सेक्स शिक्षा के विरोधी पकड़े गए कच्ची कली देखते
दिल्ली, मेरठ, झांसी, पटना, लखनऊ, बनारस..शहरों का नाम लिखने लगूं तो भारत के सभी धार्मिक सांस्कृति शहरों के नाम लिखने पड़ेंगे । जनाब किसी राष्ट्रीय एकता की पाठशाला नहीं लगाने जा रहा हूं । इन तमाम शहरों में बंद होते सिनेमा घरों में आग की तरह चिपकी फिल्मों की बात कर रहा हूं । कमसिन जवानी, प्यासी औरत, सहेली का साथी और मचलती जवानी । ऐसे नामों से हर हफ्ते आने वाली तमाम फिल्मों की बात । और सेक्स शिक्षा के विरोधियों के मानस को समझने का प्रयास । इस महाविवाद में हमारी भी कुछ योगदान हो ही जाए ।
पिछले साल की गर्मी का महीना । पश्चिम बंगाल के मिदनापुर ज़िले का एक छोटा सा कस्बा । इतना ही बड़ा कि वहां सिर्फ एक चौराहा था और किनारे पर एक सिनेमा हाल । कम्युनिस्ट बंगाल के क्रांतिकारी किसान फिल्म देख रहे थे । दरवाज़ा खुला था । बाहर से हवा आने देने के लिए । अंदर की गर्मी को शांत करने के लिए । मैं और मेरा कैमरा मैन अंदर । इस कौतुहल में कि ये किसान अंग्रेजी फिल्म कैसे देख रहे हैं । सोचा कि बंगाल में अंग्रेजी क्रांति हो गई क्या । पर्दे पर देखा कि रशियन ब्लू फिल्म दिखाई जा रही है । रशियन दावे के साथ नहीं कह सकता । पर अंग्रेजी के अलावा कोई और भाषा थी । किसान सिर्फ तस्वीरों से अपना मनोरंजन कर रहे थे । ज्ञान भी हो ही रहा होगा । हम जल्दी बाहर आए , नाम देखा तो बांगला में लिखा था ।
हाल ही में झांसी में एक उद्योगपति के करीबी ने बताया । वो बैद्य हैं । करीबी ने उद्योगपति का सुनाया हुआ किस्सा हमें सुना दिया । वो एनडीटीवी के अंग्रेजी चैनल पर सेक्स शिक्षा पर हो रही बहस सुन रहा था । मैंने राय पूछी । उसने कहा राय कुछ नहीं । हमारे बैद्य साहब ने सेक्स की एक गोली बना दी । हफ्ते भर में लाखों की बिक गई । बिना विज्ञापन के । उद्दोगपति जी ने कहा कि लगता है भारत का पुरुषार्थ कमज़ोर हो रहा है । करीबी ने कहा लोग चोरी छुपे गोली खरीद लेते हैं मगर रोग नहीं बतायेंगे । शिक्षा हो या न हो सेक्स से उद्योगपति जी को खूब फायदा हो रहा है ।
अब दरयागंज की पटरियों पर बिकने वाली किताबें । हवस की एक रात या फिर सौ लड़कियों का अकेला मर्द । नाम ही भयंकर । बिक रही हैं । लोग खरीद रहे हैं । इसमें इंटरनेट और पार्न सीडी की जानकारी शामिल नहीं है । उस पर कई बार चर्चाएं हो चुकी हैं ।
अब बताइये विरोध कौन कर रहा है सेक्स शिक्षा का । इससे किस धर्म को खतरा है । जब ऊपर के तीनों मिसाल से धर्म का कुछ नहीं बिगड़ा तो क्लास रूम से क्या बिगड़ेगा । देश के सभी बस स्टैंडों और पेशाब घरों में क्या सेक्स शिक्षा नहीं है । सेक्स हकीमों ने जान लिया है कि हमारा समाज फ्राड है । इससे खुल कर बात मत करों । चोरी छुपे संवाद करो । वो सुनेगा । प्रकाश कोठारी जानते हैं अंग्रेजी बोलने वाले सेक्स डेफिसियेंसी कुलीनों की हकीकत । इसलिए कहते हैं क्लास में बिठा कर पहले ही बता दो ।
