मैं ढूंढ रहा हूं । हिंदी के उन आवारा दर्शकों को । लोकतांत्रिक हूं इसलिए कूट तो नहीं सकता मगर गरियाने के लिए ढूंढ रहा है । क्या आप किसी ऐसे दर्शक को जानते हैं जिसकी दिलचस्पी के नाम पर टीवी ख़बर की जगह कमर दिखा रहा है । जिसकी दिलचस्पी के नाम पर टीवी विदर्भ की जगह विकेट दिखा रहा है । आखिर वो दिलजला दर्शक कहां रहता है । जिस पर पत्रकारिता को कूड़ेदान में फेंक देने का आरोप है । किसी ने कहा कि ये दर्शक टीआरपी मीटर के वीर्य से जनमा है । जो सिर्फ मीटर की तरह बेलगाम भागता रहता है । कहीं भी कमर और विकेट देखता है भाग जाता है । इसी भागते हुए दर्शकों के नाम पर टीवी में प्रोफेसर पैदा हो गए हैं । जो इस दर्शक के डीएनए को डिकोड करने का दावा कर रहे हैं । सनद रहे टीवी की उम्र पंद्रह साल बताई जाती है । इतने में आप किसी विश्वविद्यालय में रीडर होते होंगे । मगर टीवी में आप प्रोफेसर हो गए हैं । क्योंकि इनको मालूम है कि आवारा दर्शक क्या चाहता है । ब्लाग जगत के पाठकों आप ही बताइये कि ये दर्शक कहां रहता है ।
अब बहुत हो गया । इसका पता चलना चाहिए । इस अनाम बदमाश के नाम पर बहुत नंगई हो ली । पर्दाफाश कीजिए । सड़क पर आइये और नारे लगाइये कि मनचले दर्शक बाहर निकल, बाहर निकल । मैं हताश हूं । नहीं । गुस्से में हूं । हां । ऐसे दर्शकों को गरियाने का कोई मंच बनाया जाए । मैं जानता हूं कि
टीआरपी से पहले पाकेटबुक्सों की नाजायज़ पैदाइश ये दर्शक गंभीर लेखन को चुनौती देते थे । अखबारों के पाठकों को कम कर देते थे । अब यही दर्शक टीआरपी के वीर्य से पैदा होकर पाकेटबुक्स का काम टीवी में कर रहे हैं ।
क्यों कह रहा हूं । क्यों न कहूं । पांच साल से सुन रहा हूं । कल्पना तो कर ही सकता हूं किसी को गरियाने का । यही वो दर्शक है जो हर साल गर्भ में मार दी जाने वाली लड़कियों की खबर की जगह शकीरा के डुप्लीकेट की कमर को चढ़ा देता है । विदर्भ के किसान रो रहे हैं । चैनलों में बदलाव चाहने वाले हिंदी के पत्रकार इन्हें छो़ड़ क्रिकेट पर आंसू बहाने जा रहे हैं । अगले दो महीने तक आप क्रिकेट देखेंगे । क्रिकेट में सवाल और समस्या का अंबार ढूंढा जा रहा है । सहवाग की नाकामी विदर्भ के किसानों की खुदकुशी ही तो है । सहवाग जीरो पर आउट होता है । विदर्भ का किसान ज़ीरो पैसे के कारण सुसाइड कर लेता है । मगर सहवाग पर करोड़ों रुपये का दांव है । विदर्भ के किसान पर लाखों का दावा है । ज़ाहिर है सहवाग राष्ट्रीय समस्या है । विदर्भ का किसान
सिर्फ आत्महत्या का आंकड़ा । विदर्भ के किसानों तुम इसी आवारा दर्शक की भेंट चढ़ गए । वर्ना तुम्हारी मौत सरकारों की नींद उड़ा सकती थी । लेकिन ये दर्शक सरकारों को लोरी सुना रहा है । इसी के नाम पर टीवी के सारे पाप धुल रहे हैं । टीआरपी की गंगा में । टीआरपी मीटर अंग्रेजी चैनल में भी लगे हैं । मगर उनके यहां कोई इसके वीर्य से दर्शक नहीं पैदा हुआ । किसी भी अंग्रेजी चैनल को देखिये वो ऐसे आवारा दर्शकों के पीछे नहीं भाग रहा है । वहां भी मनोरंजन और क्रिकेट है मगर अनुपात में । अंग्रेजी का दर्शक कैसे कमर की जगह ख़बर की मांग कर रहा है । ऐसा क्यों है कि विदर्भ की सुध अंग्रेजी चैनल, अंग्रेजी अखबार या अंग्रेजी पत्रकार ही ले रहे हैं । क्यों अंग्रेजी का चैनल विदर्भ पर आधा घंटा बनाता है जब हिंदी के चैनल क्रिकेट रस में डूबे हुए हैं ।
