन तक लगातार दिखाना चाहिए। या फिर ऐसी खोजी पत्रकारिता की सीमा है? रोज़ नहीं मिल सकती? रोज़ हासिल करने के लिए भूत तांत्रिकों को लाना होगा?
एक संभावना बची है। हिंदी के पत्रकारों ने ही अपनी मेहनत से टीवी के लिए बाज़ार बनाया। तभी अंग्रेजी और हिंदी चैनल साथ साथ खुलते हैं। हमें याद रखना चाहिए उन तमाम औसत, बेहतर और खराब पत्रकारों को, जिन्होंने रात रात भर जाग कर और भाग कर खबरों का पीछा किया। अंग्रेजी पत्रकार से पहले ख़बरे दीं और अपने ही वर्तमान में अंग्रेजी पत्रकारों के सामने मामूली करार दे दिए गए। उन्हें कोई पूछने तक नहीं आया। बाज़ार की दुनिया में स्टेट्स नहीं बना। उनसे किसी अखबार ने साप्ताहिक कालम लिखने के लिए नहीं कहा। अंग्रेजी के पत्रकारों से कहा। हिंदी और अंग्रेजी ने उनसे पूछा कि आप कालम लिखा करें। ऐसा नहीं कि हिंदी के टीवी पत्रकार किसी से कम है। बल्कि सब उनसे कम हैं। एक चीज़ और हो रही है कि हिंदी पत्रकारिता के संकट पर अंग्रेजी के संपादक बहस कर रहे हैं। रामनाथ गोयनका अवार्ड के दौरान बहस को पढ़िये। सत्रह जुलाई के अखबारों में छपा है। टीवी पर भी आया है। आपको पता चलेगा कि हिंदी के संकट पर बहस कौन कर रहा है? मुझे हिंदी पत्रकारिता के लिए पुरस्कार मिला वो भी रीजनल कैटगरी में।
कई सवाल हैं। इनमें एक चीज़ तो साफ है कि पत्रकारिता स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं रही। तो फिर हम कैसे इसका श्रेय ले सकते हैं। मैं पत्रकारिता के लिए कुछ कर रहा हूं। योगदानों की बात करने वालों से पूछा जाए कि गुटबाज़ी और गैरपेशेवर होती हिंदी पत्रकारिता ने एक दूसरे का कितना नुकसान किया है। एक सर्वे हो जाएं। सबके आंसूओं से सर्वे के सवाल भींग जाएंगे। हां फिर भी आप बधाई देना चाहते हैं तो मुझे स्वीकार करने में कोई हर्ज़ नहीं है। आप सबका धन्यवाद।
34 comments:
टीवी पर आपने जो काम किया है वह भूत-प्रेत की नीति से आगे जाता है. इसलिए चैनल नीति की सराहना करनी ही चाहिए कि वह पत्रकारों को अवसर मुहैया कराता है.
लेकिन उस अवसर का लाभ उठानेवाले लोग भी तो होने चाहिए. टीवी पत्रकारिता में ऐसे कई लोगों से मिलता हूं जो वर्तमान से खुश नहीं है लेकिन अगर यह नहीं तो फिर क्या? उनके अपने पास कोई बहुत संभावना नहीं होती.
लोग तो निमित्तमात्र होते हैं. काम महत्वपूर्ण होता है. आपके कुछ रपटें बेमिसाल हैं. यह बधाई आपको और आपकी उन बेमिसाल रपटों को, और उस कैमरामैन, स्क्रिप्ट राईटर को भी जिससे मिलजुलकर एक अच्छी रिपोर्ट तैयार होती है.
रवीश भाई
ज़ाहिर है, एनडीटीवी देश में समाचारों की गंभीरता और गरिमा को समझने वाले गिनेचुने संस्थानों में है. रामनाथ गोयनका अवार्ड का श्रेय डॉक्टर रॉय को भी मिलना चाहिए. आपको जो अवसर मिला उसका सही इस्तेमाल आपने किया. आपके सामने कोई प्रतिमान नहीं थे. साँप, प्रेत, सेक्स स्कैंडल वगैरह से जब फ़ुरसत मिलेगी तो लोग यही कहेंगे कि 'यार, रवीश टाइप का कुछ बनाओ'. आप फूलके कुप्पा नहीं हुए हैं यह आश्वस्त करता है कि आगे भी अच्छा काम जारी रहेगा.
सही है आपका कहना, उपर से जो नीति बनेगी पत्रकार को या तो उसका पालन करना ही होगा या फ़िर नौकरी छोड़कर जाना होगा! इस मायने मे एन डी टी वी सराहना करनी ही होगी कि कम से कम वह आज के समय मे इस तरह की स्टोरी नही देता!