मेरी राय है कि सेक्स शिक्षा के विकृत रूपों पर अभी तक मर्दों का ही कब्जा है । शायद ही कोई महिला कमसिन जवानी देखने जाती होगी या फिर दरियागंज की पटरी से किताब खरीदती होगी । या ऐसा होता होगा तो इस लेखक का मालूम नहीं । बस गेस कर रहा हूं । हां पढ़ी लिखी लड़कियों के पास इंटरनेटीय पार्न जगत का विकल्प होता होगा । हमने खजुराहों के बाद सेक्स शिक्षा के बारे में कुछ नहीं किया । कामसूत्र को पढ़ा नहीं अलबत्ता इसके नाम पर बना कंडोम बिक रहा है । बाज़ार को मालूम था हिंदुस्तानी भले ही कामसूत्र पढ़ा नहीं होगा मगर उसका नाम ज़रूर सुना होगा । इसीलिए किसी पूजा को अजगर में लिपटा कर कंडोम को घर घर पहुंचा दिया ।
वैसे भी सारे स्कूल इसके विरोधी नहीं है । मैं मुंबई के एक सौ फीसदी मुस्लिम स्कूल की बात कर रहा हूं । दो हज़ार लड़कियां यहां पढ़ती हैं । इनकी मांओं को जब प्रिसिंपल ने बुलाकर कहा हम सेक्स शिक्षा देना चाहते हैं । तो मांओं ने कहा प्लीज दीजिए । निम्नमध्यमवर्गीय इलाके के इस स्कूल में लड़कियों को हमने सेक्स पर लघुनाटिका करते देखा । कई पब्लिक स्कूल हैं जहां इसकी तालीम दी जा रही है । आज भी । सरकारों को डर लगता है । क्यों डर लगता है । उसका वोटर सेक्स नहीं करता क्या ? सिर्फ योग ही करता है क्या ?
सेक्स शिक्षा से हम हर दिन दो चार होते रहते हैं । चौराहे पर लगे और टीवी में दिखाये जाने वाले एड्स विरोधी विज्ञापन किसी न किसी रूप में सेक्स शिक्षा ही तो दे रहे हैं । फिर विरोध कैसा । सेक्स संकट में है । देश नहीं है । समाज नहीं है । इसके लिए शिक्षा ज़रुरी है । अगर क्लास रूम में नहीं पढ़ाओगे तो ये लोग कमसिन जवानी देखने चले जाएंगे । या फिर एमएमएस के ज़रिये किसी रात मोबाइल फोन की रोशनी में अपनी कल्पनाओं से भिड़ते रहेंगे । दिल्ली की एक स्कूल की छात्रा का जीवन इसी ज्ञान की कमी के कारण बर्बाद हो गया । उस लड़के का कुछ नहीं हुआ । अगर तालीम दी गई होती तो इससे ये नौबत न आती और अगर आती भी तो इस तरह की गैरबराबरी का इंसाफ न होता । सवाल है कि चोरी छुपे औरतों में झांकने वाला हिंदुस्तानी मर्द किताबों में इसे पढ़कर परिपक्व और संतुलित होना चाहता है या नहीं ? और इन बेवकूफ मर्दों की अज्ञानता की कीमत औरतें कब तक चुकाती रहेंगी । सेक्स शिक्षा का स्वागत किया जाए । हमारी सभ्यता संस्कृति ने बहुत संकट देखे । इसका कुछ नहीं होगा । इस पर ब्लाग राग ने भी अभियान चला रखा है । यह लेख उनके ही लेख पढ़ने के बाद लिखा गया है । प्रेरित होकर ।
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12 comments:
अभी यह नहीं कह सकता कि मैं आपसे सहमत हूं या असहमत लेकिन एक बात बताना चाहूंगा- जब मैं कक्षा दसवीं में था तब एक अध्याय था जिसमें प्रजनन और स्त्री-पुरुष जननांगों के बारे में बताया गया था. लेकिन मेरी क्लास के साथ-साथ अन्य सेक्सनों में भी टीचर ने इस अध्याय को या तो नहीं पढ़ाया या फिर औपचारिकता पूरी की. दूसरा आप बच्चों को आज क्या पढ़ाएंगे जरा विस्तार से मुझे यह बताएं... यौन शिक्षा या सेक्स शिक्षा या फिर कुछ और उसका सिलेबस क्या होगा...