क्या हिंदी का दर्शक वाकई में आवारा निर्लज्ज हो गया है । क्या हिंदी का दर्शक सिर्फ जूली मटुक को ही देखना चाहता है । क्या हिंदी का दर्शक कायर है । वो सच नहीं देखना चाहता । बहस नहीं करना चाहता कि जाति से उठकर विकास या कोई और मुद्दा हो सकता है । क्या हिंदी का दर्शक बिजली चोर की मानसिकता का शिकार है जो कंटिया डाल कर अपने टीवी पर सिर्फ नाच गाना देखना चाहता है । दोस्तों मैं जानता हूं आप कहेंगे कि ये तो टीवी तय करता है कि लोग क्या देखेंगे । बकवास तर्क है । प्रोफेसर संपादक कहता है कि हम वही दिखायेंगे जो लोग देखना चाहते हैं । इसलिए मैं आपसे दर्शक को ढूंढ निकालने की गुज़ारिश कर रहा हूं । क्योंकि दोषी पत्रकार तो आपकी नज़र में है हीं । इसका कपार आप बाद में फोड़ सकते हैं । पहले उसे तो निकालिये जिसकी निर्लज्जता, बेशर्मी और बेहूदगी के लिए टीवी और उसमें भी हिंदी चैनल
हर तरह के धतकरम किये जा रहे हैं । प्लीज़ । इससे पहले कि पागल हो जाऊं । कुछ कीजिए ।
15 comments:
अपने गुस्से को आपने लिख डाला है, ये अच्छा किया। लेकिन ये सिर्फ टीवी का मामला ही नहीं है। समाज भी आपका वही है। वो अमर सिंह को चुनता है। बाहूबली नेताओं को वोट देता है। ऐसे ऐसों को नेता बनाता है, जो थूकने लायक है। किसी देश में अगर ऐसी बयार हो, तो आप सोच सकते हैं कि अंजामे गुलिस्ता क्या होगा। आपके गुस्से का आधार सिर्फ हिंदी नहीं है, हिंदी समाज है।
दोस्तों मैं जानता हूं आप कहेंगे कि ये तो टीवी तय करता है कि लोग क्या देखेंगे । बकवास तर्क है । प्रोफेसर संपादक कहता है कि हम वही दिखायेंगे जो लोग देखना चाहते हैं ।
टीआरपी की आड़ में टीवी चैनल वही परोस रहे हैं जो वे परोसना चाहते हैं. यही तर्क अर्से से फ़िल्मवाले देते आ रहे हैं कि भई हम तो वही दिखाएँगे जो पब्लिक देखना चाहती है. ये तर्क इतना पुराना और भोथरा होने के बावजूद चलता जा रहा है. भई, जो दिखाना है दिखाओ, पर अपनी पसंद और सोच को पब्लिक के माथे मत डालो. चन्द गिने चुने घरों में लगे मीटर आपको यह नहीं बता सकते कि पब्लिक यही चाहती है. पर वे आँकड़े आपके (टीवी वालों के) लिए यह काम ज़रूर कर सकते हैं कि उनको दिखाकर आप विज्ञापन बटोर लें और विविधता के बारे में सोचने की चिंता से मुक्त हो जाएँ. वह पब्लिक जो दर्पण, कथा सागर, राग दरबारी, श्रीकांत और मिर्ज़ा ग़ालिब को हिट किए थी, क्या केबल चैनलों के आते ही रातों रात गायब हो गई? मैंने 21वीं सदी का भारतीय टीवी बहुत कम देखा है पर ज़रा बताएँगे कि केबल चैनलों पर पिछले 5-7 सालों में कितने धारावाहिक या कार्यक्रम ग्रामीण पृष्ठभूमि या साहित्यिक कृतियों पर बने हैं. मैं नहीं समझता आपका जवाब 2 अंकों तक भी पहुँचेगा.