रवीश जी मुझे नही पता कि मैंने पहली मर्तबा आपकी कौन सी रिपोर्ट देखी । लेकिन आपकी भारत के मध्यम वर्ग पर बनाईं गई रिपोर्ट से मैं आपको जानने लगा। कन्हैया लाल सहगल से K L सहगल तक । रही बात NDTV कि तो Dr. Roy का सपना है, मैंने उनके बारे में काफी कुछ पढा है, काफी कुछ जानता हू । NDTV उनके बच्चे कि तरह है । और भला अपने बच्चे को भी कोई साप-बाबा के पास भेजेगा
रही बात आपके अच्छे काम कि तो वो आप कर रहे हैं। ढेरो सुभकामनाये
nadi(river)isliye saaf rahti hai kyuki wo bahti rahti hai usi tarah aap hai kuch apne tak nahi rakte sab aage bada dete hai un tak jinko usko janne ki zarurat hoti hai isiliye shayad aap ise hai ki aj ke waqt me jab log dusro ke kaam ka shery lete hai aap usko un tak pahucha rahe hai jinhone apko isa karne ka awsar diya. apke sahyogiyo tak dhanyawad pahucha dijiyega aur aacha hai ke kram to ban raha hai hum sab (readers) ap se jude hai aur aap ndtv jaisi sanstha se.
शायद कई दिनों से मुझे लग भी रहा था कि कुछ पढ़ा जाए जो रवीश कुमार ने लिखा हो. पढ कर हैरानी हुई और लगा भी कि अगर कोई अपने आपको इस अवार्ड के काबिल नही समझता तो उसके पीछे कई कारण भी है. पर अगर आप किसी सच्चाई को बताते हैं और कहते हैं कि इसके पीछे मजबूरी भी है तो ठीक ही कहते हैं.
एक पल के लिए अगर हम भूत प्रेत और इच्छाधारी नाग नागिन वाले स्टोरियों को भूल जाएं और ये भी भूल जाएं कि आजकल इंग्लिश एडिटर भी हिन्दी चैनलों की बात करते हैं, तो भी सबसे बडी और दुख की बात ये है कि किसी हिन्दी चैनल को कोई भी ठीक ठाक सा अवार्ड नही मिला.
अब तो लगने लगा है कि शायद हिन्दी चैनलों मे अवार्ड पाने की ललक रह भी नही गई है. रवीश जब कहते हैं कि ये तो एनडीटीवी है जिसकी पॉलिसी उन्हे इस तरह की स्टोरी करने को प्रोत्साहित करती है तो सच ही कहते हैं.
आज अगर आपको कोई अवार्ड मिलता है तो मैं सोचता हुँ की आपको थोडा सा इतराने का तो हक है ही. क्योंकि जब इच्छाधारी नाग नागिन और भूत प्रेत की ख़बरें दिखा कर किसी खबरिया चैनल की टीआरपी नंबर वन हो जाती है तो लोग ये बोलते हुए बिल्कुल भी नही हिचकिचाते हैं कि एनडीटीवी की टीआरपी दिन ब दिन कम होती जा रही है.
अगर आज एनडीटीवी इंडिया को गोयंका अवार्ड और एनटी अवार्ड से नवाज़ा गया तो लगा कि वो इसका हकदार भी था.
आने वाले अगले कुछ दिनों मे अगर आजतक और स्टार न्यूज़ जैसे चैनल कुछ सीख लें तो थोडी खुशी होगी.
शायद कई दिनों से मुझे लग भी रहा था कि कुछ पढ़ा जाए जो रवीश कुमार ने लिखा हो. पढ कर हैरानी हुई और लगा भी कि अगर कोई अपने आपको इस अवार्ड के काबिल नही समझता तो उसके पीछे कई कारण भी है. पर अगर आप किसी सच्चाई को बताते हैं और कहते हैं कि इसके पीछे मजबूरी भी है तो ठीक ही कहते हैं.
एक पल के लिए अगर हम भूत प्रेत और इच्छाधारी नाग नागिन वाले स्टोरियों को भूल जाएं और ये भी भूल जाएं कि आजकल इंग्लिश एडिटर भी हिन्दी चैनलों की बात करते हैं, तो भी सबसे बडी और दुख की बात ये है कि किसी हिन्दी चैनल को कोई भी ठीक ठाक सा अवार्ड नही मिला.