क्या करें?.. कहां से शुरू करें?.. मेरी बेटी या बेटा नहीं.. नहीं तो अभी आपके लेख के साथ बिसमिल्ला कर चुकता!..
इस विषय पर फिल्म बनाने की इच्छा हो रही है, दोस्त। आप पैसा खोजिये, मैं लोकेशन खोजता हूं, फिल्म बना ही ली जाये। क्या कहते हैं?
सेक्स शिक्षा का विरोध करने वाले बेवकुफ है, वे भूल गये है कि इस देश मे खजुराहो है, कामसूत्र इसी देश मे लिखा गया है।
और तो और इस देश मे नगरवधु या गणिकाओ को सम्मान से देखा जाता रहा है।
जमीनी वास्तविकता से दूर इन लोगो को जनता की भावनाओ से खिलवाड़ करना ही आता है।
महाराष्ट्र के पिछ्डे़ क्षेत्र(विदर्भ का एक जिला गोंदिया) मे पिछले वर्ष HIV के ८०० जांच हुयी। इसमे से HIV + लोगो की संख्या थी, १२५। कुल १५%। सरकारी रिकार्ड मे ये आंकड़ा नही मिलेगा क्योंकि आंकड़ो के साथ छेड़खानी की बात तो एक आम बात है।
क्या यह स्थिती भयावह नही है ? ये आंकड़े उन लोगो के है जिनकी जांच हुयी है। उन लोगो का क्या जिन्होने जांच ही नही कराई ?
एक और छुपी हुयी बात स्वास्थय विभाग HIV या एड्स से हुयी मौतो को टी बी से हुयी मौत भी दिखाता है।
अब इन सब से बचने के लिये क्या करेंगे आप ? कैसे बचायेंगे नयी पिढी को ?
आज की स्थिती मे सेक्स शिक्षा जरूरी है। जो इसका विरोध करता है ,वह देशद्रोही और समाजद्रोही है।
रवीश जी आपने समाज की हकीकत को साफ शब्दों में लिखा है। हो सकता है कई लोग कहें कि यह क्या लिख दिया या ठीक नहीं लिखा। लेकिन सच्चाई यही है। मैं खुद कई ऐसे लोगों को जानता हूं जो बात करेंगे कि सेक्स का क्या विषय लेकर आ गए और खुद किताबों के बीच सड़कों पर मिलने वाली सेक्सी कहानियों की किताबें छिपाकर पढ़ते हैं। मैं एक सज्जन के घर गया था तो पता चला कि पलंग के नीचे अंगडाई और इंद्रसभा का ढ़ेर लगा था। वे बातें ऐसी करते थे मानों सेक्स के सबसे बड़े विरोधी। नंगा कीजिए लोगों को....सच्चाई सामने आनी ही चाहिए।
महामह्ल्लेश्वर कसबेस्वर मै हाजिर हू देश के लोगो के अनुत्तिरत प्रश्नो के साथ आज से रोज हाजिरी दुंगा आपके दरबार मे दिंनाक १०/४/२००७
१. विश्व में लगभग ५२ मुस्लिम देश हैं, एक मुस्लिम देश का नाम बताईये जो हज के लिये "सब्सिडी" देता हो ?