मैने टीवी देखना बंद कर दीया है !
मै भी उसी पिछडे़ विदर्भ से हूं !
खिसिया लो खिसिया लो, कर भी क्या सकते हो।
रविश आपने बहुत सही विषय उठाया, कह नही सकता कि इस बात पर आप अपने चैनल पर बहस करवा सकते है कि नही, अगर करवा सकते हैं तो जरूर करवाईयेगा। मैं v9y की बात से बहुत हद तक सहमत हूँ, अगर झूठ को भी बार बार कहा जाय तो वो सच लगने लगता है यही वजह है कि आप जिन हिंदी भाषियों की बात कर रहे हैं वो अमर सिंह, लालू और विकेट, सहवाग, और उन कमर को बार बार देख के इन्हीं को सच मानने लगा है।
main sirf ek sawal puchhna chahta hun.aaj guru jaisi filmen kyon hit hoti hai?Hum harbaar kyon ye sochte hain ki wo lade wo mare hume kya?gandhi dusron ke yahan paida ho.mera ladka to sarkari babu ban jaye.phir maza hi maza hai.jiska beta lekhpal uska beta rajyapal.kahawat suni hogi aapne.badlega.jarur badlega.kahen hai touba machaye hain.jahan space mile ghusate rahiye apni baat.
टीवी देखना बंद किया जाए या फिर अविनाश के उ सवाल पर और बहस कर लें कि हिंदी पट्टी सामान्य तौर पर भ्रष्ट मानसिकता की है । इसकी अपनी कोई ईमानदार सोच नहीं है । ज़्यादातर लोगों की शादी दहेज लेकर होती है तो वो क्यों पूरे परिवार के साथ टीवी पर दहेज विरोधी कोई खोजी रपट देखेंगे ? मुझे नहीं लगता कि वो देखेंगे । चैनल बदल कर अंताक्षरी देखेंगे जिसमें कोई सवाल नहीं होता । क्रिकेट देखेंगे जिसमें इंडिया के हारने या जीतने से परिवार का कोई काला राज टीवी की हकीकत से जुड़ कर सार्वजनिक नहीं होगा । समस्या तो और भी भाषाई पट्टी में होगी । लेकिन इस आधार पर खून माफ नहीं हो सकता भई । रवीश
telivision ki is vyavastha ke naam chand panktiyan meri taraf se bhi
ये जलते हुए इंसां पर कैमरे लगाना
वो पीड़ित परिवारों से बाइट ले आना
तस्वीरें विचलित करेंगी ये कहते भी जाना
उन भयानक तस्वीरों को EXCLUSIVE भी बताना
ये दोहरे मापदण्ड़ों का बाज़ार है क्या
टीआरपी से ऊपर कुछ सरोकार है क्या?
संवेदनहीनता की आंधी में माइकों का बढ़ना
वो किशोर चेहरों से ख़बरों का झड़ना
जो मर चुकें है उनका बाज़ार पर चढ़ना
वो कुंजीलाल का जीना, पर भरोसे का मरना
ये दोहरे मापदण्ड़ों का बाज़ार है क्या
टीआरपी से ऊपर कुछ सरोकार है क्या?