अब तो लगने लगा है कि शायद हिन्दी चैनलों मे अवार्ड पाने की ललक रह भी नही गई है. रवीश जब कहते हैं कि ये तो एनडीटीवी है जिसकी पॉलिसी उन्हे इस तरह की स्टोरी करने को प्रोत्साहित करती है तो सच ही कहते हैं.
आज अगर आपको कोई अवार्ड मिलता है तो मैं सोचता हुँ की आपको थोडा सा इतराने का तो हक है ही. क्योंकि जब इच्छाधारी नाग नागिन और भूत प्रेत की ख़बरें दिखा कर किसी खबरिया चैनल की टीआरपी नंबर वन हो जाती है तो लोग ये बोलते हुए बिल्कुल भी नही हिचकिचाते हैं कि एनडीटीवी की टीआरपी दिन ब दिन कम होती जा रही है.
अगर आज एनडीटीवी इंडिया को गोयंका अवार्ड और एनटी अवार्ड से नवाज़ा गया तो लगा कि वो इसका हकदार भी था.
आने वाले अगले कुछ दिनों मे अगर आजतक और स्टार न्यूज़ जैसे चैनल कुछ सीख लें तो थोडी खुशी होगी.
Ravis ji,
ek bar fie kub sari badhi ,
aap hum jaisey navodit patrkaroo ke liye na sirf sakti punj ho jo roj nai roshni deta hi, rahi bat NDTV ki to jab STAR alg hua tha tab bhi brand STAR ko chod kar sabhi Dr. Rai ke hi santh they...../
NDTv me kam karna har patrakar ka sapna hi.. aap jaisey hi logo ke santh yadi kisi ko kaam karney ka muka miley to roj naya sikney to milega hi..koi isa bhi milega jo bia loglapet key dil ki bat kahega .. chahey koi kuch bhi samjhey...,
DADA.. hum aap ko salam kartey hi..
baba
ravish bhai,journalism ko democracy ka ek important pillar kaha jata hai,yadi aap apni duty responsibility ke saath kar rahe hain to yahi aapka is desh aur samaj ko yogdaan hai.kuch editor aur patrakaron ne to apne profession ko dalali ka dhandha bana rakha hai.
rahi baat hindi aur angrezi ki,to yeh bhi ek tarah ka reservation hai,bhasha ko lekar bhi class war chal raha hai.ideal to yeh hota ki sabko angrezi aatim,lekin hindi ya kisi anya bhasa ko inferor samajhana colonial hangover se jyada kuch nahi hai.in englisized babuon ko jab paschim se latein/jutein parati hain tab inhe racial discrimation najar aata hai(yaad karein shilpa shetty episode)in desi angrezon se gharana nahi hai inka muhtor jabab dena hai,joki humlog lagatar karate bhi rahe hain.
इतना बड़ा सम्मान प्राप्त करने के लिये बधाई।
इस लेख को पढ़ने और इसमें अपने व्यवसायिक प्रतिद्वन्दी चैनल (आज तक- नकली दवाओं वाले मामले पर) की प्रशंषा पढ़ कर पता चला कि आप का मन भी विशाल है।
आपकी खुद् बयानी अच्छी लगी। रामनाथ गोयनका जी बारे में एक् लेख् लिखें न्!
पहले तो बधाई।
आप केवल भूत-प्रेत की बात क्यो करते है। इससे ज्यादा तो चैनल घर के झगडो को दिखा रहे है। वे पीडीतो को सामने बिठाकर तुरंत ही फैसला करना चाहते है। कहाँ से उन्हे एस एम एस करने वाले भी मिल जाते है। अगर इतने एस एम एस विदर्भ के किसानो के लिये मंगाये जाये तो उनका सारा कर्जा उतर जाये। और चैनल जो घर-घर के झगडे सुलझा रहे है तो न्यायालयो की क्या जरुरत?? बडी कोफ्त होती है। मीडीया निरंकुश होता जा रहा है।
Ravish ji..sabse pahle dher sari subhkamnaye....jab award ceremony chal raha tha to maine aapko dekha ...malum nahi kyun aapko dekhne k bad lagta hai ki ab kuchh bolenge. yakin maniye tv screen par aapki khamoshi bhi kuchh kahti hai. lagta hai ki jab kuchh bolenge to samaj k hit se judi batein hogi...
Aap hum har koi apne parivar ke liye is profession me hai..lekin bahut kam log hai jo pariwar k sath sath samaj ki bhi batein karta hai....iske liye aapka bahut bahut dhanyawad..
aur rahi hindi patrakarita ki to yad rakhiyega kam achha ho to pranoy roy k sath Ravish Kumar ka bhi naam logo ko yad rahega....Column likhne walon ki haqiqat mein kitni izzat hai wo aap khud bhi jante honge...AAj samaj k bade hisse ko Ravish ka bolna achha lagta hai na ki chehre chamkane wale patrakar...
