मेरे पास कुछ ज्वलंत से मुद्दे हैं ।
कहिये तो थोड़ी बहस कर लेते हैं ।
आइये समाज को ही बदल देते हैं ।
उनको तुमको और बाकी सबको ।
हम जी भर के गरिया लेते हैं ।
जब जी चाहा किसी से भी बहस कर लते हैं ।
बस्ता भर के लॉजिक है मेरे पास ।
प्रो और एंटी भी ।
बोलियो तो निकाल लेते हैं ।
थोड़ी बहस कर लेते हैं ।
समीक्षा करेंगे कि आलोचना या फिर विवेचना ।
एक मुद्दे के कई कैटगरी हैं हमारे पास ।
कहिये तो कुछ बहस कर लेते हैं ।
चाय के साथ सिगरेट का कश भी होगा ।
पैमाने में शराब भी होगी ।
और नाच रहे होंगे सारे मुद्दें ।
आइये न बहुत बेकार बैठे हैं ।
थोड़ी देर और बहस कर लेते हैं ।
लोकल, नेशनल और इंटरनेशनल ।
हर लेवल पर काफी बेचैन हैं हम ।
कहां जाते हैं, करना क्या है जाकर।
यहीं, अभी इसी वक्त थोड़ी बहस कर लेते हैं ।
5 comments:
ठीक कहा आपने। खास कर मीडिया में आने के बाद रोज़ ऐसी बीमारी से रूबरू होता हूं। लोगों में अजीब सी छटपटाहट देखता हूं। हर दूसरा शख्स मसलों का हल लेकर तैयार है। अपनी परेशानी तो उन्होंने श्रृंगार के तौर पर बदन पर ओढ़ रखा है। चाहें तो पल भर में हटा दें। बहस एक आदत है। मसले के हल का ज़रिया नहीं। हर रोज़ टीवी पर बड़े-बड़े लोगों को राय देता देखता हूं। स्टूडियो से सीधा बीयर बार और डिस्कोथेक का रूख़ करते हैं। देर रात तक शराब और शबाब का दौर। और कल के बहस के लिए प्रेरणा के साथ उसके घर लौट जाते हैं।
बहस जारी रहे।
यह बहस का एजेंडा अच्छा लगा!
यह बहस का एजेंडा अच्छा लगा!
भवानी भाई की एक कविता थी- जी हां हुजूर मैं गीत बेचता हूं। उस कविता का समय और इस कविता का समय अलग अलग है और प्रसंग भी अलग अलग। मेरे लिए फिलहाल ये कठिन है कि मैं भवानी भाई की कविता को ज्यादा भारी मानूं या आपकी। हां, भवानी भाई की कविता में लय और प्रवाह जादुई है। आपको थोड़ी और कसरत करनी होगी। लेकिन लगे रहिए।
Hi! Ravish,who would argue about 'Bargaad Tree' and yes,agree nothing grows under it,I do hope you would have observed!Darling,do excuse me as my Hindi is very 'fundamental' and 'English' too bad,but then could I take "PANGA" with you too.I normally do.You said,"Let's Argue".Am I right?
PI.
Post a Comment