२. एक मुस्लिम देश बताईये जहाँ हिन्दुओं के लिये विशेष कानून हैं, जैसे कि भारत में मुसलमानों के लिये हैं ?
३. किसी एक देश का नाम बताईये, जहाँ ७०% बहुसंख्यकों को "याचना" करनी पडती है, ३०% अल्पसंख्यकों को संतुष्ट करने के लिये ?
४. एक मुस्लिम देश का नाम बताईये, जहाँ का राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री गैर-मुस्लिम हो ?
५. किसी "मुल्ला" या "मौलवी" का नाम बताईये, जिसने आतंकवादियों के खिलाफ़ फ़तवा जारी किया हो ?
६. महाराष्ट्र, बिहार, केरल जैसे हिन्दू बहुल राज्यों में मुस्लिम मुख्यमन्त्री हो चुके हैं, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि मुस्लिम बहुल राज्य "कश्मीर" में कोई हिन्दू मुख्यमन्त्री हो सकता है ?
७. १९४७ में आजादी के दौरान पाकिस्तान में हिन्दू जनसंख्या 24% थी, अब वह घटकर 1% रह गई है, उसी समय तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब आज का अहसानफ़रामोश बांग्लादेश) में हिन्दू जनसंख्या 30% थी जो अब 7% से भी कम हो गई है । क्या हुआ गुमशुदा हिन्दुओं का ? क्या वहाँ (और यहाँ भी) हिन्दुओं के कोई मानवाधिकार हैं ?
८. जबकि इस दौरान भारत में मुस्लिम जनसंख्या 10.4% से बढकर ३०% हो गई है, क्या वाकई हिन्दू कट्टरवादी हैं ?
९. यदि हिन्दू असहिष्णु हैं तो कैसे हमारे यहाँ मुस्लिम सडकों पर नमाज पढते रहते हैं, लाऊडस्पीकर पर दिन भर चिल्लाते रहते हैं कि "अल्लाह के सिवाय और कोई शक्ति नहीं है" ?
१०. सोमनाथ मन्दिर के जीर्णोद्धार के लिये देश के पैसे का दुरुपयोग नहीं होना चाहिये ऐसा गाँधीजी ने कहा था, लेकिन 1948 में ही दिल्ली की मस्जिदों को सरकारी मदद से बनवाने के लिये उन्होंने नेहरू और पटेल पर दबाव बनाया, क्यों ?
११. कश्मीर, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय आदि में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, क्या उन्हें कोई विशेष सुविधा मिलती है ?
१२. हज करने के लिये सबसिडी मिलती है, जबकि मानसरोवर और अमरनाथ जाने पर टैक्स देना पड़ता है, क्यों ?
१३. मदरसे और क्रिश्चियन स्कूल अपने-अपने स्कूलों में बाईबल और कुरान पढा सकते हैं, तो फ़िर सरस्वती शिशु मन्दिरों में और बाकी स्कूलों में गीता और रामायण क्यों नहीं पढाई जा सकती ?
१४. गोधरा के बाद मीडिया में जो हंगामा बरपा, वैसा हंगामा कश्मीर के चार लाख हिन्दुओं की मौत और पलायन पर क्यों नहीं होता ?
१५. क्या आप मानते हैं - संस्कृत सांप्रदायिक और उर्दू धर्मनिरपेक्ष, मन्दिर साम्प्रदायिक और मस्जिद धर्मनिरपेक्ष, तोगडिया राष्ट्रविरोधी और ईमाम देशभक्त, भाजपा सांप्रदायिक और मुस्लिम लीग धर्मनिरपेक्ष, हिन्दुस्तान कहना सांप्रदायिकता और इटली कहना धर्मनिरपेक्ष ?
१६. अब्दुल रहमान अन्तुले को सिद्धिविनायक मन्दिर का ट्रस्टी बनाया गया था, क्या मुलायम सिंह को हजरत बल दरगाह का ट्रस्टी बनाया जा सकता है ?