विदर्भ के गर्भ में आक्रोश पल रहा है
इधर नच बलिए की झलक दिखलाकर हमें कौन छल रहा है
न्यूज़ चैनल पर ख़बर छोड़ बाक़ी सब चल रहा है
उधर घर बैठा दर्शक ख़ाली हाथ मल रहा है
ये दोहरे मापदण्ड़ों का बाज़ार है क्या
टीआरपी से ऊपर कुछ सरोकार है क्या?
Feel good,feel bad aur feel numb. shayad zyadatar log aakhiri shreni me aate hain jab tak na khud ke ghar me aag lag jaye. News aur filmoon ka kuch ek sa haal hai. Agar log channel badal dete hain to zarurat hai kuch naye ideas ki. ek rang de basanti ki, ek munnabhai ki.Dawayee agar kadwi hai to uske saath ek chamach chinni bhi parosna padega. Bimar bacche dawayee dena pasand karte hain. Jab aadta pad jayegi to chini ko chupke se nikalne ki zaroorat hai.crime,cricket aur trp ke mayajaal ko tod pana itna mushkil nahi!! Aasaan rahoon oe bhid bahut hoti hai, kacchi sadak pe raah banane ka hausla kam hi kar paate hain!!
you are just gr8 man..... nice Blog.
if you dont mind can i trans. your blog in marathi for my website www.mazeshabd.com ? if yes. just give me a mail on rajkiranjain@gmail.com
thank you !
रवीश भाई,
नमस्कार, कस्बे का ही हूं लेकिन कस्बे पर पहली बार आया। दूरदर्शन का पॼकारनुमा जीव हूं। बहुत पहले महावीर प्रसाद द्विवेदी ने लिखा था कि मक्खियां गुड़ पर नहीं, बहते हुए व्रण पर ज़्यादा बैठती हैं। पहले भी और अब भी नंगई लोगों को ज़्यादा प्रभावित करती है। तो रैंप पर लड़कियों के खिसकते कपड़े लोगों को ब्रेकिंग न्यूज़ सरीखा लगेगा ही.. आंखे रिवाइंड होते विजुअल्स पर टिक जाती हैं कि कहीं से उघड़े हुए स्तन का कोना ही सही दिख तो जाए।
इस फील्ड में रहते हुए गुमान हुआ कि लोग-बाग दूरदर्शन नहीं देखते। क्यों देखें... इसकी अपनी सीमाएं हैं। तथाकथित अच्छी और बुरी दोंनों.. हम दूरदर्शन वाले भी बाज़ार में अपनी घिसटती रेपुटेशन पर सोचने के लिए अपनी वक्त जाया नहीं करते। हमें अभिमान (?) है कि हम दौड़ में नहीं हैं। सादर,
मंजीत ठाकुर, डीडी न्यूज़
Lagta hai yeh tathkathit darshak kahin aur nahin channel ki unchi gaddi per baithe kuch khas logon ke dimag mein rehta hai aur ye apne hi jaise kisi darshak ke naam ka hawala dekar logon ko woh dikhana chahte hain jo unhe khud pasand aata hai.
....its true...we indian respect alien things....like we respect angregi babu...american degrees....english speaking people....sawal bhasha ka nahi ..mansikta ka hai...sab chalta hai ki mansikta....do these channels and papers ask people abt their choice.........no......then how can they claim that they show whtever people want to see....rediculous logic...everything is for the sake of money.....so plz stop this drama......
भाई रवीश,
सिर्फ गरियाने से क्या होगा..मिल-बैठकर कुछ सोचें.. बिना ग्लूकोन-डी के दिमाग़ को ताज़ा करें. और अपनी आवाज़ को अब आगे बढ़ाएं..मौक़ा आ गया है. आज बस इतना ही..
राखी बख्शी
Mai by Birth Thai Nagrik, Indian Origin Bangkok me Rahta hoo.
April me mai Delhi me ek Tv Channel per Breaking News dekha
"FILM INDUSTRY ME TEENO KHAN KO ASH AUR ABHI KI SHADI KA CARD NAHI MILA" Vishwas nahi hua ye kaisi Breaking News Hai
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