Aur aapko ek bat k liye shukriya ki aapne apni wife ka zikra bahut hi khas andaz me kiya..:)
mai bhi english janne wali ladki se hi shadi karne ko soch raha hu...:)
सबसे पहले तो आपको बहुत बधाई!
आपका लेख बहुत विचारोत्तेजक है।पत्रकार को गरियाना सही नही है ।ठीक है ।माने पत्र्कारिता का बाप बाज़ार है ।ऐसे मे एनडीटीवी के उद्देश्य आश्वस्त करते है । तो बाज़ार पत्रकारो को गुलाम बना रहा है या मीडिया को अपना शोहदा ?
ravis ji,
apko ajtak main ek jujharoo patrakar ke taur par janta tha par apnr jis tarah se NDTV ki chatukarita ki yah aapki kalam se sobha nahi deti.
is mamle mein ravish bhai, aap or channel donon ki hi tarif honi chahiye..channel ne samajik sarokaron se jude samachar dikhane ka sahas dikhaya or apne avsar ka sahi sadupyog kiya..ha jahan tak hindi patrakarita ki benoori pr bhartiya angrejidano ka matampurs karna ho to akharta hi hai..
Ravish jee ,
Mai aapaka ek fan hun ! aapake dwara banaye gaye bahut saare program dekha , khas kar ALIGARH ke Muslims Girls Students wala program ! Ramnath Goenka Debate ko bhi maine dekha , aap kitana BOLD aur Bebak dhang se apani BAAT kah gaye ! "TRP" ka dard aapke seene me tha ! aapake Bahut saare FAN hain !
Mai Pesha se ek Ptrakaar nahi hun , lekin JOURNALISM ko maine bakee sabhi CAREER se upar Rakha hai ! aur aap Jaisa JOURNALIST ka mai ek EKLAVYA hun ! aapase bahut kuchh maine seekha hai ! Shayad aap meri Umar se chhote hon feer bhi aap DRONACHARYA aur mai aapaka EKLAVYA !
aapaka Blog dekha ! Padha bhi ! achcha laga ! mitti ki Sugandh nazar aayee ! Mitti ki woh Khusabu nazar aayee jisake liye hum sabhi bechain rahate hain ! Ptrakarita me aapaka pradarshan dekh aur bhi achcha lagata hai ! CHUHA - DAUD me bhi khud ko ek PTRAKAAR shabit kiye rakhana kitana Kathin hai !
Many Congratulations Ravish Bhai, Hamare Mitra Mukhiya Jee ne aapka Blog ke bar mein bataya.. padh ke mazza aagaya... Missing all your intresting and thought proviking storiedsfrom NDTV India after I moved to US, Lagata hai Jaldi hee DISH TV kaa connection lena Padega. Ishwar kare aap aise hi report karte rahe.. All the Best!
Ashish Mishra
ये आप ही लिख सकते थे। मुझे डॉ राय की एक बात बड़ी पसंद है कि उन्होंने चैनल को मूल्यों से जोड़ कर रखा। जब NDTV किसी नामी सितारे को लेकर फौजियों से मिलवाता है तो वो दर्शकों को आकर्षित तो करता है पर जस्बा भी जगाता है। इंडीयन एक्सप्रेस और NDTV, ये दोनों समूह मुझे बेहद पसंद हैं।
Raveeshji Award milne par Badhai
I still fail to believe the credibility of TRP's as its analysis is only based on a handful of big cities of India.Its not India.
Still NDTV has shown up the character and courage to live upto journalism.We believe you all jounalists are the strength of your channel.It will be a nightmare for us as well if NDTV changes its policies and began to show Saif-Kareena , or Havela Waala bhoot n all stuffs.
Congratulations for your award n keep doing stories that reflect to the society benefits.
Himanshu S Jha
Darbhanga
Bihar
Ravish sir you are great! I am following you from years.Congrats for this award and thanks for keeping charm of hindi alive. Keep meeting us at 9.30PM on NDTV.
Congrats for the award.
Agar main kahoon ki electronic media vaale khudko patrakaar kehte hain to behad dukh hota hai. Lekin khushi hai ki aaj bhi electronic media world mein patrakaar kahe jaane wale kuch hi log to hain varna bhoot, alien aur rakhi sawant se influence hota electronic media apni patrakarita ki image ko kitne din bacha paaega yeh keh paana behad mushkil hai. ummeeed hai ki aap aur aapke jaise chand log is sabse zyada reachable electronic media ko uska sahi mukaam dila paaenge.