१७. एक मुस्लिम राष्ट्रपति, एक सिख प्रधानमन्त्री और एक ईसाई रक्षामन्त्री, क्या किसी और देश में यह सम्भव है, यह सिर्फ़ सम्भव है हिन्दुस्तान में क्योंकि हम हिन्दू हैं और हमें इस बात पर गर्व है, दिक्कत सिर्फ़ तभी होती है जब हिन्दू और हिन्दुत्व को साम्प्रदायिक कहा जाता है...?
१८.वो साठ सालो का आपका दर्द क्या है कहा है किस बात का है ताकी इलाज कराया जा सके...?
१९.वो टीस किस बात की है देश हित मे खुलासा करे...?
...........कृपया ध्यान दे............
*आप ने अपना इलाज कराया क्या देश हित मे तुरन्त किसी अच्छे साइकिट्रिसट को दिखाये* मुहल्ला के स्वास्थ्य हेतु जारी अतिआवश्यक चेतावनी
रवीश जी जो बात मैं कहना टाल रहा था, आपने कह दी। जल्दी ही रेडियो पर संबंधित विषय पर चर्चा करूँगा। विषय रहेगा। "Teenage Sex Drive: Role of Sex Education and Pornography"
अरूण जी
चलिए एक सवाल का जवाब देता हूं । हालांकि इस बहस को मोहल्ले में ही रखें तो ठीक है । भारत में मुस्लिम का राष्ट्रपति होना, ईसाई का रक्षामंत्री होना या सिख का प्रधानमंत्री होना हिंदु की उदारता से नहीं है । यह सब लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रक्रियाओं की उपज है । मनमोहन सिंह को इसलिए नहीं बनाया गया कि कुछ हिंदू उदारता में पद बांट रहे थे । आप भी जानते हैं सोनिया विदेशी मूल के विवादों में न फंसती तो हिंदू उदारता दिखा कर सिख को प्रधानमंत्री नहीं बनाता । ए के एंटनी ईसाई है तो पहले हिंदू ने कहां उदारता दिखाई । वो तो नटवर सिंह की वजह से पद खाली हो गया जिसके लिए प्रणब दा को विदेश मंत्री बनाया गया । कलाम साहब को हिंदुओं ने खैरात में पद नहीं बांटे । उनके खिलाफ देशभक्त कैप्टन लक्ष्मी सहगल चुनाव लड़ी थीं । बकायदा चुनाव में जीते थे । इसमें हिंदुओं की उदारता कहां से आ गई । उनका श्रेय कैसा ? क्या हिंदुओं ने इन पदों को दान में देने का विज्ञापन निकाला था । रही बात इन तीनों के पदों पर होने की तो फिर प्रतीक आप बना रहे हैं । मैं नहीं । आप चिंता न करें मैं आपके सवालों का जवाब दूंगा । थोड़ा इंतज़ार तो कीजिए । और मैं कोई लड़ाई जीतने के लिए जवाब नहीं दे रहा हूं । आप की कोई बात ठीक होगी तो उसे भी स्वीकार करूंगा । इस देश में मुस्लिम सांप्रदायिकता भी है । अभी कह देना चाहता हूं ताकि आप फिर से गुस्सा न निकाल दें ।
सेक्स शिक्षा पर कमल, रामा, आशीष के जरिये कुछ सामाजिक यथार्थ सामने आ रहे हैं । यह अच्छा है । और आने चाहिए ताकि इनका कोई लेख बन सकें । प्रमोद जी का कहना ठीक है अगर हम सब के प्रयास से इस पर कोई फिल्म बन जाए तो और अच्छा रहता । मैं इस पर और जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश करता हूं । आप भी कीजिए ।
आशीष जी आपसे आशा करूंगा कि आप जैसे गंभीर व्यक्ति शब्द चयन में गंभीरता बरतेंगे. मैं सेक्स शिक्षा का विरोधी नहीं हूं. मै खुद इसके लिये एक ब्लाग http://sexkya.blogspot.com/ बनाया है. लेकिन जहां उम्र और शिक्षा की बात हो वहां व्यापक अध्ययन की जरूरत है. पहले तो यह निर्णय हो कि बच्चों को सेक्स शिक्षा देनी है या फिर यौन या किशोर कौशल. तीनों के अपने मायने है. बालमन के अनुरूप भारतीय परिवेश में क्या और किस तरीके से बेहतर होगा. दूसरा उन्हें शिक्षा देने वाले का स्तर भी देखना जरूरी है. क्या वह शिक्षा दे सकने में सक्षम है. इसलिए शिक्षा देने से पहले शिक्षक तैयार करने होंगे. इसके अलावा और भी कई चीजें है. महज सेक्स शिक्षा देनी है और दूसरे दिन किताब लांच की और चौथे दिन बच्चों क्या बताएंगे कि खजुराहों में मैथुन मूर्तियां जो हैं उनका मतलब यह है... शायद नहीं या फिर यह बताएंगे बच्चों कामसूत्र में महिला पुरुष का वर्गीकरण यह है और सेक्स के आसन यह है. महोदय यह सब इतना आसान नहीं है और मेरे ख्याल से बालमन इसके लिये तैयार भी नहीं हैं. इसका मैं विरोधी नहीं हूं लेकिन जो भी बताया जाय सोच समझ कर और व्यापक अध्ययन करके
तलवार चलाना सिखाने से पहले ढाल चलाना सिखाया जाता है। कराटे में पहले वार रोकना सिखाया जाता है, फिर वार करना। शास्त्रीय नियमानुसार 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य, फिर गृहस्थ ... आते हैं। स्कूल कॉलेजों में पहले पवित्रता, ब्रह्मचर्य की शिक्षा देने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठाता, पहले इस महर्षियों, तपस्वियों को भी पतन के गर्त में गिरानेवाले महाकाम से बचना सिखाने के वजाए, सीधे किशोर-नवयुवाओं को कामाग्नि में झोंक देने चले हैं। महा-कलियुग है, नगरों के गन्दे नालों को पावन नदियों में छोड़ देने वाले वैज्ञानिक अभियन्ता महान् हैं। विनाश काले विपरीत बुद्धि। किशोरों-नवयुवाओं को इस आग से बचना तो पहले सिखा दीजिए। कामशक्ति बढ़ानेवाली गोलियों के उत्पादक/विक्रेता उद्योगपति महाशयों! रति-काम से निर्लिप्त रखने और काम-भावना पर नियन्त्रण करनेवाली गोलियाँ या स्प्रे तो बनाइए/बेचिए पहले। बिजली के नंगे तार नहीं, इन्सुलेटेड तार बिछाइए। वरना फूस की झोंपड़ी के लिए एक चिन्गारी ही भयंकर होगी। ब्रह्म और ब्रह्मचर्य क्या है? यह तो सिखा दीजिए पहले। जो बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है। शायद आप भी भूल गए हैं, या आपको भी पता नहीं?
रवीश जी एक नया मामला है महिला अधिकारों के हनन का आपका मेल तो मालूम नहीं इसलिए यही कह रहा हूं. इसे मैने अपने ब्लाग http://sahabsalam.blogspot.com/ में दे दिया है. देखे ये क्या हो रहा है...
ravish ji very good , aap pahli fursat may arun kay sare sawalo ka jawab likhe.mai ummeed karta hun ki aapke jawab se samvidhan may bharosa rakhne wale logo ka wishvas aur zayda pukhta hoga. muzhe yeh bhi lagta hai desh ki bahut badi janta ko abhi samvidhan , loktantra ki sahi bhwana se avgat karaya jana zaruri hai. zia qureshi - raipur c.g.
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