Amit Kumar Tripathi http://www.anantkiudaan.blogspot.com
ravish sir,
Aap ka kehna bhi kafi sahi hai ki ye channel ka nitigat faisla hai or aapko mila hua anukul mahol.
lekin hum jaise naye patrkar is mahol mai kya kare? phele bada sawal pita ko paisa kama kar dikhana hota hai. ache sansthan fresher ko apne yahan jagah nhi dete or kamane k chakkar mai humae bhi bhaed(sheep) banna hota hai. personally mujhe ye feel hota hai ki log achi cheez pasand karte hai bajay in bhut preto k but mai ye samajh nhi pata ki trp ki daud mai ye bhut pret kaise baji mar lete hai.
ravish sir,
Aap ka kehna bhi kafi sahi hai ki ye channel ka nitigat faisla hai or aapko mila hua anukul mahol.
lekin hum jaise naye patrkar is mahol mai kya kare? phele bada sawal pita ko paisa kama kar dikhana hota hai. ache sansthan fresher ko apne yahan jagah nhi dete or kamane k chakkar mai humae bhi bhaed(sheep) banna hota hai. personally mujhe ye feel hota hai ki log achi cheez pasand karte hai bajay in bhut preto k but mai ye samajh nhi pata ki trp ki daud mai ye bhut pret kaise baji mar lete hai.
Ravish ji,
aapka andaj-e-byan bahut achcha hai.
aapki sari stories bahut achchi hoti hain.
keep up the good work.
regards,
pragya
ravish ji,
pata nahi aap mujhe samajh sakte ya nahi, per duniya me aap patrakarita ke kai mahatwapurna logo se bhi mahatwapurna hai. aapki bhasha shalli per nishabhd ho jata hu,
apko shayad yaad ho aapne 2007 me bharat ki ajadi ke 60we varsh per ek pgram host kiya tha {sath saal ka bharat}, sayad hi koi rasta bacha ho jisse hokar maine wo video pane ki koshis na ki ho.
agar ho sake to ek baar mujhe jawab zarur bhej dijeyega
aapka
arvind surya singh
basti, uttarpradesh
hiii.. ravish ji....im new to read about you..i like the way people discuss about topics here..journalism shows a true side of countries life its interesting.. all the best to you.
Rabish sir,
Namaste,
Noted english writer George Bernard Shaw has said" There are two tragedy in life. First is to get your heartiest desire and second is not to get it." I dont know whether this quotation is wright or wrong but i am sure that the effort made by NDTV and you are new revolution in the historoy of electronic media where only news sense is imortant. I am fan of Mr. Pranab Roy when he had anchored the programme 'The World this week.'Sir I am basically from Motihari, East Champaran and right now a sub editior/ reporter in english daily "State Times'in Delhi.
sir special report me apke bina maza nahi aa raha....jaldi vaapas aaye kripya...manideep
बेहतर को ही पुरस्कृत किया जाता है। समाज कितना भी मानसिक रूप से दबा क्यों न हो पर उस समाज में कुछ ऐेसे लोंग होते ही है जो अपना काम नीतिगत तरीके से करतें हैं। हां यह जरूर होता है कि उन्हें कुछ कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है फिर भी वह अपना रास्ता नहीं बदलतें हैं। ऐसे ही लोगों में आप है और आपका का चैनल । कुछ किस्मत के भी आप धनी हैं जो आपको अपने चैनल से सामंजस्य बनाने में ज्यादा कठिनाई नहीं हुई और आपकी पहचान चैनल से इस कदर जुड़ गई कि अब यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि आप चैनल से हैं या चैनल आपसे।
बेहतर को ही पुरस्कृत किया जाता है। समाज कितना भी मानसिक रूप से दबा क्यों न हो पर उस समाज में कुछ ऐेसे लोंग होते ही है जो अपना काम नीतिगत तरीके से करतें हैं। हां यह जरूर होता है कि उन्हें कुछ कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है फिर भी वह अपना रास्ता नहीं बदलतें हैं। ऐसे ही लोगों में आप है और आपका का चैनल । कुछ किस्मत के भी आप धनी हैं जो आपको अपने चैनल से सामंजस्य बनाने में ज्यादा कठिनाई नहीं हुई और आपकी पहचान चैनल से इस कदर जुड़ गई कि अब यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि आप चैनल से हैं या चैनल आपसे।
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